IPL Backstage : प्लेयर्स पर करोड़ों बरसाने वाली फ्रेंचाइजियों की कैसे भरती हैं तिजोरियां? यहां जानें कमाई का पूरा हिसाब
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IPL Franchise Income: आईपीएल फ्रेंचाइजियों की सबसे ज्यादा कमाई मीडिया राइट्स से होती है
IPL Franchise Income: लोकल रेवेन्यू की भी फ्रेंचाइजियों की कमाई में हिस्सेदारी होती है.
IPL Franchise Income: इंडियन प्रीमियर लीग के मौजूदा 17वें सीजन में मिचेल स्टार्क (Mitchell Starc) और पैट कमिंस (pat cummins) समेत कई ऐसे प्लेयर्स पर खासतौर पर नजरें है, जिनके लिए फ्रेंचाइजियों ने रिकॉर्डतोड़ बोली लगाई. स्टार्क और कमिंस आईपीएल इतिहास के सबसे महंगे खिलाड़ी हैं. इस लीग के इतिहास में पहली बार दो खिलाड़ी 20 करोड़ से ऊपर पहुंचे. कोलकाता नाइट राइडर्स ने स्टार्क को 24.75 करोड़ और सनराइजर्स हैदराबाद ने कमिंस को 20.50 करोड़ रुपये में खरीदा था.
इनके अलावा कई और फ्रेंचाइजियों ने भी ऑक्शन में महंगी खरीददारी की. अब सवाल हर फैन के दिमाग में उठता है कि प्लेयर्स पर पैसों की बारिश करने वाले फ्रेंचाइजियों की तिजोरी कैसे भरती है. तो इसका सीधा सा जवाब ये है कि आईपीएल के हर हिस्से से बीसीसीआई और फ्रेंचाइजी दोनों की कमाई होती है. मीडिया राइट्स, ब्रॉडकास्ट राइट्स, विज्ञापन और प्रमोशन से लेकर रेवेन्यू, टिकट्स और दूसरी चीजों से होने वाली कमाई मुख्य सोर्स है.
फ्रेंचाइजियों की कमाई का पूरा हिसाब
मीडिया और ब्रॉडकास्ट राइट्स: बीसीसीआई ने 2023 से 2027 तक पांच साल के लिए मीडिया राइट्स 48,390 करोड़ रुपये में बेचे हैं. इन पांच सालों में ब्रॉडकास्ट राइट्स के जरिए होने वाली कमाई का करीब 45 प्रतिशत हिस्सा सभी फ्रेंचाइजियों में बांट दिया जाता है. जबकि आधा हिस्सा बोर्ड के पास जाता है.
टाइटल स्पॉन्सरशिप : आपने अक्सर देखा होगा कि आईपीएल लोगो के ऊपर किसी ब्रांड का नाम लिखा रहता है. जैसे DLF आईपीएल, वीवो आईपीएल, टाटा आईपीएल, ये दरअसल टाइटल स्पॉन्सर होते हैं. जो भी कंपनी सबसे ज्यादा बोली लगाती है, उसे ये अधिकार मिल जाता है. टाटा ने 670 करोड़ रुपये में अधिकार खरीदे थे. इसका भी आधा हिस्सा बोर्ड और आधा फ्रेंचाइजी के पास जाता है.
विज्ञापन और किट: आईपीएल में ओवर खत्म होते ही ब्रेक आता है, उस ब्रेक के दौरान टीवी पर जो विज्ञापन दिखते है, उससे भी कमाई होती है. रिपोर्ट के मुताबिक 10 सेकेंड का विज्ञापन स्लॉट करीब 15 लाख रुपये का होता है. टीम की जर्सी, हेलमेट, स्टंप, विकेट, बाउंड्री पर विज्ञापन के लिए कंपनी मोटा पैसा देती है, जिससे फ्रेंचाइजियों की कमाई होती है. फ्रेंचाइजी के खिलाड़ी भी ब्रांड का प्रमोशन करते हैं. फ्रेंचाइजी की कमाई जर्सी, टीशर्ट, हेलमेट, ग्लव्स जैसे सामान बेचकर भी होती है.
लोकल रेवेन्यू से भी कमाई: फ्रेंचाइजी की कमाई का एक बड़ा हिस्सा लोकल रेवेन्यू भी है. इसमें टिकटों की ब्रिकी अहम है. घरेलू टीम को टिकटों की ब्रिकी का 80 फीसदी मिलता है. एक मैच में टिकट ब्रिकी से करीब पांच करोड़ तक की कमाई होती है. इसके अलावा चैंपियनशिप प्राइज मनी का भी आधा हिस्सा फ्रेंचाइजी रखती है.
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