पहले चूमा आसमान, अब नापी समुद्र की गहराई

पहले चूमा आसमान, अब नापी समुद्र की गहराई

नाम- मेघा परमार

पहचान- माउंट एवरेस्ट और स्कूबा डाइविंग का अनूठा वर्ल्ड रिकॉर्ड

होते हैं कुछ 'पागल'. उन्हें नींद में सपने नहीं आते बल्कि सपनों की वजह से उनकी नींद ही उड़ जाती है. जैसे मेघा परमार. उनके हौसलों के आसमान पर इंद्रधनुष के सात रंग देखिए- हरे जंगल, भूरे पहाड़, नीला आसमान, सफेद बर्फ, पारदर्शी समुद्र, सुनहरा रेगिस्तान और मंजिलें नापती मटमैली पगडंडियां. सोचते सब हैं लेकिन पूरा वही कर पाते हैं जो दिमाग की जगह दिल से कोशिश करते हैं.


ऐसे ही टाइमपास के लिए थोड़ी कोई माउंट एवरेस्ट पर चढ़ जाता है. ऐसे ही थोड़ी कोई डेढ़ साल तक घर से दूर रहकर समुद्र की गहराइयां नापता है ताकि स्कूबा डाइविंग का वर्ल्ड रिकॉर्ड बना सके.


मध्यप्रदेश की मेघा परमार दुनिया की पहली 'एडवेंचर लवर' हैं जिन्होंने माउंट एवरेस्ट फतह करने के साथ-साथ 45 मीटर की टेक्निकल स्कूबा डाइविंग भी की है. 4 महाद्वीप के शिखरों को फतह किया है, सो अलग. माउंट एवरेस्ट उन्होंने 3 साल पहले फतह किया था जबकि स्कूबा डाइविंग हाल ही में पांडिचेरी में की.


मेघा के लिए यह सब इतना आसान नहीं था. एक तरफ कोरोना का डर था तो दूसरी तरफ मंजिल पाने का जुनून. हर दिन 8 घंटे उन्होंने प्रैक्टिस की और कुल 134 बार डाइविंग की. उन्हें तराशा अर्जेंटीना से आए कोच वॉल्टर ने. वैसे तो

मेघा ने ये रिकॉर्ड तो पिछले महीने बना लिया था लेकिन रिकॉर्ड के तौर पर ये पिछले ही हफ्ते दर्ज हुआ है.


वो कहती हैं, 'मेरे मन में था कि 2019 में माउंट एवरेस्ट तो चढ़ लिया, अब समुद्र की गहराई में जाकर तिरंगा लहराऊं.मुझे पता चला कि इसके लिए टेक्निकल स्कूबा डाइविंग करनी पड़ेगी जो बहुत कठिन होती है. लेकिन मेरे मन में दृढ़ संकल्प था जिसे अपनी मेहनत से पूरा करना चाहती थी.पहले मुझे स्वीमिंग तक नहीं आती थी. वो सीखने के बाद स्कूबा डाइविंग के सभी कोर्स किए. इसमें जान जाने का भी जोखिम होता है. समुद्र में शरीर के अंदर ऑक्सीजन ज्यादा हो जाए तो जान पर बन आती है और डाइवर पैरालिसिस जैसी बीमारी का शिकार भी हो सकता है.'


अब मुश्किलें ही ना हो तो मंजिल पाने का मजा ही क्या है!

कई बार डाइव की तैयारी में उनके पैरों पर 11-11 किलो के सिलेंडर गिरे जिससे गंभीर चोटों का सामना करना पड़ा. लेकिन मेघा के मजबूत हौसलों के सामने हर मुश्किल आसान होती चली गई. वो हिंदुस्तान की हर उस बेटी के लिए एक संदेश हैं जो अपने सपनों को सोच की चारदीवारी से बाहर निकाल कर उन्हें पंख लगाना चाहती हैं.