IND vs ENG टेस्ट में गेंद विवाद के बीच जानिए कहां से आती है रिप्लेसमेंट बॉल, कैसे होता है चयन, अंपायर किस तरह लेते हैं फैसला

भारत और इंग्लैंड के बीच टेस्ट सीरीज में गेंद को काफी सुर्खियां मिली है. नई गेंद काफी जल्दी खराब हो रही है और इसके चलते इन्हें बार-बार बदलना पड़ रहा है. भारत और इंग्लैंड दोनों ही टीमों की ओर से गेंद को लेकर शिकायत दिखी है.

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भारत और इंग्लैंड के बीच टेस्ट सीरीज में गेंद को काफी सुर्खियां मिली है. नई गेंद काफी जल्दी खराब हो रही है और इसके चलते इन्हें बार-बार बदलना पड़ रहा है. भारत और इंग्लैंड दोनों ही टीमों की ओर से गेंद को लेकर शिकायत दिखी है. लेकिन टेस्ट मैचों के दौरान गेंद कब, कैसे बदली जाती है. साथ ही जो रिप्लेसमेंट बॉल आती है वे कहां से आती हैं.

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टेस्ट मैच के दौरान एकदम नई गेंदों का सेट आता है. जब भी किसी टीम की पारी शुरू होती है तब इसमें गेंद ली जाती है. साथ जब किसी पारी में 80 ओवर हो जाते हैं तब भी नई गेंद निकाली जाती है. इनके अलावा मान लीजिए गेंद खराब या गुम हो गई तब अंपायर पुरानी गेंदों के सेट में गेंद चुनते हैं. ये पुरानी गेंद फर्स्ट क्लास मैचों के दौरान इस्तेमाल हो चुकी होती है. 

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इंटरनेशनल मैच के दौरान गेंदमुहैया करने की जिम्मेदारी मेजबान बोर्ड की होती है. जिस मैदान पर मैच होना होता है उससे जुड़ी एसोसिएशन पुरानी गेंदों की व्यवस्था करती है. जैसे अगर भारत में वानखेडे स्टेडियम में टेस्ट होना है तो मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन गेंद का बंदोबस्त करेगी. वहीं नई गेंद बोर्ड देता है.

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गेंदों को मैदानी अंपायर तक ले जानी की जिम्मेदारी चौथे अंपायर पर होती है. वह पुरानी गेंद मिलने के बाद उन्हें गॉज (मापक) के जरिए जांचता है. जो गेंद एक के अंदर से निकल जाती है और दूसरे में से नहीं उसे खेलने लायक माना जाता है. वह बॉल लाइब्रेरी (बक्से) में रखी जाती है. गेंद के खराब या गुम होने पर इसी में खेलने के लिए दूसरी गेंद चुनी जाती है. जो गेंद दोनों गॉज के अंदर से निकलती है उसे खेल के लिए छोटी माना जाता है. जो दोनों में से ही नहीं निकलती वह बड़ी होती है. 

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किसी एक टेस्ट मैच के दौरान कितनी गेंद रिप्लेसमेंट के रूप में रहेंगी उसकी संख्या अलग-अलग होती है. यह वेन्यू पर निर्भर करता है. भारत, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट के दौरान 20 गेंद रिप्लेसमेंट के लिए होती है लेकिन कुछ देशों में इनकी संख्या 12 भी हो सकती है. भारत में टेस्ट क्रिकेट एसजी गेंद से खेला जाता है जबकि इंग्लैंड-वेस्ट इंडीज में ड्यूक्स का इस्तेमाल होता है. बाकी देशों में कुकाबुरा गेंद काम में ली जाती है.

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चौथे अंपायर को अगर लगता है कि जो गेंदें टेस्ट के लिए दी गई हैं उनमें से ज्यादातर ऐसी हैं जिनसे खेल नहीं हो सकता है तब मैदानी अंपायर, थर्ड अंपायर और मैच रेफरी मिलकर स्टेट एसोसिएशन को गेंद मुहैया कराने को कहते हैं. नई गेंदों के लिए भी यही प्रक्रिया रहती है. हर नई गेंद को खेल से पहले गॉज से जांचा जाता है. कई बार जब गेंद बहुत जल्दी-जल्दी खत्म होती जाती हैं तब अंपायर्स टीमों से नेट्स में इस्तेमाल गेंद मांग सकते हैं. लेकिन वे ही गेंद खेल में काम आती हैं जो गॉज टेस्ट पास करती हैं.

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जब अंपायर रिप्लेसमेंट गेंद चुनते हैं तो बदली जाने वाली जैसी गेंद का मिलना मुश्किल होता है. ऐसे में उससे मिलान खाती बॉल को लिया जा सकता है. वह गेंद बहुत पुरानी भी हो सकती है या बहुत नई भी. इसी वजह से अंपायर जल्दी से गेंद में बदलाव नहीं करते हैं. अगर उसकी हालत पूरी तरह से खराब हो गई तब अलग बात है. गेंदों को उनके मुलायम होने के चलते नहीं बदला जाता. जब वह दोनों गॉज में से नहीं निकलती है तब ही बदली जाती है. अंपायर्स को जब लगता है कि गेंद से छेड़छाड़ हुई है तब वे खुद से भी उसे बदल सकते हैं.