भारत ने चार साल पहले ब्रिस्बेन में ऑस्ट्रेलिया को हराकर इतिहास रचा था. इसके जरिए टीम इंडिया ने लगातार दूसरी बार ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज जीती. साथ ही ब्रिस्बेन में ऑस्ट्रेलिया के 32 साल और 31 टेस्ट से अजेय रहने के रिकॉर्ड को भी तोड़ा. भारत की जीत में चार चांद कमेंटेटर विवेक राजदान ने भी लगाए थे. जिन्होंने ऋषभ पंत के बल्ले से विजयी चौका निकलने के बाद कहा था, 'टूटा है गाबा का घमंड.' पांच शब्दों की इस लाइन ने फैंस को झूमने पर मजबूर कर दिया था. साथ ही गाबा टेस्ट जीतने के साथ यह लाइन पूरी तरह से नत्थी हो गई और क्रिकेट इतिहास में एक खास जगह बना ली. लेकिन वर्तमान भारत-ऑस्ट्रेलिया टेस्ट सीरीज से विवेक राजदान दूर हैं. वे इस सीरीज में कमेंट्री नहीं कर रहे हैं.
राजदान अभी स्टार स्पोर्ट्स कमेंट्री पैनल का हिस्सा नहीं है. वे अभी बीसीसीआई के रोस्टर पर हैं जिससे घरेलू क्रिकेट के मैचों का हाल सुना रहे हैं. भारत के पिछले ऑस्ट्रेलिया दौरे पर सोनी स्पोर्ट्स के पास मीडिया राइट्स थे. तब सोनी ने राजदान को हिंदी कमेंट्री पैनल में रखा था और हिंदी फीड में ही उन्होंने आइकोनिक लाइन कही थी.
राजदान ने 'टूटा है गाबा का घमंड' लाइन पर क्या कहा
राजदान अभी सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी में कमेंट्री कर रहे हैं. उन्होंने 'टूटा है गाबा का घमंड' लाइन के बारे में पूछे जाने पर कहा कि उस सीरीज में सप्ताह दर सप्ताह जिस तरह से कड़ी टक्कर दोनों टीमों में दिखी उसी वजह से भावनाओं का ज्वार उठा और स्व: स्फूर्त ही ऐसा हो गया. उन्होंने ईएसपीएनक्रिकइंफो से बात करते हुए कहा, 'हरेक दिन, हरेक मैच में अलग-अलग खिलाड़ियों ने आगे आकर अपना हाथ उठाया और दिखाया कि वे किस मिट्टी के बने हुए हैं. इसलिए यह भावनाएं कुछ समय से उन टेस्ट मैचों के दौरान तैयार हो रही थी. जब हम आखिरी टेस्ट के आखिरी दिन के खेल में पहुंचे तब 300 रन चाहिए थे, उस टीम के खिलाफ काफी कुछ कहा गया जिससे इमोशन काफी ज्यादा थे.'
राजदान ने आगे कहा,
जिस तरह से सब कुछ हुआ, ऐसा लग रहा था जैसे हम अलग ग्रह पर रह रहे हैं. और यह वह समय था जब पूरी दुनिया कोविड महामारी से जूझ रही थी, इसलिए वह भावनाएं भी अंदर थी. लोग परेशान हो रहे थे, आपको पता नहीं था कि कल क्या होगा. इस तरह के माहौल में जब कोई इस तरह से आता है और जो हुआ वह करता है तो भरोसा करना मुश्किल होता है. मैं किस्मत में काफी मानता हूं और मैं शुक्रगुजार हूं कि मैं उस समय काम कर रहा था और उस दिन माइक थामे हुए था और भाग्य की बात है कि ऊपरवाले की मेहरबानी से वे शब्द मैंने बोले. वे शब्द नहीं थे, वे जज्बात थे.
विवके राजदान भारत के लिए खेले हैं टेस्ट-वनडे
विवेक राजदान खुद भी क्रिकेटर रहे हैं. उन्होंने दो टेस्ट और तीन वनडे भारत के लिए खेले. गाबा जीतने के बाद राजदान ने ऋषभ पंत की तारीफ की थी और कहा था, 'खूबियां भी मुझमें, खामियां भी मुझमें. ढूंढ़ने वाले तू सोच, चाहिए क्या मुझमें?' राजदान से जब पूछा गया कि कमेंट्री के दौरान वे शेरो-शायरी का इस्तेमाल किस तरह कर लेते हैं तो उनका जवाब था,
मैं कश्मीरी पंडित हूं और हिंदी मेरी मातृ भाषा है. मेरी मां यूपी से आती हैं. वह लखनऊ से हैं. जब मैं छोटा था तब वह कई बातें मुझसे कहा करती थी. जैसे- दूसरों को नसीहत, आप मियां फजीहत. मेरी मां ऐसी बातें कहा करती थी और मैं हमेशा हैरान हुआ करता था. जब मैं बड़ा हो रहा था तो मुझे पता नहीं था कि इस लाइन में आऊंगा. जब कमेंट्री करने लगा और फिर हिंदी कमेंट्री आई. मैं अपनी मां से कहने लगा कि लखनऊ में रहते हुए आपने जो बातें सुनी वह मुझे बताओ. इससे मुझे रुचि बढ़ती गई. और उस दिन जैसे हालात थे उससे मेरा सबसे अच्छा काम सामने आया क्योंकि जब आप पढ़ते हैं तो आप ऐसी बातें कहते हैं.