मोहम्मद शमी एक ऐसा नाम जो पिछले 10 साल से भारतीय क्रिकेट टीम के प्रमुख किरदार बना हुआ है. उन्होंने 2013 में इंटरनेशनल क्रिकेट में कदम रखा था. तब से ही वे भारतीय पेस बॉलिंग की धुरी बने हुए हैं. उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के सहसपुर गांव से निकलकर भारत के लिए क्रिकेट खेलने का सफर बहुत लंबा और मुश्किलों भरा था. लेकिन शमी ने मुश्किलों से हारने के बजाय टकराने का फैसला लिया और हरेक कदम के साथ उन पर विजय हासिल की. अब जब उनकी गेंदें वर्ल्ड कप 2023 में विरोधी बल्लेबाजों के डंडे और नींदें दोनों उड़ा रही हैं तब जान लेते हैं कि मोहम्मद शमी यूपी से बंगाल होते हुए भारतीय टीम में कैसे दाखिल हुए हैं और किस तरह सबकी पसंद बन गए.
चीनी की मिलों के लिए मशहूर सहसपुर गांव तौसिफ अहमद नाम के युवक का भी घर है. यह शख्स जवानी के दिनों में तेज गेंदबाज हुआ करता था. आसपास के गांवों में खेला करता और खुद वाहवाही बटोरता. लोगों ने कहा कि आगे जाओ, शायद घरेलू क्रिकेट खेल जाओ. लेकिन तौसिफ के साथ ऐसा नहीं हो सका. यह आदमी घर-गृहस्थी में रचबस गया और फिर क्रिकेट से दूर होता चला गया. लेकिन जब तौसिफ के बच्चे हुए तो उसने ठाना कि बच्चों के अरमानों का हश्र उसकी तरह नहीं होगा. जब अपने एक बच्चे शमी को उन्होंने क्रिकेट के मैदान पर धूम मचाते हुए देखा तो उसके सपने पूरे करने में लग गए. पिता की तरह शमी भी तेज बॉलिंग करते थे. तौसिफ ने मन बना लिया और 15 साल के शमी को लेकर गांव से 22 किलोमीटर दूर मुरादाबाद पहुंच गए. वहां क्रिकेट कोच बदरुद्दीन से कहा कि यह तेज बॉल कराता है. इसे क्रिकेटर बना दो.
यूपी क्रिकेट में नहीं मिला मौका
बदरुद्दीन ने शमी का ट्रायल लिया और उसकी पेस देखते ही ठान लिया कि यह लड़का उनका शागिर्द बनने लायक है. उन्होंने एक साल तक शमी को मांजा और यूपी के अंडर-19 क्रिकेट के लिए तैयार किया. फिर आया टीम सेलेक्शन का दिन. शमी ने बॉलिंग तो की लेकिन टीम में नाम नहीं आया. कहा गया कि अगले साल लेकर आना. शमी को नहीं चुने जाने की वजह राजनीति मानी जाती है. बदरुद्दीन ने सोचा कि एक साल निकालने से अच्छा है कहीं और जाकर किस्मत आजमाई जाई. उन्होंने शमी को कोलकाता जाने को कहा.
कोलकाता जाना आसान था लेकिन वहां क्रिकेट के मौके मिलने मुश्किल. बड़े क्लब में बिना जान-पहचान के जगह नहीं मिलती. ऐसे में शमी ने छोटे क्लबों में खुद को झोंक दिया. एक बार डलहोजी एथलेटिक क्लब की ओर से खेलते हुए उन पर बंगाल क्रिकेट के तत्कालीन असिस्टेंट सेक्रेटरी देबब्रत दास की नज़र पड़ी. उन्होंने देखा कि पतली-दुबली कदकाठी वाला लड़का दौड़कर आता है और साफ-सुथरे एक्शन के साथ एकदम सटीक सीम पर गेंद को पटकता है. यह देखकर दास मुरीद हो गए. उन्होंने इस लड़के को अपने साथ जोड़ने का मन बना लिया. उन्होंने शमी को अपने बच्चे की तरह अपना लिया और खुद के घर में रखने लगे. फिर अपनी टीम में शामिल किया और 75 हजार रुपये सीजन का कॉन्ट्रेक्ट दिया.
'एक विकेट, एक प्लेट बिरयानी'
शमी के आने से पहले टाउन क्लब का खेल सुधरा और उसने सबका ध्यान खींचा. नज़रें तो शमी ने अपनी तरफ खींची. यहीं से बिरयानी को लेकर उनका प्यार सबके सामने आया. देबब्रत दास ने एक बार कहा था कि जब भी टीम को विकेट चाहिए होता तो वह चिल्लाते और कहते, 'एक विकेट, एक प्लेट बिरयानी'. इसके बाद शमी पक्के से विकेट निकाल देते. सालभर बाद शमी को विजय हजारे ट्रॉफी के लिए बंगाल टीम में चुन लिया गया. वहीं घरेलू क्रिकेट में वह मोहन बागान क्लब के लिए खेलने लगे. यहां पर खेलते हुए उन्हें एक दिन सौरव गांगुली को ईडन गार्डंस में बॉलिंग कराने का मौका मिला. दादा भी बॉलिंग को देखकर खुश हो गए. उन्होंने सेलेक्टर्स से बात की और बंगाल रणजी टीम में चुनने के लिए कहा.
पाकिस्तान के खिलाफ मैच से किया इंटरनेशनल डेब्यू
जनवरी 2013 में पाकिस्तान के खिलाफ शमी ने वनडे डेब्यू किया. 11 महीने बाद वेस्ट इंडीज के खिलाफ टेस्ट डेब्यू हुआ और उन्होंने नौ विकेट लिया. इसके बाद की कहानी किसी से छुपी नहीं है. इस खिलाड़ी के लिए पिछले कुछ साल पर्सनल लेवल पर मुश्किल भरे रहे हैं. पत्नी हसीन जहां से तलाक के मसले को लेकर चल रही चिंताओं ने उन्हें मानसिक तौर पर काफी परेशान किया. उन्होंने कुछ साल पहले कहा था कि इसके चलते उनके मन में खुदकुशी के ख्याल आते थे. लेकिन परिवार का साथ मिलने से वे इस मुश्किल दौर से बाहर निकले.
आज की तारीख़ में दुनिया में शमी से बेहतर सीम बॉलर मिलना मुश्किल है. वर्ल्ड कप 2023 में केवल दो मैच में नौ विकेट लेकर वे सनसनी फैला चुके हैं. यह खिलाड़ी आज भी ऑफ सीजन में आराम से बैठने के बजाए अपने खेतों में जाकर पसीना बहाता है. उन्होंने खेतों में तीन अलग-अलग तरह की पिच बना रखी है और उन पर अलग-अलग तरह की बॉलिंग का अभ्यास करते हैं. यही वजह है कि उनकी सीम बॉलिंग हर दिन के साथ बेहतर होती जा रही है.
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