टेनिस के दो महारथियों रोजर फेडरर और राफेल नडाल ने एक-दूसरे के बगल में बैठकर हाथ पकड़कर एक साथ रोते हुए लोगों को एक और अविस्मरणीय पल दिया जिसे भविष्य में भी कभी नहीं भूला जा सकेगा. लंदन के ओ टू एरेना में एक भी आंख ऐसी नहीं थी जो नम नहीं हो जहां फेडरर ने लेवर कप के दौरान टेनिस के खेल से अश्रुपूर्ण विदाई ली. यह अविस्मरणीय और भावनात्मक क्षण था. जो खिलाड़ी फौलाद के बने प्रतीत होते थे वे भावनाओं में पिघलते नजर आ रहे थे. कोई संकोच नहीं था, कोई शर्म नहीं थी. यह ऐसा ही अवसर था.
जब फेडरर अपना आखिरी मैच खेलने के बाद अपने साथियों, अपने प्रशंसकों और परिवार का शुक्रिया अदा करने लगे तो उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े और फिर वह जोर-जोर से रोने लगे. यह अविस्मरणीय क्षण था, आखिर फेडरर भी इंसान ही हैं. इसमें कोई संदेह नहीं कि ये दोनों टेनिस कोर्ट पर कदम रखने वाले सबसे कड़े प्रतिद्वंद्वी रहे जिन्होंने खेल को फिर से परिभाषित किया. उन्होंने दिखाया कि मानव शरीर को कितना मजबूत किया जा सकता है और क्या हासिल किया जा सकता है. और इसके बावजूद उन्होंने दिखाया कि उनके फौलादी शरीर के अंदर उनके पास बच्चों जैसा दिल है जो जीत के उत्साह और हार की पीड़ा से कहीं अधिक चीजें समझता है.
उन्होंने दिखाया कि खेल के मैदान में कड़े प्रतिद्वंद्वी होने के बावजूद आप अपने प्रतिद्वंद्वियों के प्रति सम्मानपूर्ण सकते हैं. यह एक प्रेरक मानवीय पहलू है जो फेडरर और नडाल को आज की दुनिया में एक अलग मुकाम पर ले जाता है जब आक्रामकता की आड़ में दूसरे का अपमान करना फैशन बन गया है. उन्होंने अपने हाथ में रैकेट लेकर जो किया वह हमेशा नवोदित खिलाड़ियों के लिए बहुमूल्य शिक्षा रहेगी. उनका सार्वजनिक आचरण और जिस तरह से उन्होंने खुद को आगे बढ़ाया, वह बहुमूल्य और अनुकरणीय है.
प्लीज और थैंक्स के बिना बात नहीं करते
फेडरर की विनम्रता को टेनिस के उनके साथियों ने भी प्रमाणित किया है. हाल ही में एक खिलाड़ी ने खुलासा किया कि कैसे ‘लॉकर रूम’ (जहां खिलाड़ी अपना सामान रखते हैं और कपड़े बदलते हैं) के अंदर फेडरर ‘कृपया’ और ‘धन्यवाद’ के बिना बात नहीं करते. ऐसा नहीं है कि उनके पास ऐसे क्षण नहीं थे जहां वे लड़खड़ा गए हों लेकिन दो दशकों से अधिक समय तक मर्यादा, सम्मान और नम्रता बनाए रखना आश्चर्यजनक है.
अहंकार से कोसों दूर
उसके पास सबसे मुश्किल शॉट हैं, असंभव से दिखने वाले कोण से सहजता के साथ शॉट खेलना और फिर भी अहंकार उससे कोसों दूर था. वह एक जादुई शॉट खेलता था लेकिन ऐसा करने के बाद चिल्लाता नहीं था. बस एक प्यारी सी मुस्कान के साथ वह बेसलाइन पर वापस चला जाता और अपने अगले शॉट के लिए तैयार हो जाता. फेडरर ने अपने करियर में न सिर्फ 20 ग्रैंडस्लैम जीते जबकि अपने व्यक्तित्व से अपने प्रतिद्वंद्वियों और प्रशंसकों का दिल भी जीता. रोजर फेडरर की कमी खलेगी. उनके जैसा कोई दूसरा नहीं होगा.