INDvsAUS: 100 टेस्ट खेलने जा रहे चेतेश्वर पुजारा के अनसुने किस्से, मां के देहांत से टूटे पर रोए नहीं, दर्द में दवा नहीं लेते

INDvsAUS: 100 टेस्ट खेलने जा रहे चेतेश्वर पुजारा के अनसुने किस्से, मां के देहांत से टूटे पर रोए नहीं, दर्द में दवा नहीं लेते

यह 2006 की बात है, चेतेश्वर पुजारा (Cheteshwar Pujara) ने एक जिला स्तरीय मैच समाप्त होने के बाद अपनी मां रीना को फोन करके कहा कि वह पिता अरविंद को उन्हें लेने के लिए राजकोट के बस स्टैंड पर भेज दे. बस स्टैंड पर पहुंचने पर चेतेश्वर ने अपने पिता को नहीं देखा लेकिन उनके एक रिश्तेदार ने उन्हें सूचित किया कि उनकी मां अब इस दुनिया में नहीं रही. ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाजों की शरीर पर चलाई गई गेंदें हों या फिर अपनी प्यारी मां का आकस्मिक निधन, पुजारा को इन्होंने अंदर तक झकझोर दिया लेकिन वह कभी उनके संकल्प को नहीं तोड़ पाए. अब भारतीय क्रिकेट का यह शांत योद्धा अपना 100वां टेस्ट मैच खेलने की दहलीज पर खड़ा है. चेतेश्वर पुजारा शुक्रवार (17फरवरी) को दिल्ली टेस्ट में अपना 100वां टेस्ट मैच खेलेंगे और इसका गवाह बनने के लिए उनके पिता अरविंद, पत्नी पूजा और बेटी अदिति भी स्टेडियम में मौजूद रहेंगे.

चेतेश्वर के पिता अरविंद पुजारा ने राजकोट से पीटीआई से कहा, ‘किसी भी खेल में 100 मैच खेलना बड़ी उपलब्धि होती है. इसके लिए आपको बहुत अधिक समर्पण और अनुशासन, फिटनेस और अच्छे भोजन की जरूरत होती है. इन सभी के संयोजन से आपको अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में लंबे समय तक खेलने में मदद मिलती है. निश्चित तौर पर थोड़ा भाग्य का साथ होना भी जरूरी है.’

पिता ने की क्रिकेटर बनाने की तैयारी

सौराष्ट्र की तरफ से छह प्रथम श्रेणी मैच खेलने वाले अरविंद ने कहा, ‘जब मैंने चेतेश्वर को कोचिंग देनी शुरू की तो उस समय दिमाग में कोई लक्ष्य नहीं था और हमने किसी चीज के बारे में सोचा भी नहीं था. लेकिन वह शुरू से ही कड़ी मेहनत करने वाला था और बेहद अनुशासित था जिसका उसे फायदा मिला.’ 

 

मां के निधन पर चुप हो गए

जब चेतेश्वर की बात आती है तो सबसे पहले उनके संकल्प पर बात होती है. अरविंद ने याद किया किस तरह से अपनी मां के निधन के बाद चेतेश्वर चुप हो गए और उन्होंने किसी के सामने या अकेले में आंसू नहीं बहाए. उन्होंने कहा, ‘वह कभी रोया नहीं बस चुप हो गया. यहां तक कि जब वह मुंबई में आयु वर्ग का मैच खेलने के लिए गया तो मैंने टीम के कोच से उस पर निगाह रखने के लिए कहा था क्योंकि मैं चिंतित था. वह मुश्किल दौर था. आप कितनी भी कोशिश कर लो, मां की जगह नहीं ले सकते.’

 

 चेतेश्वर हालांकि बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे जिससे उन्हें दृढ़ संकल्प बनने में मदद मिली. अरविंद ने कहा, ‘मेरी पत्नी के गुरुजी हरचरण दास ने उसका काफी ध्यान रखा. यहां तक कि उसकी आंटी योग गुरु जी के लिए भोजन तैयार करती थी और आश्रम में रहती थी उन्होंने भी मेरे बेटे का ध्यान रखा. मैं यह नहीं कहूंगा कि केवल मैंने ही उसका करियर बनाया है, उसके गुरुजी की भूमिका इसमें अहम रही. उन्होंने उसे मानसिक रूप से मजबूत बनाया.’

 

पुजारा क्यों नहीं लेते पेनकिलर

शरीर पर लगी चोटों का तो उपचार किया जा सकता है लेकिन दिल पर लगी चोट का कोई इलाज नहीं है. अरविंद भाई ने कहा, ‘ शरीर का दर्द तो दिखता है लेकिन अंदरूनी चोट, दिल की चोट नहीं दिखती.’ लेकिन इसके बाद उन्होंने खुलासा किया कि कैसे उनका बेटे की दर्द सहने की क्षमता बढ़ी. उन्होंने कहा, ‘मेरे एक डॉक्टर मित्र ने उसे (चेतेश्वर) को सलाह दी कि चोट लगने पर कभी दर्द निवारक दवा नहीं लेना. दर्द निवारक दवाओं से चोट जल्दी ठीक नहीं होती. आपने देखा होगा कि ऑस्ट्रेलिया में उस टेस्ट मैच के दौरान उसने अपने शरीर पर 11 चोट झेली थी.’

 

मां के कहने पर करने लगे पूजा

चेतेश्वर भावनात्मक दर्द को कैसे खेलते हैं, इस पर अरविंद ने कहा, ‘जब वह बच्चा था तो वीडियो गेम खेलता था और हमेशा खेलना चाहता था. उसकी मां ने एक शर्त रखी कि अगर वह 10 मिनट तक पूजा करेगा तो वह उसे वीडियो गेम खेलने देगी. तब उसकी मां ने मुझसे कहा था कि मैं चाहती हूं कि हमारे बेटे का भगवान में विश्वास रहे. अगर वह प्रतिदिन 10 मिनट भी पूजा करेगा तो इससे उसे एक खिलाड़ी के रूप में मुश्किल परिस्थितियों से बाहर निकलने में मदद मिलेगी. चेतेश्वर आध्यात्मिक बन गया जिससे उसे काफी मदद मिली. मां जो सीख देती है उसे दुनिया का कोई भी विश्वविद्यालय नहीं दे सकता.’