Sports Tak Special: किस खेल के खिलाड़ी कौन से जूते पहनकर खेलते हैं? जानिए कब-कब क्‍या बदलाव हुए

Sports Tak Special: किस खेल के खिलाड़ी कौन से जूते पहनकर खेलते हैं? जानिए कब-कब क्‍या बदलाव हुए

किसी भी खेल को उसके उपकरण और साजोसामान उसे अलग मुकाम देते हैं. फुटबॉल जहां एक बड़ी गेंद से खेला जाता है तो क्रिकेट एक सामान्य गेंद से और टेबल टेनिस एक बारीक लेकिन हल्की गेंद से. इसी तरह हर खेल में अलग-अलग साजोसामान मिलकर किट बनाते हैं जो खिलाड़ी के लिए जरूरी होती है. इसी किट का एक अहम हिस्सा है जूता. वैसे तो जूते का काम पैर को सुरक्षा देना और उसे धूल-मिट्टी से बचाना होता है. लेकिन खेल में इसका काम इससे भी कहीं बढ़कर होता है. जूता एक खिलाड़ी को गति देता है और उसके खेल को निखारने में भी मदद करता है.

लेकिन हर खेल के जूते में भी अंतर होता है. फुटबॉल का जूता क्लीट या बूट कहलाता है. बास्केटबॉल में इन्हें स्नीकर्स कहा जाता है. क्रिकेट के जूतों के लिए स्पाइक्स नाम इस्तेमाल किया जाता है. दरअसल, इनके नामों में अंतर उनकी बनावट के चलते आता है. जहां फुटबॉल के जूते में नीचे की तरफ स्टड्स होते हैं जिससे दौड़ते समय फिसलन न हो. उसी तरह स्नीकर्स को खास बनाती है उनके सोल की पेडिंग जो खिलाड़ी के लिए शॉक एब्जॉर्बर का काम करता है. स्पाइक्स फिसलने के साथ ही शॉक एब्जॉर्बर भी होते हैं. तो आइए जान लेते हैं खेलों के जूतों के बारे में. और ये भी कि इनमें कब-कब क्‍या-क्‍या बदलाव हुए. 

फुटबॉल

पहली बार बने जूते 

बताया जाता है कि ब्रिटेन के राजा हेनरी आठवें के राज के दौरान पहली बार फुटबॉल के जूते बनाए गए. हालांकि तब सार्वजनिक रूप से इस खेल पर पाबंदी थी क्योंकि अक्सर इससे खेलने के दौरान लड़ाई-झगड़े और दंगे होते थे. लेकिन राजा के मनोरंजन के लिए राजमहल में यह खेल होता था. फुटी बूट्स नाम की वेबसाइट के अनुसार, हेनरी आठवें ने राजपरिवार के जूते बनाने वाले कॉर्नेलियस जॉनसन को फुटबॉल बूट बनाने को कहा था. इसके लिए चार शिलिंग का भुगतान किया गया था. ये बूट चमड़े के बने हुए थे.

 

स्टड्स ने बदला खेल

लेकिन सभी लोग तब चमड़े का जूता नहीं अफॉर्ड नहीं कर सकते थे. ऐसे में कुछ लोग नंगे पांव भी खेलते थे. 1891 से पहले फैक्ट्री में काम पर जाने के वक्त पहने जाने वाले जूतों से ही फुटबॉल खेली जाती थी. इनमें एड़ी और सामने की तरफ स्टील प्लेट लगी रहती थी. ये जूते भारी होते थे. साथ ही किक मारने के दौरान खिलाड़ी अक्सर चोटिल हो जाया करते थे. नीचे की तरफ स्टड्स नहीं होते थे क्योंकि नियम था कि फुटबॉलर्स को ऐसा कुछ नहीं पहनना चाहिए जो बाहर की तरफ निकला हुआ हो.

 

ऐसे शुरू हुआ बदलाव 

बाद में इनमें बदलाव होना शुरू हुआ. लेकिन तब भी फुटबॉल खेलने वालों के जूते चमड़े के ही होते और टखनों के ऊपर तक पहने जाते थे. फुटबॉल के जूतों के नीचे कीलनुमा पैनापन होता था जो खिलाड़ियों को घायल कर दिया करते थे. कई दशकों तक खिलाड़ी नए जूतों को पहनते और फिर उन्हें गुनगुने पानी में डुबोते ताकि वे नर्म पड़ जाए. 1891 में बदलाव शुरू हुआ और स्टड्स की शुरुआत हुई. इससे खिलाड़ियों के लिए कीचड़ और घास में भागना आसान हो गया.

 

दूसरे विश्‍व युद्ध ने बदल दिया चलन  

दूसरे विश्व युद्ध के बाद फुटबॉल के जूतों में बड़ी क्रांति देखी गई. 1949 में एडि डेसलर ने एडिडास कंपनी की नींव रखी और रबर स्टड्स के साथ फुटबॉल के जूते उतारे. पांच साल बाद वेस्ट जर्मनी ने स्क्रू वाले स्टड्स वाले जूतों के साथ वर्ल्ड कप जीत लिया. इन जूतों के चलते उसके खिलाड़ियों को बारिश से भीगे मैदानों पर भी सरपट दौड़ने में मदद मिली. उनके गिरकर चोटिल होने की संभावना काफी कम हो गई. इसके दो साल बाद यानी 1956 में नायलॉन के सोल वाले जूते मार्केट में आ गए.

