भारत की उभरती पहलवान 19 साल की तपस्या गहलावत अंडर 20 वर्ल्ड चैंपियन बन गई हैं. बुल्गारिया के समोकोव में हई चैंपियनशिप में उन्होंने विमंस 57 किग्रा वेट कैटेगरी के फाइनल में नॉर्वे की फेलिसिटास डोमजेवा को हराकर खिताब जीता. हरियाणा की तपस्या ने सेमीफाइनल में जापान की सोवाका उचिदा को हराया था, जो डिफेंडिंग अंडर-20 विश्व चैंपियन थीं और पिछले 40 इंटरनेशनल मुकाबलों में अजेय रही थीं. इस खिताब को जीतने के साथ ही तपस्या ने अपने पिता प्रमेश का सपना भी पूरा किया, जो कभी उनके जन्म पर निराश हो गए थे. हालांकि उनकी निराशा की वजह कुछ और थी.
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दरअसल तपस्या के परदादा यानी प्रमेश के दादा चौधरी हजारी लाल भी पहलवान थे और प्रमेश भी उनके नक्शेकदम पर चलना चाहते थे. उन्होंने 1999 में राष्ट्रीय स्कूल चैंपियनशिप में भी भाग लिया. हालांकि चोट ने उनका सपना तोड़ दिया और इस चोट ने उनके कुश्ती के सफर को खत्म कर दिया. स्पोर्ट्स्टार के अनुसार तपस्या के पिता ने कहा-
जब मुझे पता चला कि मैं फिर कभी कुश्ती नहीं लड़ पाऊंगा, तो मैंने तय किया कि मैं अपने बेटे को पहलवान बनाऊंगा, ताकि वह वो कर सके जो मैं नहीं कर पाया. शादी के बाद मैं बिना देर किए बच्चा चाहता था ताकि मैं उस पर काम शुरू कर सकूं. इसलिए जब मेरी पहली संतान एक बेटी हुई तो मुझे पहली बार लगा कि मैं एक पहलवान तैयार नहीं कर पाऊंगा, लेकिन मुझे यह पसंद नहीं आया कि मेरे कुछ रिश्तेदार मेरी बेटी होने पर मुझ पर कितना तरस खा रहे थे. इसलिए मैंने तय किया कि मैं अपनी बेटी को पहलवान बनाऊंगा.
उन्होंने आगे कहा-
मुझे पता था कि उसका सफर मुश्किल होगा, इसलिए मैंने उसे एक ऐसा नाम दिया जो मुझे सही लगा.
जैसे ही तपस्या दौड़ने लगी, प्रमेश ने गांव के अखाड़े में एडमिशन करा दिया. वह वहां अकेली लड़की थी. उनके दादा और परिवार के दूसरे बुज़ुर्गों ने शुरू में इसका विरोध किया. उनका कहना है कि लड़की कुश्ती नहीं लड़ सकती. इस पर प्रमेश ने उन सभी लड़कियों का उदाहरण दिया, जो कुश्ती लड़ रही थीं और अच्छा प्रदर्शन कर रही थीं. तपस्या ने अब अपने पिता का सपना पूरा दिया है. उन्होंने फाइनल में डोमजेवा को 5-2 से हराया. तपस्या और उनके परिवार दोनों के लिए थोड़े दुख का भी है, क्योंकि पिछले सप्ताह ही युवा पहलवान के दादा ने दुनिया को अलविदा कह दिया था.
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