नीला, काला, पीला, हरा और लाल... ये पांच वो रंग है, जो ओलिंपिक की पहचान है. ओलिंपिक रिंग में यही पांच रंगों का इस्तेमाल किया गया है. ओलिंपिक के हर कलर के रिंग में पूरी दुनिया सिमटी हुई है. दुनिया का हर खिलाड़ी, संस्कृति सब कुछ इन पांच रंगों में हैं. पेरिस ओलिंपिक में एक बार फिर इन पांच रंगों के रिंग में पूरी दुनिया की संस्कृति दिखने वाली है. ओलिंपिक सिम्बल में पांच रंगों के पांच रिंग होते हैं, जो आपस में एक दूसरे से जुड़े होते हैं. दुनिया के हर शख्स ने किसी ना किसी तरह से इस रिंग को देखा होगा, मगर इस रिंग का क्या मतलब है. ओलिंपिक सिम्बल में सिर्फ पांच ही रिंग क्यों होते हैं, शायद ही कोई बारे में जानता हो.
ओलिंपिक में हिस्सा लेने वाला हर खिलाड़ी भले ही मेडल जीतने के इरादे से मैदान पर उतरता हो. वो अपने देश का नाम दुनिया में चमकाना चाहता है. हर खिलाड़ी की चाह होती है कि पूरी दुनिया उसके देश को जाने. यही वो प्लेटफार्म है, जिसके जरिए दुनिया के हर छोटे बड़े देश के बारे में लोग जानते हैं. ओलिंपिक में एक जगह जब हजारों खिलाड़ी इकट्ठे होते हैं तो वहां किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं रह जाता. वहां हर कोई अपनी संस्कृति को रिप्रेजेंट करता है. जहां खिलाड़ी बिना किसी भेदभाव के एक दूसरे की संस्कृति का सम्मान करते हैं. ओलिंपिक रिंग का दरअसल मतलब भी यही है.
ओलिंपिक रिंग का मतलब पूरी दुनिया को एक धागे में बांधने का है. ओलिंपिक सिम्बल के ये पांचों रिंग पांच महाद्वीप अफ्रीका, अमेरिका, एशिया, यूरोप और ओशिनिया की एकता को रिप्रेजेंट करते हैं. सफेद रंग के ओलिंपिक झंडे पर इस रिंग का इस्तेमाल होता है.
किसकी देन है ओलिंपिक रिंग
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