भारतीय हॉकी टीम ने पेरिस ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता. टीम ने लगातार दूसरा ब्रॉन्ज जीता और भारत की ऐतिहासिक जीत के हीरो रहे पीआर श्रीजेश. स्पेन के खिलाफ पेरिस ओलिंपिक का ब्रॉन्ज मेडल श्रीजेश के करियर का आखिरी मैच भी था. उन्होंने अपने करियर के आखिरी मैच में कमाल कर दिया और देश की झोली में लगातार दूसरे ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल डाल दिया. हालांकि पेरिस में देश को टीम से गोल्ड की उम्मीद थी, मगर सेमीफाइनल में जर्मनी ने भारत के गोल्ड का सपना तोड़ दिया. जर्मनी ने भारत को 3-2 से हराया था.
श्रीजेश का मानना है कि ओलिंपिक मेडल जीतने के लिए टीम को अधिक फील्ड गोल करने होंगे. वो भारतीय हॉकी टीम में अगर कोई एक बदलाव देखना चाहते हैं तो वो गोल के लिये पेनल्टी कॉर्नर पर निर्भरता कम करना है. भारत ने पेरिस ओलिंपिक में 15 गोल किए थे और 12 गंवाए. इन 15 गोल में से नौ पेनल्टी कॉर्नर पर , तीन पेनल्टी स्ट्रोक पर और सिर्फ तीन फील्ड गोल थे. पेरिस ओलिंपिक के बाद हॉकी को अलविदा कहने वाले इस महान गोलकीपर ने पीटीआई से कहा-
ज्यादातर समय जब फॉरवर्ड सर्कल में जाते हैं तो उनका मकसद पेनल्टी कॉर्नर बनाना होता है, क्योंकि हमारा पेनल्टी कॉर्नर अच्छा है. मैं यह नहीं कहता कि फॉरवर्ड गोल करने की कोशिश नहीं करते.
ज्यादा फील्ड गोल करने की जरूरत
अगर हमारे पास पेनल्टी कॉर्नर पर गोल करने का मौका है तो उसे गंवाना नहीं चाहिये, लेकिन हमें भारतीय हॉकी टीम को अगर अगले स्तर पर ले जाना है और लगातार ओलिंपिक पदक जीतने हैं तो फील्ड गोल अधिक करने होंगे, क्योंकि डिफेंस की भी सीमाएं होती हैं. मुझे कहना नहीं चाहिए, लेकिन हम जर्मनी नहीं हैं कि 60 मिनट तक एक गोल बचा सके. उनकी रणनीति और शैली हमसे अलग है . हमने गलतियां की और कुछ गोल गंवाए, लेकिन हमारे फॉरवर्ड को अधिक गोल करने होंगे, ताकि डिफेंस पर बोझ कम हो.
श्रीजेश संन्यास के बाद अब जूनियर प्लेयर्स को तैयार करेंगे. उन्हें हॉकी इंडिया ने मेंस जूनियर टीम का हेड कोच नियुक्त किया है. श्रीजेश का कहना है कि जूनियर खिलाड़ियों के प्रति भी जिम्मेदारी बढ़ती है; आप खिलाड़ियों और कोचिंग स्टाफ के बीच मध्यस्थ हो जाते हैं. आप टीम के प्रवक्ता और देश के दूत बन जाते हैं और ऐसे में आपको मिसाल पेश करनी होती है.
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