Happy Birthday Sourav Ganguly: वो पांच किस्‍से जो साबित करते हैं टीम इंडिया के दादा की दादागीरी

Happy Birthday Sourav Ganguly: वो पांच किस्‍से जो साबित करते हैं टीम इंडिया के दादा की दादागीरी

सौरव गांगुली (Happy Birthday Sourav Ganguly), बीसीसीआई के वर्तमान बॉस और भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान 8 जुलाई को बर्थडे मना रहे हैं. वे 50 साल के हो गए यानी जिंदगी का अर्धशतक लगा चुके हैं. भारत को क्रिकेट के मैदान पर कई कामयाबियां उन्होंने दिलाई. 90 के दशक में तब भारतीय टीम की गिनती सौम्य टीमों में हुआ करती थी लेकिन गांगुली के कप्तानी संभालने के बाद मामला बदल गया. इसके बाद भारतीय खिलाड़ी ईंट का जवाब पत्थर से देने लगे. विरोधी टीमें कुछ कहते तो उनकी आंखों में आंखें डालकर पलटवार करते और बोलती बंद कर देते. दादा के नाम से मशहूर गांगुली ने टीम इंडिया को दादागिरी करना सिखाया. खुद गांगुली की दादागिरी के भी किस्से कम नहीं हैं.

पानी की बोतलें उठाने से इनकार!

1992 वो साल था जब वे टीम इंडिया का हिस्सा बने. इसके साथ ही वे विवादों का हिस्सा भी बन गए. ऑस्ट्रेलिया दौरे पर उन पर आरोप लगे कि टीम के खिलाड़ियों के लिए पानी ले जाने से उन्होंने मना कर दिया. लिखा गया कि गांगुली ने कहा कि वह पानी की बोतलें उठाने नहीं आए हैं. इस दौरे के बाद गांगुली टीम इंडिया से बाहर हो गए. करीब तीन साल तक बाहर रहे. इस बारे में गांगुली ने अपनी किताब में लिखा कि उनके साथ उस दौरे पर गलत बर्ताव हुआ. उस समय के टीम मैनेजर ने खराब व्यवहार किया. उन्होंने पानी की बोतलें उठाने के आरोपों से भी मना किया.

 

लॉर्ड्स में टीशर्ट लहराना
इंग्लैंड के ऑलराउंडर खिलाड़ी एंड्रयू फ्लिंटॉफ ने भारत में वनडे सीरीज जीतने के दौरान टीशर्ट लहराकर जश्न मनाया था. भारतीय कप्तान सौरव गांगुली ने इस वाकये को याद रखा. 2002 में जब नेटवेस्ट ट्रॉफी के फाइनल में भारत ने रोमांचक जीत दर्ज की तब गांगुली ने भी ऐसा ही किया. जैसे ही भारत का विजयी रन बना तो गांगुली ने टीशर्ट उतारी और उसे पूरे जोर से लॉर्ड्स स्टेडियम की बालकनी में घुमाया. उनका ऐसा करना इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया. साथ ही भारतीय क्रिकेट को एक नई पहचान भी दे गया.

 

कप्तानों को टॉस के लिए कराया इंतजार
वैसे कहा जाता है कि सौरव गांगुली लेटलतीफ हुआ करते थे. वे अक्सर टीम इंडिया की बस के लिए भी लेट पहुंचते थे. अगर यह उनकी आदत थी तो इसने विदेशी कप्तानों को काफी परेशान किया. विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया के स्टीव वॉ को. उन्हें कई बार टॉस के वक्त गांगुली का इंतजार करना पड़ता था. इससे वे बुरी तरह परेशान हो गए. पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने इस बारे में बात भी की थी. वहीं गांगुली से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने हंसकर टाल दिया था.

 

जिद पर अड़ना और अंजाम से नहीं डरना
सौरव गांगुली ने कप्तान रहते हुए युवा खिलाड़ियों को तरजीह दी. फिर चाहे हरभजन सिंह हो या वीरेंद्र सहवाग, जहीर खान या युवराज सिंह. उन्होंने इन प्लेयर्स के लिए ताल ठोककर पैरवी की और खूब मौके दिए. जब सहवाग शुरुआती दिनों में मिडिल ऑर्डर में नहीं चले तो खुद को डिमोट कर लिया और उन्हें ओपनर बना दिया. इसी तरह एक बार सेलेक्टर्स हरभजन को नहीं चुनना चाहते थे लेकिन गांगुली अड़ गए. वे भज्जी को टीम में लेने के बाद ही सेलेक्शन रूम से निकले. 2003 वर्ल्ड कप के लिए उन्हें जवागल श्रीनाथ चाहिए थे तो उन्हें संन्यास से वापस बुला लिया. इसी तरह कई बार अंपायर्स से भिड़े और बैन झेले. लेकिन दादागिरी कम नहीं की.