इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) में कोलकाता नाइट राइडर्स (KKR) की टीम लगातार 5 मैच हार चुकी थी जिससे टीम पर काफी ज्यादा दबाव था. लेकिन राजस्थान के खिलाफ मुकाबले में टीम ने आखिरकार जीत हासिल कर ली. जीत के हीरो नीतीश राणा और रिंकू सिंह रहे. वो रिंकू सिंह (Rinku Singh) जिन्हें अब तक ज्यादा मौके नहीं मिले थे, लेकिन मैच में धमाका कर उन्होंने अब प्लेइंग 11 में अपनी जगह पक्की कर ली है. रिंकू को केकेआर में ज्यादा समय फील्डर के तौर पर ही देखा जाता था. लेकिन राजस्थान के खिलाफ रिंकू ने खुद कहा कि, 5 साल बाद उन्हें जो मौका मिला, उसमें उनका बल्ला जमकर बोला. रिंकू ने 23 गेंदों में 42 रन की पारी खेल कोलकाता के लिए हार का सिलसिला तोड़ दिया. लेकिन रिंकू ने यहां तक का सफर कैसे तय किया, किन मुश्किलों का सामना किया. आज हम आपको रिंकू के इसी सफर के बारे में बताएंगे.
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पिता गैस सिलिंडर की डिलीवरी करते थे
रिंकू के 5 भाई बहन हैं. परिवार की इतनी बड़ी जिम्मेदारी को देखते हुए रिंकू के पिता गैस सिलिंडर डिलिवरी का काम करते थे. रिंकू सिंह का एक भाई ऑटो रिक्शा चलाता था और दूसरा कोचिंग सेंटर में नौकरी करता था. रिंकू सिंह 9वीं क्लास में फेल हो गए थे. पढ़ा-लिखा नहीं होने के कारण रिंकू को अच्छा नौकरी नहीं मिल रही थी. रिंकू ने जब अपने भाई से नौकरी दिलवाने की बात कही तब उनका भाई जहां उन्हें ले गया, वहां उन्हें झाड़ू मारने की नौकरी मिल रही थी. बता दें कि, रिंकू को केकेआर ने मुंबई इंडियंस के साथ कड़ी लड़ाई के बाद 80 लाख रुपये में खरीदा था. जब दो बड़ी फ्रेंचाइजी रिंकू के लिए लड़ रही थीं, तब रिंकू अपने घर पर टीवी में ये सबकुछ लाइव देख रहे थे.
नीलामी के पैसों का किया सही इस्तेमाल
रिंकू ने नीलमी में मिले इतने पैसे को लेकर कहा था कि, "सोचा था 20 लाख में जाऊंगा, लेकिन मुझे 80 मिले. सबसे पहले मन में यह ख्याल आया कि मैं अपने बड़े भाई की शादी में योगदान दे सकता हूं और अपनी बहन की शादी के लिए भी कुछ बचा सकता हूं. और फिर एक अच्छे से घर में शिफ्ट हो जाऊंगा.” बता दें कि, रिंकू ने यूपी अंडर -19 टीम का प्रतिनिधित्व करते हुए मिलने वाले अपने मामूली दैनिक भत्ते और क्रिकेट के अन्य टूर्नामेंट्स से कमाकर पैसे बचाए. लेकिन यह सबकुछ कर्ज चुकाने में चला गया. दो साल पहले, वह भारत U19 टीम में शामिल थे, लेकिन रिंकू ICC U19 विश्व कप के लिए जगह नहीं बना सके.
बता दें कि रिंकू के परिवार को उस वक्त उनपर भरोसा हुआ जब उन्होंने दिल्ली के एक टूर्नामेंट में मैन ऑफ सीरीज अवॉर्ड में एक मोटरसाइकिल जीती. मोटरसाइकिल का इस्तेमाल फिर रिंकू के पिता सिलिंडर डिलिवर करने के लिए किया करते थे. लेकिन रिंकू के लिए उस वक्त सबकुछ बदला जब उन्होंने अपने बड़े भाई से नौकरी को लेकर पूछा. एक इंटरव्यू में रिंकू ने कहा है कि, वो मुझे सफाई और पोछा मारने के काम के लिए लेकर गए लेकिन मैंने वापस आकर साफ कहा कि, मैं दोबारा नहीं जाऊंगा और क्रिकेट में ही अपनी किस्मत आजमाऊंगा.
बता दें कि, रणजी ट्रॉफी के नौ मैचों में रिंकू ने 49 की औसत से 692 रन बनाए हैं. इसके बाद ही कई लोगों का ध्यान उनपर गया. पिछले साल किंग्स इलेवन पंजाब ने उन्हें शामिल किया था, लेकिन वो सिर्फ बेंच पर बैठे रहे. ऐसे में किस्मत फिर से बदल गई जब मुंबई इंडियंस ने उन्हें चयन ट्रायल के लिए बुलाया जहां उन्होंने 31 गेंदों में 91 रनों की पारी खेली. इसको लेकर रिंकू ने कहा कि, मेरी इस पारी ने ही सबकुछ बदलकर रख दिया. मेरा डोमेस्टिक सीजन अच्छा गया था और मुझे लगा था कि मुझे कोई न कोई जरूर खरीदेगा लेकिन मुझे भरोसा नहीं था कि मुझे इतनी कीमत मिलेगी. मेरे खानदान में इतना पैसा किसी ने नहीं देखा था.