मोहम्मद सिराज: पिता चलाते थे ऑटो, 70 रुपये रोजाना में गुजारा, 20 की उम्र में पहली बार लेदर बॉल से खेले, हैदराबाद से निकले नंबर 1 बॉलर की कहानी

मोहम्मद सिराज: पिता चलाते थे ऑटो, 70 रुपये रोजाना में गुजारा, 20 की उम्र में पहली बार लेदर बॉल से खेले, हैदराबाद से निकले नंबर 1 बॉलर की कहानी
मोहम्मद सिराज आज भारत के बड़े क्रिकेटर्स में शामिल हैं.

Highlights:

मोहम्मद सिराज 2017 में भारतीय टीम में दाखिल हुए थे.मोहम्मद सिराज दो बार वनडे के नंबर वन गेंदबाज बन चुके हैं.

मोहम्मद सिराज आज भारतीय क्रिकेट टीम के गेंदबाजी आक्रमण के मुखिया हैं. टेस्ट हो या वनडे सबमें कमाल करते हुए इस खिलाड़ी ने खुद को तेजी से भारत के कमाल के बॉलर के रूप मे साबित किया है. लेकिन हैदराबाद की गलियों से निकलकर इंटरनेशनल लेवल तक पहुंचने का सफर सिराज ने बहुत सारी मेहनत, संघर्ष और कुर्बानियों के जरिए तय किया है. पिता ऑटो चलाते थे तो आर्थिक तंगी रहती थी लेकिन सिराज आगे बढ़े और टीम इंडिया का हिस्सा बने. फिर वह समय आया जब उन्हें भारत के लिए टेस्ट खेलने के लिए चुना गया. करियर के इस सबसे बड़े मौके पर सिराज से पिता का साथ हमेशा-हमेशा के लिए छूट गया. बीमारी के चलते उनका देहांत हो गया. कोविड-19 की बंदिशों के चलते सिराज पिता को अंत समय में देख भी नहीं पाए. तब से लेकर अब तक यह गेंदबाज कई कदम आगे बढ़ चुका है और भारत के सबसे बड़े गेंदबाजों मे शुमार हो चुका है. अब जान लेते हैं मोहम्मद सिराज के संघर्ष की कहानी.

 

सिराज का जन्म हैदराबाद के पुराने शहर में मोहम्मद गौस और शबनम बानो के घर में हुआ. पिता ऑटो चलाते थे और उतने पैसे नहीं कमा पाते थे कि लग्जरी जीवन जी सकें. लेकिन हैदराबाद की तंग गलियां और कमजोर माली हालत भी सिराज के क्रिकेट से लगाव को कम नहीं कर पाईं. सातवीं कक्षा मे आने के बाद वे इस खेल से जुड़े और इसी के होकर रह गए. टेनिस बॉल से उन्होंने खेलना शुरू किया था. मां सिराज के क्रिकेट खेलने से परेशान रहती थीं लेकिन पिता का हाथ उनके साथ थे. वह सिराज को घर पर मां के हाथों पिटाई से भी बचाया करते थे.

 

सिराज ने अब्बू के बारे में क्या कहा था

 

इस बारे में सिराज ने कहा था कि अम्मी अक्सर डांटती थी लेकिन अब्बू साथ देते थे. उन्होंने कहा, 'अम्मी कहा करती थी कि तुम्हारा बड़ा भाई इंजीनियर है. तू कब तक टाइम पास करेगा.  मैं कॉलेज नहीं जाया करता था और क्रिकेट खेलता था. केवल अब्बू मुझे बचाते थे. उन्होंने मेरे लिए काफी कुछ किया. 2013 के बाद अब्बू ने कहा कि पढ़ाई नहीं कर रहे तो कोई बात नहीं. मैं अपने चाचा के क्लब के लिए खेलता था और पहले मैच में मैंने नौ विकेट लिए थे. मुझे 500 रुपये का इनाम मिला था और इनमें से 300 घर पर दिए.'