 

ऑस्ट्रेलियाई फुटबॉलर लाया प्रीडेटर

इसके बाद अगली क्रांति ऑस्ट्रेलियन फुटबॉलर क्रेग जॉन्सटन लेकर आए. लीवरपूल के लिए खेले इस फुटबॉलर के पास एक बार कुछ बच्चे फुटबॉल के टिप्स लेने आए. बच्चों ने बताया कि लेदर के जूते गीले होने की वजह से गेंद कर्व नहीं ले पाती. इस पर जॉन्स्टन ने उस पर टेबल टेनिस के रैकेट का रबर बांधकर शॉट लेने को कहा. इससे गेंद ने काफी कर्व लिया. बाद में वे इस प्रोटोटाइप को लेकर कई बड़ी कंपनियों के पास गए. लेकिन सबने मना कर दिया. उन्होंने बायर्न म्यूनिख के फ्रेंज बेकनब्यॉर, कार्ल हेंज रुमेनिग और गर्ड म्यूलर को अपने जूते पहनाए और उन्हें बर्फ में खेलते हुए रिकॉर्ड किया. यह वीडियो एडिडास को दिखाया तो कंपनी ने खेलने के तरीके में पैदा हुए हुए अंतर को देखकर हां कर दी. एडिडास ने इस प्रोटोटाइप को अपना लिया और मार्केट में एडिडास प्रीडेटर नाम से नए जूते आए. इन्होंने खेल को नया रोमांच दे दिया. खिलाड़ियों के खेल में गजब का अंतर पैदा हुआ.

 

तब से अब तक जूतों में कई तरह के बदलाव लगातार जारी है. नया बदलाव ब्लेडेड जूतों के रूप में हुआ. इनमें नीचे की तरफ स्टड्स की जगह पैर की रचना के हिसाब से ब्लेड की तरह का उभार रखा गया. लेकिन इनके चलते चोटों में इजाफा हुआ. इन्हें इंग्लैंड में बैन करने की मांग भी उठी है. मैनचेस्टर यूनाइटेड नाम के क्लब ने तो इन्हें बैन कर रखा है.

 

क्रिकेट 
क्रिकेट की बात की जाए तो समय के हिसाब से इनमें बदलाव हुए हैं. पहले ये जूते नीचे से सपाट हुआ करते थे लेकिन खेल के आगे बढ़ने के साथ इनमें भी तब्दीलियां आईं. इसके जूते एक तरह से रनिंग और फुटबॉल बूट का मिक्सचर है. क्योंकि इस खेल में दौड़ के साथ ही जंप, डाइव की भी जरूरत होती है. ऐसे में क्रिकेट के जूतों के नीचे स्पाइक्स होते हैं. इससे ग्रिप में मदद मिलती है जो खिलाड़ियों को फिसलन से बचाती है. स्पाइक्स, स्टड्स से अलग होती है. स्पाइक्स ज्यादा पैने नहीं होते हैं और आमतौर पर ऊपर से भोथरे होते हैं. स्पाइक्स मेटल के साथ ही प्लास्टिक के भी होते हैं. साथ ही बल्लेबाज और गेंदबाज के जूतों के स्पाइक्स अलग-अलग होते हैं. गेंदबाज फुल स्पाइक्स वाले जूते पहनते हैं जबकि बल्लेबाज मिट्टी की सतह पर ही दौड़ते हैं तो वे हाफ स्पाइक्स वाले जूते पहनते हैं. एक बात और तेज गेंदबाज अक्सर अपने लैंडिंग पैर (वो पैर जो गेंद फेंकने के दौरान सबसे पहले जमीन पर आता है) के जूते के अगले हिस्से को हल्का सा काट लेते हैं. ऐसा लैंडिंग के दौरान पंजे पर पड़ने वाले दबाव के लिए जगह बनाने के लिए किया जाता है. क्रिकेट के जूते प्लास्टिक, रबड़, कपड़े और चमड़े के बने होते हैं.

 

टेनिस
दुनिया के सबसे पुराने खेलों में से एक टेनिस शुरुआत में केवल घास पर खेला जाता था. तब कैनवास या लेदर शूज ही पहने जाते थे.  बताते हैं कि जॉन डनलप की लीवरपूल रबर कंपनी ने 19वीं सदी की शुरुआत में रबर सोल वाले जूते बनाए. इनमें ऊपर का हिस्सा कपड़े का होता जबकि नीचे रबर का सोल रहता. इन्हें प्लिमसॉल्स कहा जाता था. 1931 में एडिडास ने पहली बार जूतों की मार्केटिंग शुरू की. टेनिस के जूतों में हल्कापन, पैर को सहारा देना और फिसलन से बचाना खास होता है. इन्हें स्नीकर्स कहा जाता है क्योंकि चलने पर इनसे कोई आवाज नहीं आती. हार्ड कोर्ट में खेलने के दौरान टेनिस के जूतों के सोल एक सपाट होते हैं. घास में खेलने पर तले में हल्के उभार होते हैं जिससे फिसलन से बचा जा सके.

 

खेलों में इस्‍तेमाल होने वाले जूते 

कुश्ती - ट्रेनर्स शूज, टखने से ऊपर का हिस्‍सा कवर करते हैं ताकि चोटों से बचा जा सके 
एथलेटिक्‍स - स्पाइक्स, रनिंग शूज. ट्रैक पर अच्‍छी ग्रिप के लिए 
क्रिकेट - स्पाइक्स वाले स्पोर्ट्स शूज़
बास्केटबॉल - स्नीकर्स, टखनों के ऊपर के हिस्‍से को कवर करते हैं 
फ़ुटबॉल - स्टड्स और ब्लेड्स, जमीन पर अच्‍छी पकड़ के लिए   
टेनिस - कैनवास शूज, टखने से नीचे की ऊंचाई, पैरों की मूवमेंट में आसानी