भारतीय रोइंग टीम के आठों प्लेयर्स बीते दिने जब पोडियम पर आए तो पूरी टीम के लिए ये इमोशनल वक्त था. हर एक खिलाड़ी संघर्ष करके पोडियम तक पहुंचा और भारत को मेडल दिलाने का सपना पूरा किया. टीम के एक मेंबर चरणजीत सिंह का टारगेट भी तिरंगा लहराना था. एशियन गेम्स के 19वें एडिशन में उन्होंने वो करके भी दिखाया. इसके बावजूद उन्हें एक मलाल रह गया. उन्हें आज भी इस बात का दुख है कि जब उनके परिवार को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी, तब वो वहां पर मौजूद नहीं थे. न तो वो अपनी बहन को बचा पाए और न ही बहन को आखिरी विदाई दे पाए.
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भटिंडा के रहने वाले 26 साल के चरणजीत सिंह सिल्वर जीतने वाली भारतीय टीम का अहम हिस्सा थे. वो Men’s Eight इवेंट में चौथी सीट पर थे. उनके ऊपर अपनी आक्रामक गति से अपनी टीम के आगे के 4 साथियों और पीछे के 3 साथियों को प्रेरित करने की जिम्मेदारी थी.
भारतीय टीम ने 5 मिनट 43.01 सेकेंड के समय के साथ सिल्वर जीता. वो गोल्ड जीतने वाली टीम से कुछ सेकेंड पीछे रह गए.
बहन को नहीं दे पाए आखिरी विदाई
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार चरणजीत सिंह का कहना है कि मेडल का टारगेट पूरा हो गया है, मगर कई बार ऐसा हुआ है, जब उनके परिवार को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी, मगर वो वहां पर मौजूद नहीं थे. दरअसल 2019 में उनकी बहन की ब्रेन हैमरेज से अचानक मौत हो गई और चरणजीत उस समय नेशनल कैंप में थे. उन्हें इस बात का अफसोस है कि वो बहन को बचाने के लिए समय पर नहीं पहुंच पाए और न ही उन्हें आखिरी विदाई दे पाए. चरणजीत को आज भी इसका मलाल है.
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