भारत के घरेलू क्रिकेट में रणजी ट्रॉफी (Ranji Trophy) का सीजन 2022-23 जारी है. जिसमें एक से बढ़कर एक खिलाड़ी अपने खेल से सभी का दिल जीत रहे है. इसी कड़ी में महाराष्ट्र से आने वाले अजीम काजी की कहानी बिल्कुल ही अलग है. उन्होंने पिता का देहांत होने के बाद अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए क्रिकेट का सहारा लिया और घर छोड़कर जहां भी, जितने भी रुपये में क्रिकेट खेलने का मौका मिला. उस मौके को उन्होंने दोनों हाथों से भुनाया और अब रणजी ट्रॉफी में महाराष्ट्र के लिए शतक जड़कर अपनी टीम की मजबूत वापसी कराई है. जिसके चलते उनका नाम और उनके संघर्ष का सफर सबके सामने आया है.
94 रन पर गिर गए थे 7 विकेट
अजीम की टीम महाराष्ट्र के एक समय 94 रन पर सात विकेट गिर गए थे. इसके बाद उन्होंने पारी को संभाला और शानदार शतक जड़ते हुए 124 रन की पारी खेली और अक्षय पालकर के 100 रन की पारी से 8वें विकेट के लिए 219 रन की साझेदारी बनाई. जिससे महाराष्ट्र ने ग्रुप बी मैच के तीसरे दिन दिल्ली के खिलाफ खराब स्थिति से निकलकर पहली पारी में 324 रन बनाए. महाराष्ट्र ने इस तरह दिल्ली को पहली पारी में 191 रनों पर समेट दिया था. इसके बाद दिल्ली ने तीसरे दिन के अंत तक दूसरी पारी में 5 विकेट पर 233 रन बना लिए हैं. जिससे उनकी टीम ने महाराष्ट्र पर 100 रनों की बढ़त बना डाली है.
11 साल पहले हुआ था पिता का देहांत
इस तरह शतक जड़ने वाले अजीम काजी के सफर की बात करें तो उन्हें इस मुकाम तक पहुंचने के लिए तमाम मुसीबतों का सामना करना पड़ा. लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. 29 साल के अजीम का जन्म अहमदनगर में हुआ था और वह अपने करियर का 5वां घरेलू सीजन जबकि तीसरा रणजी ट्रॉफी सीजन खेल रहे हैं. ऐसे में उनके जीवन में सबसे बड़ी समस्या तब सामने आई जब 11 साल पहले उनके पिता का देहांत हो गया था.
परिवार का पेट पालने के लिए खेला क्लब क्रिकेट
अजीम बताते हैं कि जब उनके पिता का देहांत हो गया था तो परिवार का पेट पालने के लिए उन्हें क्रिकेट के अलावा और कुछ नजर नहीं आ रहा था. जिसके चलते उन्होंने घर छोड़ा और क्लब क्रिकेट में पूरी तरह से खुद को समर्पित कर दिया. जिसके लिए उन्हें एक हजार से डेढ़ हजार रुपये प्रति सप्ताह भी मिल जाते थे. उस समय के बारे में बाएं हाथ के ऑल राउंडर अजीम ने कहा, "ये बड़ी बात है कि क्लब क्रिकेट यहां पर चेन्नई या फिर मुंबई की तरह उतना प्रोफेशनल नहीं है. लेकिन आपको लाल गेंद के साथ-साथ सफेद गेंद से भी अच्छा क्रिकेट खेलने को मिलता है. मैंने बस इतना ही किया.. घर छोड़कर क्रिकेट खेला, क्योंकि मुझे नहीं पता था कि अपने परिवार को चलाने के लिए और क्या करना चाहिए."
साल 2018-19 सीजन में बदली किस्मत
क्लब क्रिकेट खेलते-खेलते लेफ्ट आर्म स्पिनर और बड़े-बड़े शॉट्स के लिए जाने वाले अजीम को नेहरु कप में खेलने का मौका मिला. जहां पर राज्य टीम के चयनकर्ताओं की नजर अजीम पर पड़ी और उन्हें सैय्यद मुश्ताक अली टी20 ट्रॉफी के लिए महारष्ट्र की टीम में शामिल कर लिया गया. इस तरह पहली बार भारतीय घरेलू क्रिकेट में शामिल होने को लेकर अजीम ने कहा, "दरअसल, उस समय राज्य की टीम ने खराब प्रदर्शन किया था और उन्हें नए खिलाड़ियों की तलाश थी. उस समय, मुझे नहीं पता था कि वे हमें टूर्नामेंट खिलाने ले जा रहे हैं. लेकिन उस सीज़न में मुझे चुना गया और एक सप्ताह में 4 से 5 हजार रुपये मिलने से सीधे मुश्ताक अली की भूमिका निभाने के लिए मुझे एक लाख रुपये मिले. मैंने अपने जीवन में इतना अधिक पैसा कभी नहीं देखा था."
कोरोना काल में गए इंग्लैंड
अजीम ने कोरोना काल को भी याद किया और बताया कि कोरोना के समय जब पूरे भारत में घरेलू क्रिकेट नहीं हो रहा था तो परिवार के पालन के लिए उन्होंने इंग्लैंड जाना चुना. जहां के कॉन्सेट क्रिकेट क्लब, जो डरहम में ए लीग में खेलता है, उसके लिए खेलते हुए उन्हें प्रति सप्ताह 150 पाउंड (करीब 15 हजार रुपये ) मिलते थे. इस तरह उन्होंने क्रिकेट के सहारे कोरोना काल में अपने परिवार की समस्या का समाधान किया.
गायकवाड़ से काफी सीखा
अजीम अब इन दिनों महारष्ट्र के लिए घरेलू क्रिकेट में रणजी ट्रॉफी खेल रहे हैं. पिछले काफी समय से घरेलू क्रिकेट खेलने के कारण अब वह इस टीम का एक प्रमुख हिस्सा भी हैं. अजीम ने कहा कि वह टीम में शामिल धाकड़ सलामी बल्लेबाज ऋतुराज गायकवाड़ से काफी कुछ सीखते हैं. जबकि अब उनका पूरा फोकस अपनी फिटनेस पर है. जिससे वह लंबे समय तक क्रिकेट खेल सके.