 

 

धक्का स्टार्ट बाइक से चलते थे सिराज

 

सिराज ने खेलने के दिनों के संघर्ष को लेकर कहा था कि उन्हें पिता से रोजाना के 70 रुपये मिला करते थे. इसमें से 40 तो बाइक के पेट्रोल पर ही खर्च हो जाया करते थे. बाकी के बचे 30 रुपये या तो वह बचाते या फिर किसी काम पर खर्च करते. उन्होंने कहा था, 'अब्बू रोज 70 रुपये देते थे. इनमें से 40 तो मेरी प्लेटिना के पेट्रोल पर चले जाते. बाइक भी धक्का देने पर शुरू होती थी. बाकी लोग मर्सिडीज, बीएमडब्ल्यू जैसी गाड़ियों से आते थे. मैं उनके जाने का इंतजार करता ताकि अपनी बाइक को धक्का देकर चालू कर सकूं. वे मेरी तरफ देखते भी नहीं थे और दूरी रहते थे.'

 

 

2015 में पहली बार थामी लेदर बॉल

 

2015 वह साल था जब सिराज पहली बार लेदर बॉल से खेले. इससे उनका खेल अलग ही लेवल पर चला गया. उन्होंने अपने पहले ही रणजी सीजन में 41 विकेट लिए जो हैदराबाद की ओर से सबसे ज्यादा थे. दो साल बाद 2017 में उन्हें आईपीएल कॉन्ट्रेक्ट मिल गया. सनराइजर्स हैदराबाद ने 2.6 करोड़ रुपये में उन्हें अपने साथ लिया. फिर कुछ महीनों बाद वे भारत की टी20 टीम मे चुन लिए गए. लेकिन प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो बाहर हो गए. लेकिन घरेलू क्रिकेट में उनकी बॉलिंग का खूब डंका बजा. उन्होंने विजय हजारे ट्रॉफी में सात मैच में सबसे ज्यादा 23 विकेट लिए. यहां से इंडिया ए में खेले और वहां भी कमाल किया.

 

टेस्ट डेब्यू से पहले पिता का देहांत

 

फिर आईपीएल में आरसीबी में शामिल हो गए जहां से उनके खेल का स्तर और ऊपर हुआ. आईपीएल 2020 में उन्होंने लगातार दो मेडन फेंके और ऐसा करने वाले पहले गेंदबाज बने. इससे उन्हें ऑस्ट्रेलिया दौरे पर टेस्ट सीरीज के लिए चुना गया. इस दौरे पर भारत के कई बड़े गेंदबाज चोटिल हो गए जिससे सिराज बॉलिंग अटैक के मुखिया बन गए. उन्होंने इस भूमिका में भी कमाल किया और चौथे टेस्ट में पांच विकेट चटकाए. लेकिन इस सीरीज से ठीक पहले उन्हें जीवन का सबसे बड़ा झटका लगा है. जब वे ऑस्ट्रेलिया में क्वारंटीन थे तब पता चला कि उनके पिता का बीमारी के चलते निधन हो गया. मगर उस समय के हालात की वजह से सिराज घर नहीं लौट सके. वे बुरी तरह टूटे हुए थे लेकिन टीम से मिले सपोर्ट ने उन्हें हौसला दिया. वे घंटों तक कमरे में बैठकर रोया करते थे लेकिन घरवाले उन्हें हिम्मत देते. सिराज ने पिता के सपने को अपनी ताकत बनाया जिसमें वे कहा करते थे, 'मैं भारत के लिए खेलूं और देश का नाम रोशन करूं.'

 

इसके बाद से सिराज भारत के लिए लगातार वनडे और टेस्ट खेल रहे हैं. वे 50 ओवर क्रिकेट में तो दो बार नंबर वन गेंदबाज भी बन चुके हैं. वे अभी 11 साल बाद भारत को वर्ल्ड चैंपियन बनाने की कोशिशो में लगे हुए हैं.
 

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