Paris Olympic: अर्जुन बबूता से पहले भी चौथे स्थान पर रहने से टूटा है भारतीयों का दिल, 104 साल में 17 बार छिन गया मेडल

Paris Olympic: अर्जुन बबूता से पहले भी चौथे स्थान पर रहने से टूटा है भारतीयों का दिल, 104 साल में 17 बार छिन गया मेडल
अर्जुन बबूता 10 मीटर एयर राइफल के शूटर हैं.

Story Highlights:

अर्जुन बबूता पेरिस ओलिंपिक में चौथे नंबर पर रहते हुए मेडल नहीं जीत पाए.

अर्जुन बबूता ओलिंपिक में तीसरे भारतीय शूटर हैं जो चौथे स्थान पर रहे हैं.

अर्जुन बबूता पेरिस ओलिंपिक में मेडल जीतने से मामूली अंतर से चूक गए. 10 मीटर एयर राइफल इवेंट में वे चौथे स्थान पर रहे. अपने आखिरी निशाने से पहले तक वे मेडल की रेस में थे और सिल्वर तक लाने के दावेदार थे. लेकिन 9.5 के शॉट ने पूरा गणित बिगाड़ दिया और वे चौथे स्थान पर रहते हुए मेडल रेस से बाहर हो गए. ओलिंपिक में भारतीय एथलीट्स के साथ ऐसा कई बार हुआ है जब वे मामूली अंतर से मेडल नहीं जीत पाए. बबूता से पहले जॉयदीप कर्माकर और अभिनव बिंद्रा भी चौथे स्थान पर रहने से मेडल नहीं जीत सके. बिंद्रा भी बबूता की तरह 10 मीटर एयर राइफल इवेंट में ही हिस्सा ले रहे थे. 1920 से लेकर अभी तक 17 बार भारत को ओलिंपिक के अलग-अलग इवेंट में चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा है. जानिए कब-कब ऐसा हुआ.

अर्जुन बबूता (10 मीटर एयर राइफल)


पेरिस ओलिंपिक में अर्जुन आखिरी शॉट से पहले तक मेडल के दावेदार थे. लेकिन आखिरी शॉट उन्होंने 9.5 का मार दिया और बाहर हो गए. अगर वे 10.5 अंक ले लेते तो मेडल की रेस में बने रहते. 25 साल के इस शूटर को अब मेडल के लिए अगले ओलिंपिक का इंतजार करना होगा.

भारतीय महिला हॉकी टीम

अदिति अशोक (गोल्फ)


वर्ल्ड रैंकिंग में 200 वें स्थान पर काबिल इस खिलाड़ी ने दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को टक्कर दी लेकिन बेहद मामूली अंतर से पदक नहीं जीत सकी. टोक्यो ओलिंपिक में वह आखिरी राउंड तक सिल्वर की दावेदार थी लेकिन फिर चौथे स्थान पर फिसल गई.

 

दीपा कर्माकर (जिम्नास्ट)


दीपा कर्माकर ओलिंपिक खेलों में प्रतिस्पर्धा करने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट बनीं. रियो ओलिंपिक में महिलाओं की वॉल्ट स्पर्धा के फाइनल में जगह बनाने के बाद वह महज 0.150 अंकों से कांस्य पदक से चूक गईं. उन्होंने 15.066 के स्कोर के साथ चौथा स्थान हासिल किया.

 

अभिनव बिंद्रा (शूटिंग)


2008 में गोल्ड मेडल जीतने वाले अभिनव बिंद्रा का शानदार करियर एक परीकथा जैसे समापन की ओर बढ़ रहा था. रियो ओलिंपिक में वह भी मामूली अंतर से पदक जीतने से चूक गए. 10 मीटर एयर राइफल इवेंट में वे शूटऑफ के बाद चौथे स्थान पर रहे.

 

रोहन बोपन्ना-सानिया मिर्जा (टेनिस)


भारतीय मिक्स्ड डबल्स जोड़ी को रियो ओलिंपिक में पहले सेमीफाइनल और फिर कांस्य पदक के मुकाबले में हार मिली. इस जोड़ी को कांस्य पदक मैच में लुसी ह्रादेका और रादेक स्तेपानेक से हार का सामना करना पड़ा था.

 

जॉयदीप कर्माकर (शूटिंग)


निशानेबाज जॉयदीप करमाकर लंदन ओलिंपिक 2012 में कांस्य पदक जीतने से चूक गए. पुरुषों की 50 मीटर राइफल प्रोन शूटिंग स्पर्धा में 1.9 अंक से मेडल जीतने से दूर रह गए.

 

लिएंडर पेस-महेश भूपति (टेनिस)


लिएंडर पेस और महेश भूपति की टेनिस में भारत की संभवतः सबसे महान युगल जोड़ी एथेंस खेलों में पुरुष युगल में पोडियम पर पहुंचने से चूक गई. पेस और भूपति क्रोएशिया के मारियो एनसिक और इवान ल्युबिसिक से मैराथन मैच में 6-7, 6-4, 14-16 से हारकर कांस्य पदक से चूक गए और चौथे स्थान पर रहे. इस जोड़ी को इससे पहले सेमीफाइनल में निकोलस किफर और रेनर शटलर की जर्मनी की जोड़ी से सीधे सेटों में 2-6, 3-6 से हार का सामना करना पड़ा था.

