वो गेंदबाज नहीं बवंडर था, आधी पिच पर आकर बल्लेबाज के सिर पर मारता था गेंद, भारत में तो...

एक गेंदबाज जिसे क्रिकेट के सबसे तेज और खतरनाक माना जाता था.

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एक गेंदबाज जिसे क्रिकेट के सबसे तेज और खतरनाक माना जाता था. जिसने 13 टेस्ट में 57 विकेट लेकर तहलका मचाया था. लेकिन गुस्सैल रवेये की वजह से उसका करियर समय से पहले ही खत्म हो गया. इस बॉलर का नाम है रॉय गिलक्रिस्ट. वेस्ट इंडीज के पूर्व तेज गेंदबाज. आज ही के दिन 1934 में पैदा हुए थे. माना जाता है उनकी बॉल किसी बवंडर की तरह बल्लेबाज के पास से गुजरती थी. शॉर्ट पिच बॉलिंग को उन्होंने अपना खतरनाक हथियार बना रखा था. लेकिन बाद में इसी बॉलिंग ने उनके करियर को खत्म करने का काम किया. 


रॉय गिलक्रिस्ट एक गरीब परिवार में जन्मे. माता-पिता गन्ने के खेतों में काम किया करते थे. यहां जिस माहौल में रहे उसका उनके बर्ताव पर काफी असर पड़ा. वे काफी गुस्सैल थे और अक्सर दूसरों की बात सुना नहीं करते थे. इस वजह से कई बार विवादों में भी फंसे. नतीजा रहा कि 1958-59 में करियर का आखिरी टेस्ट खेला. इस साल भारत दौरे पर टीम के कप्तान गैरी एलेक्जेंडर से उनकी तूतू-मैंमैं हो गई. भारत के खिलाफ सीरीज में उन्होंने हद से ज्यादा बीमर (बिना टप्पा खाए सिर को निशाना बनाकर फेंकी गई गेंद) फेंकी. साथ ही कप्तान से भी कई मौकों पर बहस हुई. ऐसे में रॉय गिलक्रिस्ट को बीच दौरे से वापस घर भेज दिया गया. फिर दोबारा कभी उन्हें टेस्ट खेलने का मौका नहीं मिला. 


भारत के खिलाफ उगली आग

13 टेस्ट में 26.68 की औसत से उन्होंने 57 विकेट चटकाए. वहीं 42 फर्स्ट क्लास मैचों में 26 की औसत से 167 बल्लेबाज आउट किए. उनका सबसे अच्छा रिकॉर्ड भारत के खिलाफ ही था. यहां चार मैचों में ही उन्होंने 26 विकेट लिए थे. इस दौरान उनकी विकेट लेने की औसत 16.11 की ही थी. 55 रन देकर छह विकेट उनका सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा जो कि भारत के खिलाफ ही था.


जमकर फेंकी बाउंसर्स

इंटरनेशनल करियर के खात्मे के बाद वे इंग्लैंड चले गई और यहां घरेलू क्रिकेट में खेले. लैंकाशर लीग्स में कई क्लबों का वे हिस्सा रहे. यहीं के एक क्लब मिडिलटन के लिए उन्होंने 1958 से 1959 के दौरान 280 विकेट लिए. इस क्लब के लिए 1970 तक उन्होंने हर साल 100 विकेट चटकाए. लेकिन यहां खेलने के दौरान भी उन्होंने बाउंसर खूब इस्तेमाल की. चैरिटी मैचों में भी वे बल्लेबाजों को बाउंसर से निशाना बनाने से नहीं चूकते थे. 


साल 2001 में पार्किन्सन बीमारी (तंत्रिका तंत्र में गड़बड़ी के चलते मूवमेंट में कमी होना) की वजह से 67 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.

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