पैरालिंपिक खेलों में लगातार दूसरी बार रजत पदक जीतने वाले भारतीय चक्का फेंक खिलाड़ी योगेश कथुनिया अपने प्रदर्शन से बहुत खुश नहीं है क्योंकि उन्हें लगता है कि वह कई प्रमुख टूर्नामेंटों में दूसरे स्थान की बाधा को पार नहीं कर पा रहे हैं. हरियाणा के 27 साल खिलाड़ी ने पेरिस पैरालंपिक में पुरुषों के एफ56 चक्का फेंक स्पर्धा में 42.22 मीटर के सत्र के अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयास के साथ 2 सितंबर को रजत पदक जीता.
टोक्यो पैरालिंपिक से कथुनिया ने बड़े आयोजनों में लगातार पांचवीं बार रजत पदक जीता है. उन्होंने 2023, 2024 विश्व चैंपियनशिप के साथ-साथ पिछले साल एशियाई पैरा खेलों में रजत पदक जीते थे. पैरालिंपिक के साथ उन्होंने 2023, 2024 विश्व चैंपियनशिप और पिछले साल एशियाई पैरा खेलों में रजत पदक जीते थे. कथुनिया नौ साल की उम्र में ‘गुइलेन-बैरी सिंड्रोम’ से ग्रसित हो गये थे. यह एक दुर्लभ बीमारी है जिसमें शरीर के अंगों में सुन्नता, झनझनाहट के साथ मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है और बाद में यह पक्षाघात (पैरालिसिस) का कारण बनता है.
वह बचपन में व्हीलचेयर की मदद से चलते थे लेकिन अपनी मां मीना देवी की मदद से वह बाधाओं पर काबू पाने में सफल रहे. उनकी मां ने फिजियोथेरेपी सीखी ताकि वह अपने बेटे को फिर से चलने में मदद कर सके. कथुनिया के पिता भारतीय सेना में सेवा दे चुके हैं. कथुनिया ने दिल्ली के प्रतिष्ठित किरोड़ीमल कॉलेज से कॉमर्स में स्नातक किया है. कथुनिया ने टोक्यो पैरालिंपिक में 44.38 मीटर के बेहतर प्रयास के साथ रजत पदक जीता था. उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 48 मीटर का है जो इंडिया ओपन में आया था. इंडिया ओपन हालांकि विश्व पैरा एथलेटिक्स के अंतर्गत नहीं आता है.
कथुनिया ने कहा, ‘आज मेरा दिन नहीं था, मेरा प्रदर्शन लगातार अच्छा रहता है लेकिन आज मुझे उतनी खुशी महसूस नहीं हो रही है. मेरा परिवार खुश होगा, वे जश्न मना रहे होंगे. मेरे कोच ने मेरी बहुत मदद की है. मैंने प्रशिक्षण में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन दुर्भाग्य से मैं आज इसे दोहरा नहीं सका.’ एफ 56 वर्ग में भाग लेने वाले खिलाड़ी बैठ कर प्रतिस्पर्धा करते है. इस वर्ग में ऐसे खिलाड़ी होते है जिनके शरीर के निचले हिस्से में विकार होता है और मांसपेशियां कमजोर होती है.