मुकेश कुमार को राष्ट्रीय टीम में चयन के बारे में तब तक पता नहीं चला था जब तक उन्हें भारतीय टीम के आधिकारिक वाट्सएप ग्रुप में शामिल नहीं किया गया. मुकेश ने राजकोट से पीटीआई से कहा, ‘‘ बहुत भावुक हो गया. सब धुंधला सा लग रहा था. मुझे सिर्फ अपने दिवंगत पिता काशी नाथ सिंह का चेहरा याद आ रहा था. जब तक मैं बंगाल के लिए रणजी ट्रॉफी में नहीं खेला, तब तक मेरे पिता को नहीं लगा कि मैं पेशेवर तौर पर खेलने के लिए अच्छा हूं. उनको शक था कि मैं काबिल हूं भी या नहीं.’
रणजी फाइनल्स से पहले ही उनके पिता का ‘ब्रेन स्ट्रोक’ से निधन हो गया. मुकेश सुबह ट्रेनिंग करते और अस्पताल में अपने पिता के बिस्तर के पास समय बिताते. बिहार के गोपालगंज जिले के मुकेश ने कहा, ‘आज मेरी मां की आंखों में आंसू थे. वह भी बहुत भावुक हो गयी थीं. घर पर हर किसी ने रोना शुरू कर दिया.’
तीन बार दी सीआरपीएफ की परीक्षा
टीम इंडिया में भी रहेगी सीखने की कोशिश
गेंद दोनों तरीकों से स्विंग कराने की उनकी काबिलियत पर इस 28 साल के खिलाड़ी ने कहा, ‘आपके हाथों की कलाकारी भगवान की देन है, लेकिन उनका दिया हुए आशीर्वाद पर मेहनत नहीं करोगे तो कुछ नहीं होगा.’ भारतीय टीम के ड्रेसिंग रूम में जाना उनके लिए ज्यादा से ज्यादा सीखने का मौका होगा. उन्होंने कहा, ‘जीवन का मतलब ही सीखते रहना है, जो कभी खत्म नहीं होता. मेरी कोशिश यह सुनिश्चित करने की होगी कि मैं जब तक क्रिकेट खेलूंगा तब तक सीखना जारी रहेगा.’