Rohan Bopanna : हो सकता है आपको टेनिस देखना उतना पसंद न हो, जितना क्रिकेट या फुटबॉल. अगर पसंद हो भी तो यह हो सकता है कि आपको रोहन बोपन्ना के बारे में जानना उतना जरूरी न लगे, जितना विजय अमृतराज, रमेश कृष्णन, लिएंडर पेस या फिर सानिया मिर्जा के बारे में जानना. लेकिन एक बात तो तय है कि जिंदगी जीने, अपने शौक को शानदार ऊंचाई तक पहुंचाने और करियर को करीने से बुनने वाले रोहन की आज की कामयाबी उन सभी के लिए एक ऐसा सबक है जिनके हौसले संघर्ष के सफर में जल्दी हार मान जाते हों. फिर चाहे आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हों, व्यापार की नई ऊंचाइयों को छूने की ललक रखते हों या फिर जिंदगी को एक मिशन की तरह जीने का जुनून पाले हों.
रोहन ने जीता ऑस्ट्रेलियन ओपन का ख़िताब
रोहन ने 27 जनवरी को ऑस्ट्रेलियन ओपन का डबल्स खिताब जीता. करीब 44 साल की उम्र में. सबसे उम्रदराज विजेता होने का रिकॉर्ड भी उन्होंने अपने नाम कर लिया है. यह भी कोई बड़ी बात नहीं क्योंकि इस उम्र में भी कई लोग अनुशासन के जरिए अपनी फिटनेस को बनाए रखते हैं और बिना ऑक्सीजन के माउंट एवरेस्ट पर चढ़ जाते हैं. कामयाबी के उनके सफर का सबसे दिलचस्प पहलू तो यह है कि हर साल होने वाले 4 ग्रैंड स्लैम (टेनिस के 4 बड़े टूर्नामेंट) वो 2006 से खेल रहे हैं और डबल्स कैटेगिरी में एक बार भी नहीं जीते थे. इन 20 सालों में वो 60 ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट खेले, खिताब एक में भी नहीं जीते. लगे रहे, प्रैक्टिस करते रहे, फिटनेस पर काम करते रहे, पार्टनर बदलते रहे और आखिरकार 2024 में पहली बार पुरुष वर्ग का डबल्स खिताब अपने नाम किया. करीब 20 साल तक किसी टूर्नामेंट को न जीतने के बावजूद उसे जीतने की जिद बनाए रखना ही उनकी जीवटता का प्रमाण है.
हार न मानने का जज्बा
सच तो यह है कि हार न मानने का उनका जज्बा और 'सेल्फ मोटिवेशन' का उनका जुनून 'फाइटर' की नई परिभाषा गढ़ गया है. मुझे याद है दिल्ली, चंडीगढ़ और देश के बाकी टेनिस कोर्ट्स पर 20वीं सदी के आखिर और 21वीं सदी की शुरुआत में रोहन उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते नजर आते थे जिसमें एक तरफ प्रकाश अमृतराज, मुस्तफा गौस, विशाल उप्पल और सोमदेवदेव बर्मन जैसे युवा शामिल थे तो दूसरी तरफ लिएंडर पेस और महेश भूपति जैसे अनुभवी भी कोर्ट में करिश्मा कर रहे थे. हालांकि फिटनेस की मजबूरियां जल्द ही उन्हें डबल्स में करिश्मा करने की ओर खींच लाई और वही उन्होंने अपना मिशन भी बना लिया. फिर जोड़ियां बनाने में उन्होंने कभी कोई कंजूसी नहीं की. कपूरथला के नए नवेले सुनील कुमार के साथ-साथ पाकिस्तान के खिलाड़ी के साथ भी जोड़ी बनाई तो फिर कोर्ट में महेश भूपति और सानिया मिर्जा की साझेदारी ने भी उनके अनुभव को खूब संवारा.
चोटों से भी बिखरे नहीं रोहन
लेकिन चोट, चट्टान से उनके इरादों को डिगाने की बार-बार साजिश करती रही. कभी कंधा चोटिल हुआ तो कभी हाथ. कभी टखने ने कोर्ट में साथ छोड़ा तो कभी कमर ने. घुटने ने तो इतना परेशान किया कि एक वक्त पर 'रैलीज़' में वो खुद को बेबस महसूस करने लगे लेकिन तेज तर्रार सर्विस की अपनी काबिलियत से ना जाने कितने ही मैचों में उन्होंने घुटने की कमजोरी को कमतर साबित कर दिखाया.
ऐसा नहीं है कि वो टूटे नहीं लेकिन दिल और दिमाग की कश्मकश में हर बार दिल ही जीता. कोरोना से ठीक पहले अपनी पत्नी को वीडियो मैसेज कर उन्होंने टेनिस को अलविदा कहने का मूड तक साझा कर लिया था लेकिन उनकी तकदीर को अभी कुछ साल और उनके तेवरों का साथ मिलना था. फिर नीयत और मेहनत का 'कॉम्बो' ऊपरवाले की रहमत भी तो लेकर आता है. अब देखिए, रोहन की जिंदगी भर की मेहनत का अक्स इस एक हफ्ते में ही शीशे में उतर कर दुनिया के सामने आ गया है. पहले पद्म अवॉर्ड मिला, फिर दुनिया में नंबर 1 की रैंकिंग मिली और अब करियर का सबसे बड़ा खिताब भी. इस सितारे को सलाम कीजिए, इसकी संघर्ष गाथा से सीखिए और सफलता को चूमिए.
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