अफगानिस्तान क्रिकेट टीम ने टी20 वर्ल्ड कप 2024 के सेमीफाइनल में पहुंचकर इतिहास रच दिया. 2009 में यह टीम वर्ल्ड क्रिकेट लीग की डिवीजन 3 में खेल रही थी और आज भारत और साउथ अफ्रीका को छोड़कर दुनिया के सभी टेस्ट खेलने वाले देशों को हरा चुकी है. इस टीम ने तेजी से सफलता की सीढ़ियां चढ़ी हैं. लेकिन अफगानिस्तान के क्रिकेट के नक्शे पर चमकने की कहानी हैरतअंगेज है. उसके खिलाड़ी शरणार्थी कैंप्स में खेलते हुए आगे बढ़े. उन्होंने युद्ध की विभीषिका झेली तो अपनों को गंवाने का दर्द भी सहा. मोहम्मद नबी अफगानिस्तान क्रिकेट के सबसे बड़े सितारों में से एक हैं. लेकिन उन्होंने भी क्रिकेट का ककहरा रिफ्यूजी कैंप्स से ही सीखा. वे आज 45 इंटरनेशनल टीमों के खिलाफ जीत का रिकॉर्ड रखते हैं.
अफगानिस्तान क्रिकेट की नींव रखने वाले अल्लाह डाड नूरी से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा विजडन ने छापा था. यह 2004 की घटना है. विजडन ने लिखा था, 'अल्लाह डाड नूरी एक दिन काबुल में खेल रहे थे तब एक नौजवान कंधे पर AK47 टांगे हुए पहुंचता है. वह कुछ देर तक खेल को देखता है फिर उससे खेलने को कहा जाता है. बाद में वह पूछता है कि क्या वह आगे भी खेल सकता है. जब वह लौटता है तो उसके पास राइफल नहीं होती है. नूरी उससे पूछते हैं कि तुम्हारी AK47 कहां है. वह नौजवान कहता है, अरे, मुझे उसकी जरूरत नहीं. मैं क्रिकेट खेलता हूं.'
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'Second XI: Cricket in its Outposts' किताब में लिखा है कि अफगानिस्तान के पूर्व कोच ताज मलिक ने पाकिस्तान के पेशावर के पास कचा गढ़ी रिफ्यूजी कैंप में एक टीम बनाई. इसमें मोहम्मद नबी, असगर स्टानिकजई (अफगान), दौलत जादरान और शफूर जादरान एक साथ खेले थे.
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