ओलिंपिक्स जुलाई-अगस्त में पेरिस में खेले जाने वाले हैं. यह आधुनिक ओलिंपिक खेलों का 30वां एडिशन होगा. 1896 से इनका आगाज हुआ है और तीन बार 1916, 1940 और 1944 में ओलिंपिक खेल रद्द हुए. इसकी वजह विश्व युद्ध रहे. लेकिन प्राचीन और आधुनिक ओलिंपिक खेलों के बीच काफी बदलाव हुए हैं. इनमें सबसे बड़ी तब्दीली कपड़ों को लेकर है. ग्रीस में जब प्राचीन समय में ओलिंपिक खेल होते थे तब एथलीट बिना कपड़ों के हिस्सा ले सकते थे. लेकिन आज अगर कोई ऐसा करता है तो यह बहुत बड़ा स्कैंडल हो जाएगा और दुनियाभर में हंगामा हो जाएगा. अब हरेक खेल के लेकर एक तय ड्रेस कोड है और इसका पालन करना जरूरी होता है.
प्राचीन ओलिंपिक खेलों में खिलाड़ी शुरुआत में लंगोट पहनकर खेला करते थे. लेकिन ईसा पूर्व आठवीं सदी में ओलिंपिक एथलीट नग्न ही हिस्सा लिया करते थे. ट्रेक एंड फील्ड, डिस्कस थ्रो, कुश्ती, मुक्केबाजी और घुड़दौड़ में शामिल होने वाले खिलाड़ी बिना कपड़ों या सुरक्षात्मक कपड़ों के खेला करते थे. बताया जाता है कि ओलिंपिक में नग्न हिस्सा लेने की परंपरा की शुरुआत ऑर्सिपस नाम के एक धावक ने की थी. उसने रेस में एकदम नग्न होकर हिस्सा लिया. उसने इसे यूनानियत का प्रतीक बताया. उसने 180 मीटर की रेस जीती थी. कुछ इतिहासकार मानते हैं कि अकानथस नाम का धावक सबसे पहले बिना कपड़ों के खेलने उतरा था. फिर माना जाने लगा कि अगर एथलीट बिना लंगोट के उतरेगा तो उसे दौड़ने में मदद मिलेगी. इसके बाद से एथलीट इसी तरह से शामिल होने लगे.
जब लंगोट पर फिसलकर गिर गया एथलीट
कई बार तो वे जैतून के तेल का मालिश कर उतरते थे जिससे कि शारीरिक संरचना का बेहतर तरीके से प्रदर्शन किया जा सके. कहा जाता है कि एथलीट अपने देवताओं हरक्युलिस जैसा बनने के लिए नग्न होकर खेलना पसंद करते थे. प्राचीन यूनान में ओलिंपिक में जीतने वाले एथलीट का काफी सम्मान होता था. अंग्रेजी शब्द 'gymnasium' यूनानी शब्द जिम्नोस से आता है और इसका मतलब नग्न होता है. एक रिपोर्ट में लिखा गया है कि सातवीं ईस्वी में एक धावक अपनी लंगोट पर फिसलकर गिर गया था. इसके बाद एक मजिस्ट्रेट ने आदेश दिया कि एथलीट नग्न होकर ही खेल सकेंगे.
कब शुरू हुए थे प्राचीन ओलिंपिक खेल
पहले प्राचीन ओलिंपिक खेल 2800 साल पहले माउंट ओलिंपस के नाम पर ओलिंपिया कस्बे में खेले गए थे. 776 ईसा पूर्व से 393 ईस्वी तक वे हर चार साल पर आयोजित होते थे. तब ओलिंपिक खेलों में कुश्ती, मुक्केबाजी, डिस्कस थ्रो, घुड़दौड़ और दौड़ होती थी. लेकिन आधुनिक ओलिंपिक्स की तरह तब न तो टॉर्च रिले होती थी और न ही महिलाए हिस्सा लेती थी. कई बार तो स्पर्धाएं काफी निर्दयताभरी हो जाती थी. प्राचीन ओलिंपिक खेलों में किसी तरह का कोई मेडल नहीं होता था. केवल विजेता को पुरस्कार मिलता था और इसके तहत उसे ओलिंपिया के पवित्र जैतून के पेड़ की पत्तियों का बना ताज दिया जाता था. ऐसा ताज 2004 एथेंस ओलिंपिक्स के दौरान भी दिया गया था. जो खिलाड़ी नियम तोड़ते थे उन्हें सरेआम कोड़े पड़ते थे.