रेलवे के कोच और राजस्थान के पूर्व विकेटकीपर निखिल डोरू ने आईपीएल की नई सनसनी और दिल्ली कैपिटल्स के स्टार बैटर आशुतोष शर्मा को लेकर बड़ा खुलासा किया है. निखिल ने बताया कि, उनका सेलेक्शन इसलिए नहीं हो रहा था क्योंकि सेलेक्टर्स बस यही कहते थे कि वो सिर्फ बड़े शॉट मारता है. उसे क्रिकेट खेलना नहीं आता है. दिल्ली कैपिटल्स की टीम जब लखनऊ सुपर जायंट्स के खिलाफ बैटिंग कर रही थी तब 65 रन पर आधी टीम आउट हो चुकी थी. टीम यहां 210 रन के लक्ष्य का पीछा कर रही थी. इसके बाद क्रीज पर आशुतोष आए और उन्होंने 31 गेंदों पर 66 रन ठोक टीम को जीत दिला दी.
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सेलेक्टर्स उनके खिलाफ थे
बता दें कि रणजी ट्रॉफी डेब्यू पर आशुतोष ने शतक ठोका था और टीम को मुश्किल स्थिति से बाहर निकाला था. टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में निखिल ने अहम खुलासा किया और कहा कि, चयनकर्ता उन्हें रणजी ट्रॉफी के लिए रेलवे की टीम में चुनने के लिए पूरी तरह से खिलाफ थे. उन्होंने कहा, 'आशुतोष बल्लेबाजी करना नहीं जानते. वह केवल बड़े शॉट ही मार सकते हैं. मैं उनके चयन के लिए लगातार दबाव बनाता रहा और उन्हें गेम चेंजर के रूप में उभरने की उनकी क्षमता को देखते हुए जरूरी मानता रहा.
उन्होंने आगे कहा कि, आशुतोष को पहले तीन-चार मैचों के लिए टीम में नहीं चुना गया. अंत में उन्हें गुजरात के खिलाफ मैच के लिए चुना गया, क्योंकि उन्हें पूरी तरह से पता था कि अगर वह खराब प्रदर्शन करते हैं तो उन्हें टीम से बाहर कर दिया जाएगा, क्योंकि चयनकर्ता अभी भी उनके खिलाफ थे.
डोरू ने कहा, "आशुतोष के खिलाफ हालात थे, क्योंकि मैच वलसाड में खेला जा रहा था, जहां गुजरात की स्थिति गेंदबाजों के अनुकूल थी. मैच के लिए रेलवे की लाइनअप को लेकर भी कुछ विवाद था, क्योंकि टॉस के दौरान दो अलग-अलग टीम शीट पेश की गई थीं." एक में आशुतोष का नाम था, जबकि दूसरे में नहीं. डोरू ने कहा, "इस भ्रम के कारण, मुझे गेंदबाज कर्ण शर्मा को आशुतोष से पहले बल्लेबाजी के लिए भेजना पड़ा, जब हम पहली पारी में 135/5 पर थे, क्योंकि हमें आशुतोष के मैच में खेलने के लिए बीसीसीआई से अनुमति लेनी थी."
रोटी के लिए अंपायरिंग की
बता दें कि, मध्य प्रदेश के रतलाम में जन्में आशुतोष ने महज 8 साल की उम्र में ही क्रिकेटर बनने का सपना देख लिया था और फिर इस सपने को पूरा करने के लिए वह से दूर इंदौर आ गए. उस वक्त उनके पास खाना खरीदने के भी पैसे नहीं थी. इसीलिए उन्होंने मैचों में अंपायरिंग करके एक वक्त के खाने का इंतजाम करते. वह काफी छोटी सी जगह रहते थे. इन संघर्षों के बावजूद उन्होंने क्रिकेटर बनने का सपना नहीं छोड़ा और दिन रात अपने सपने को पूरा करने में लग गए.
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