किला रायपुर रूरल ओलिंपिक में 100 तौले के सोने के कप की क्या है कहानी? क्यों जीतने के बाद भी टीमें साथ नहीं ले जाती यह ट्रॉफी

किला रायपुर रूरल ओलिंपिक में 100 तौले के सोने के कप की क्या है कहानी? क्यों जीतने के बाद भी टीमें साथ नहीं ले जाती यह ट्रॉफी
किला रायपुर खेल

Highlights:

किला रायपुुर खेलों में 100 तौले सोना का कप 1960 के बाद से आया.

किला रायपुर खेलों में हॉकी टूर्नामेंट जीतने वाली टीम को 100 तौले सोना का कप मिलता था.

किला रायपुुर खेलों की मेजबानी को लेकर खटपट के चलते 100 तौले सोना का कप अब नज़र नहीं आता.

पंजाब के किला रायपुर रूरल ओलिंपिक में अतरंगी खेलों के साथ ही रंगबिरंगी छटा और महंगी इनामी राशि के चलते भी सुर्खियां बटोरता है. इस इवेंट में अलग-अलग खेलों के लिए अलग-अलग इनामी रकम रहती है. लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान खींचता है 100 तौले सोना का कप. यह ट्रॉफी कुछ साल पहले तक किला रायपुर रूरल ओलिंपिक की शान हुआ करती थी. इन खेलों में होने वाले हॉकी टूर्नामेंट के विजेता को 100 तौले सोने का कप दिया जाता था. लेकिन जीतने वाली टीम इस कप को साथ नहीं लेकर जाती थी ऐसे में आयोजकों के पास में ही इसे छोड़ दिया जाता था. अब जान लेते हैं कि इस 100 तौले सोने के कप की कहानी क्या है और क्यों अब यह ट्रॉफी किला रायपुर खेलों में नहीं दिखती. 

कहा जाता है कि 1960 के दशक में नारंगवाल गांव के प्रहलाद सिंह ग्रोवाल ने अपने छोटे बेटे भगवंत सिंह की याद में यह कप बनवाया था. भगवंत की कम उम्र में ही मौत हो गई थी. किला रायपुर में होने वाले हॉकी टूर्नामेंट को भगवंत मेमोरियल हॉकी टूर्नामेंट भी कहा जाता है. प्रहलाद सिंह ने ग्रेवाल स्पोर्ट्स क्लब को यह ट्रॉफी सौंपी थी. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि ग्रेवाल स्पोर्ट्स क्लब ही किला रायपुर खेलों का आयोजन करता था.

जीतने वाली टीमें क्यों नहीं ले जाती 100 तौले सोने का कप

 

जब भी खेलों में हॉकी टूर्नामेंट को कोई टीम जीतती तो उसे यह एक किलो सोने का कप दिया जाता था. इसके साथ नकद राशि भी दी जाती थी. लेकिन जीतने वाली टीम और उसके खिलाड़ी सोने के कप के साथ फोटो खिंचाते और फिर कप को वहीं आयोजकों के पास छोड़ देते. वे इस सोने के कप को साथ लेकर नहीं जाते. अगर किसी टीम को कप साथ लेकर जाना है तो उसे इसकी कीमत के बराबर रकम बैंक में जमानी करानी होती थी. इसके बाद वह टीम अगले साल तक ट्रॉफी अपने पास रख सकती थी. लेकिन इतिहास में कोई टीम इस कप को लेकर ही नहीं गई. ऐसे में आयोजक सोने का कप संभालते और इसे बैंक लॉकर में रखकर इसकी सुरक्षा करते.

हॉकी उपविजेता टीम के लिए बना 1 किलो चांदी का कप

 

बाद में हॉकी टूर्नामेंट में उपविजेता रहने वाली टीम के लिए चांदी का कप तैयार किया गया. यह कप एक किलो चांदी का ही बनाया गया. लेकिन इस ट्रॉफी को भी कोई टीम नहीं लेकर जाती. इसे भी आयोजक ही अपने पास संभालकर रखते हैं. लेकिन 2023 के बाद से किला रायपुर खेलों में सोने और चांदी के कप नज़र नहीं आते.

ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इन खेलों के आयोजन को लेकर ग्रेवाल स्पोर्ट्स क्लब और किला रायपुर स्पोर्ट्स सोसायटी के बीच अनबन हो गई. बाद में ग्रेवाल स्पोर्ट्स क्लब आयोजन से हट गया. अब किला रायपुर स्पोर्ट्स सोसायटी ही रूरल ओलिंपिक का आयोजन करती है. उसके पास हॉकी विजेता को देने के लिए सोने और चांदी का कप नहीं है.