DRS का आगाज 

आधुनिक क्रिकेट में तमाम तकनीक आजाद हो चुकी हैं लेकिन 23 जुलाई 2008 को पहली बार क्रिकेट में DRS का इस्तेमाल हुआ. 

भारत और श्रीलंका के बीच कोलंबो टेस्ट मैच में पहली बार ट्रॉयल के रूप में डिसीजन रिव्यू सिस्टम (DRS) का इस्तेमाल हुआ.

किस मैच में पहली बार हुआ इस्तेमाल 

इंटरनेशनल क्रिकेट में DRS के जरिए आउट दिए जाने वाले वीरेन्द्र सहवाग पहले क्रिकेटर हैं.

कौन हुआ पहली बार शिकार 

सहवाग के विकेट पर उठे थे सवाल

वैसे श्रीलंका के खिलाफ फैसला विवादास्पद रहा था और इस पर उंगलियां उठाई गई थी. यह सिस्टम अभी भी सवालों के घेरे में हैं.

कैसे सहवाग हुए थे आउट 

मुरलीधरन की गेंद लेग स्टंप की लाइन में टप्पा खाई और सहवाग के पैड पर लगी, मैदानी अंपायर ने इसे ठुकरा दिया. मगर DRS से उहें आउट दिया गया.

क्या था विवाद

सिर्फ इस बात पर फैसला किया गया कि गेंद मिडिल स्टंप को लगती. इस बात को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया कि गेंद सामने के पैड से टकराकर दिशा बदलकर पिछले पैड पर लगी थी. यदि इस बात को ध्यान में रखा जाता तो वह नॉट आउट होते.

कब होता है DRS का इस्तेमाल 

जब मैदानी अंपायर किसी अपील पर फैसला करता है और खिलाड़ियों को लगता है कि अंपायर का फैसला गलत है. तब DRS के जरिए मामला थर्ड अंपायर को दिया जाता है और फिर अंतिम फैसला सुनाया जाता है.

सचिन और द्रविड़ भी बने थे शिकार 

इसी टेस्ट मैच के दौरान सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ का विकेट भी श्रीलंका ने DRS के जरिए हासिल किया था. जिसके चलते उसने जीत भी हासिल की थी. 

आधिकारिक रूप से कब हुआ लागू 

DRS को आधिकारिक रूप से आईसीसी द्वारा 24 नवम्बर 2009 को डूनेडिन में न्यूजीलैंड और पाकिस्तान के बीच पहले टेस्ट के दौरान शुरू किया गया था.

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