चीन में लोगों की इस हरकत के चलते बैडमिंटन में हो रही शटल्स की कमी, कीमतें दुगुनी फिर भी किल्लत, कैसे आगे बढ़ेगा खेल

चीन में लोगों की इस हरकत के चलते बैडमिंटन में हो रही शटल्स की कमी, कीमतें दुगुनी फिर भी किल्लत, कैसे आगे बढ़ेगा खेल
badminton shuttlecock

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2024 में एक दर्जन शटलकॉक 1200 रुपये में मिलते थे उनकी कीमत अब 2400 रुपये हो चुकी है.

बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन अब सिथेंटिक शटलकॉक की तरफ जाने पर विचार कर रहा है.

बैडमिंटन खिलाड़ी इस समय शटलकॉक की कमी का सामना कर रहे हैं. दुनियाभर के खिलाड़ियों को इसके चलते प्रैक्टिस में काफी दिक्कत हो रही है. पिछले एक साल के अंदर पंखों से बने शटलकॉक की कीमतें दुगुनी हो चुकी है और इसके बाद भी पर्याप्त संख्या में बाजार में यह मिल नहीं रहे. इसके पीछे वजह है चीन में लोगों के खानपान में आया बदलाव. चीनी लोग अब बत्तख और गूज (बत्तख जैसा पक्षी) की जगह पॉर्क (सूअर का मांस) खाना पसंद कर रहे हैं. इसकी वजह से बतख और गूज को पालने में कटौती हुई. इसका सीधा असर शटलकॉक के निर्माण पर पड़ा है.

बैडमिंटन में पंखों से बने शटलकॉक को इंटरनेशनल स्तर पर खेल में इस्तेमाल किया जाता है. सामान्य शटल बत्तख के पंखों से बनते हैं तो महंगे और एलिट लेवल के शटल के लिए गूज के पंख काम में आते हैं. यॉनेक्स और ली निंग जैसे बड़े ब्रैंड्स ने अब हाइब्रिड शटलकॉक बनाने पर काम शुरू कर दिया. लेकिन अभी यह काफी महंगे हैं. लेकिन माना जा रहा है कि आने वाले सालों में यही इस्तेमाल होंगे.

एक बैडमिंटन शटल कितने पंख से बनता है

 

एक शटलकॉक बनाने में आमतौर पर 16 पंख लगते हैं. वहीं एक सिंगल्स मैच के दौरान करीब एक दर्जन शटल्स काम में आ जाते हैं. इनके साथ समस्या यह रहती है कि पंख से बने शटल काफी जल्दी खराब भी हो जाते हैं.

पुलेला गोपीचंद ने शटलकॉक की कमी पर क्या कहा

 

शटलकॉक की कमी को लेकर भारतीय बैडमिंटन के हेड कोच पुलेला गोपीचंद ने पीटीआई ने कहा था, ‘आज नहीं तो कल हमें पंखों वाली शटल का विकल्प तलाश करना ही होगा. यह खेल पिछले कुछ सालों में तेजी से आगे बढ़ा है. अकेले चीन, इंडोनेशिया और भारत में शटल का बहुत अधिक उपयोग किया जाता है. यह कमी सिर्फ़ बत्तखों या हंसों की कम संख्या के कारण नहीं है, बल्कि इसलिए भी है क्योंकि ज़्यादा लोग बैडमिंटन खेल रहे हैं. यह एक अच्छा संकेत है. जब तक हमें प्रयोगशाला में तैयार किए गए विकल्प नहीं मिल जाते तब तक यह समस्या बनी रहेगी. मुझे उम्मीद है कि अब कुछ सालों में हमें विकल्प मिल जाएंगे.’

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