 

कुंजारानी देवी (वेटलिफ्टिंग)


कुंजारानी देवी एथेंस ओलिंपिक 2004 में महिलाओं की 48 किग्रा भारोत्तोलन प्रतियोगिता में चौथे स्थान पर रहीं. कुंजारानी 190 किग्रा के कुल प्रयास के साथ कांस्य पदक विजेता थाईलैंड की एरी विराथावोर्न से 10 किग्रा पीछे रही.

 

पीटी ऊषा (400 मीटर हर्डल्स)


1984 के लॉस एंजिलिस ओलिंपिक में पीटी उषा 400 मीटर बाधा दौड़ में सेकंड के 100वें हिस्से से कांस्य पदक से चूक गईं. ‘पय्योली एक्सप्रेस’ के नाम से मशहूर उषा रोमानिया की क्रिस्टीना कोजोकारू के बाद चौथे स्थान पर रहीं. उनके इस प्रदर्शन ने मिल्खा सिंह की यादें ताजा कर दी थीं.

 

राजिंदर सिंह (कुश्ती)


1984 लॉस एंजलिस ओलिंपिक में राजिंदर सिंह 74 किलो भारवर्ग में कांस्य पदक की रेस में थे. लेकिन आखिरी मैच में साबन सजदी से हार गए.


भारतीय महिला हॉकी टीम


1980 मॉस्को ओलिंपिक में नेदरलैंड्स, ऑस्ट्रेलिया और ग्रेट ब्रिटेन जैसे देशों ने अफगानिस्तान पर तत्कालीन सोवियत संघ के आक्रमण के चलते खेलों का बहिष्कार किया. इसके चलते भारतीय टीम के पास पदक जीतने का बड़ा मौका था. टीम को हालांकि पदक से चूकने की निराशा का सामना करना पड़ा. आखिरी मैच में सोवियत संघ से 1-3 से हारकर भारतीय टीम चौथे स्थान पर रही.

 

सुदेश कुमार (कुश्ती)


1972 म्यूनिख ओलिंपिक में सुदेश 52 किलो भारवर्ग में कांस्य के करीब थी. लेकिन सात पेनल्टी अंकों के चलते वे चौथे नंबर पर रहे.

 

प्रेम नाथ (कुश्ती)


1972 रोम ओलिंपिक में प्रेम नाथ 57 किलो भारवर्ग में मेडल रेस मे थे. सातवें राउंड तक वे खेले और नौ पेनल्टी अंकों की वजह से तीसरे स्थान से दूर हो गए.

 

मिल्खा सिंह (400 मीटर रेस)


1960 के रोम ओलिंपिक में महान मिल्खा सिंह 400 मीटर फाइनल में पदक के दावेदार थे लेकिन वह सेकंड के 10वें हिस्से से कांस्य पदक जीतने से चूक गए. इस हार के बाद ‘फ्लाइंग सिख’ ने खेल लगभग छोड़ ही दिया था. उन्होंने इसके बाद 1962 के एशियाई खेलों में दो स्वर्ण पदक जीते लेकिन ओलिंपिक पदक चूकने की टीस हमेशा बरकरार रही.

 

भारतीय फुटबॉल टीम


1956 के मेलबर्न ओलिंपिक में भारतीय टीम ने क्वार्टर फाइनल में मेजबान ऑस्ट्रेलिया को 4-2 से हराकर सेमीफाइनल में जगह बनाई. इस मैच में ही नेविल डिसूजा ओलिंपिक में हैट्रिक गोल करने वाले पहले एशियाई बने. नेविल ने सेमीफाइनल में यूगोस्लाविया के खिलाफ टीम को बढ़त दिला कर अपने प्रदर्शन को दोहराने की कोशिश की लेकिन यूगोस्लाविया ने दूसरे हाफ में जोरदार वापसी करते हुए मुकाबले को अपने पक्ष में कर लिया. कांस्य पदक मुकाबले में भारत बुल्गारिया से 0-3 से हार गया.

 

केशव मांगवे (कुश्ती)


1952 हेलसिंकी ओलिंपिक में केशव मांगवे 62 किलो भारवर्ग में पांचवें राउंड तक गए. यहां पर अमेरिका के जोसिया हेनसन से हार गए. अगर उन्हें जीत मिलती तो वे टॉप तीन में होते और कम से कम कांस्य जीत जाते.

 

रणधीर शिंदे (कुश्ती)


1920 एंटवर्प ओलिंपिक में रणधीर 54 किलो भारवर्ग में ब्रॉन्ज मेडल के प्लेऑफ में ब्रिटेन के फिलिप बर्नार्ड से हार गए. यह मैच जीतने पर उन्हें कांसा मिल जाता.

 

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