भारत के प्रियांशु राजावत (Priyanshu Rajawat) ने ऑर्लियंस मास्टर्स सुपर 300 का खिताब जीत लिया है. उन्होंने फाइनल में डेनमार्क के मेग्नस योहानसन को तीन गेम तक चले मुकाबले में हराया. उन्होंने फाइनल मुकाबला 68 मिनट में 21-15, 19-21, 21-16 से अपने नाम किया. प्रियांशु राजावत ने पहली बार सुपर 300 खिताब जीता है. साथ ही साल 2023 में बीडब्ल्यूएफ वर्ल्ड ट्यूर जीतने वाले वे पहले भारतीय हैं. उन्होंने ऑर्लियंस मास्टर्स सुपर 300 टूर्नामेंट के दौरान केवल एक गेम गंवाया और वह भी फाइनल में. इससे पहले उन्होंने सभी मुकाबले लगातार गेम में अपने नाम किए.
थॉमस कप (2022) जीतने वाली भारत की टीम का हिस्सा रहे 21 साल के राजावत ने खिताबी कामयाबी हासिल करने के सफर में अपने से ऊपर की रैंकिंग के कई खिलाड़ियों को हराया. इनमें सेमीफाइनल में विश्व रैंकिंग में 35वें स्थान पर काबिज न्हाट नगुयेन तो क्वार्टर फाइनल में दुनिया के 12वें नंबर के खिलाड़ी निशिमोटो को हराया था. राजावत की वर्ल्ड रैंकिंग 58वीं हैं. योहानसन वर्ल्ड रैंकिंग में 49वें नंबर पर हैं.
कैसा रहा फाइनल मुकाबला
प्रियांशु ने बैकहैंड स्मैश और फिर विनर के साथ ब्रेक तक 11-8 की बढ़त बना ली. भारतीय खिलाड़ी ने बढ़त को बरकरार रखा और दो क्रॉस कोर्ट स्मैश के साथ 18-11 की बढ़त हासिल की और फिर आसानी से पहला गेम जीता. दूसरे गेम में योहानसन ने अपने डिफेंस को मजबूत किया और अच्छी शुरुआत करते हुए 6-3 की बढ़त बनाई.
प्रियांशु ने कुछ शॉट नेट पर मारे जिससे डेनमार्क का खिलाड़ी ब्रेक तक 11-8 से आगे था. प्रियांशु ने इसके बाद कई गलतियां की जिसका फायदा उठाकर योहानसन ने स्कोर 14-9 कर दिया. भारतीय खिलाड़ी ने वापसी करते हुए 17-15 की बढ़त बनाई लेकिन योहानसन ने धैर्य बरकरार रखते हुए गेम जीत लिया. तीसरे और निर्णायक गेम में प्रियांशु ने शानदार शुरुआत करते हुए 5-0 की बढ़त बनाई लेकिन डेनमार्क के खिलाड़ी ने 9-9 के स्कोर पर बरबारी हासिल कर ली.
प्रियांशु ब्रेक तक 11-9 से आगे थे. भारतीय खिलाड़ी ने हालांकि इसके बाद योहानसन को अधिक मौके नहीं दिए. भारतीय खिलाड़ी ने सात चैंपियनशिप अंक हासिल किए लेकिन इसके बाद तीन शॉट बाहर मारे लेकिन अगला अंक जीतकर खिताब अपने नाम किया.
कौन हैं प्रियांशु राजावत
प्रियांशु जब छह साल के थे तब उन्होंने बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया था. उनके बड़े भाई कुनाल भी यह खेल खेला करते थे. आठ साल की उम्र में प्रियांशु ने ग्वालियर में पुलेला गोपीचंद एकेडमी में एडमिशन ले लिया था. उनक रूझान फुटबॉल में भी था मगर फिर वे पूरी तरह से बैडमिंटन में रम गए. स्पीड प्रियांशु की सबसे बड़ी ताकत भी है और कमजोरी भी. शुरुआत में इसकी वजह से उन्हें काफी दिक्कतें होती थीं. मगर गोपीचंद की देखरेख में रहकर उन्होंने इस पर काम किया. प्रियांशु का परिवार मूल रूप से राजस्थान से ताल्लुक रखता है. मगर अभी मध्य प्रदेश के धार में रहता है. यहां उनके पिता जिरोक्स का काम संभालते हैं. पिछले आठ महीने से तो प्रियांशु घर ही नहीं जा पाए हैं. वे अभी हैदराबाद एकेडमी में ट्रेनिंग करते हैं.
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