स्केटिंग करते-करते बनीं लेग स्पिनर, 11 विकेट लेकर भारत को बना दिया विश्व विजेता

स्केटिंग करते-करते बनीं लेग स्पिनर, 11 विकेट लेकर भारत को बना दिया विश्व विजेता

अंडर-19 महिला टी-20 विश्व कप टूर्नामेंट में भारत की खिताबी जीत में अहम भूमिका निभाने वाली पार्श्वी चोपड़ा कभी स्केटिंग की दीवानी थीं. अब क्रिकेट ही उनकी जिंदगी बन गया है. भारत ने पहले महिला अंडर-19 टी-20 विश्व कप के फाइनल में रविवार (29 जनवरी) को इंग्लैंड को सात विकेट से हराकर खिताब पर कब्जा किया. इसमें पार्श्वी का बड़ा योगदान रहा. वह टूर्नामेंट में सर्वाधिक विकेट लेने वाली भारतीय बॉलर रहीं. उन्होंने 11 विकेट चटकाए थे. फाइनल की जीत में 16 साल की लेग ब्रेक गेंदबाज पार्श्वी ने चार ओवर में मात्र 13 रन देकर दो महत्वपूर्ण विकेट लिए.

 

पार्श्वी चोपड़ा बचपन से ही खेलों से जुड़ी रही हैं. क्रिकेट में आने से पहले वह स्केटिंग किया करती थी. उन्हें एथलेटिक्स का शौक था और इसी वजह से वह स्केटिंग से जुड़ गई. बाद में वह मीडियम पेसर के तौर पर क्रिकेट में आई और बाद में लेग स्पिनर बन गईं. स्पोर्ट्स तक से बातचीत में पार्श्वी ने बताया, 'वह स्केटिंग में नेशनल चैंपियनशिप में दूसरे नंबर पर रहीं. एथलेटिक्स का शौक रहा था. इस वजह से स्केटिंग करने लगी. फिर क्रिकेट देखा तो इस खेल को खेलने लगी. पहले मीडियम पेसर थी. फिर कोच विशाल भाटिया ने लेग स्पिन करने को कहा. शेन वॉर्न के वीडियो देखकर यह कला सीखी.'

 

पार्श्वी चोपड़ा को खेल का माहौल परिवार से ही मिला. उनके दादा, पिता और चाचा क्रिकेट खेल चुके हैं. पार्श्वी के पिता गौरव चोपड़ा ने कहा कि क्रिकेट से पूरे परिवार का गहरा रिश्ता है. वह और उनके भाई क्लब क्रिकेट खेल चुके हैं. पार्श्वी का छोटा भाई भी अंडर 16 में सेलेक्ट हुआ है. दादा परशुराम चोपड़ा ने बताया, 'वह हमारे खानदान की इकलौती बेटी है. मैं उसके जन्म से ही जानता था जो मैं और मेरे बेटे नहीं कर पाए वह एक दिन मेरी पोती ज़रूर कर दिखाएगी.'

 

दो एकेडमी में सीखा क्रिकेट

पार्श्वी के पिता ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘पार्श्वी बचपन से ही क्रिकेट मैच देखती थी. मगर शुरुआत में उसे स्केटिंग का जुनून था और वह इसमें काफी अच्छा कर रही थी लेकिन स्केटिंग से उसका मन अचानक हटकर क्रिकेट में लग गया. अब क्रिकेट ही उसकी जिंदगी बन चुका है.’ चोपड़ा ने कहा कि उन्हें बहुत खुशी है कि उनकी बेटी ऐतिहासिक जीत हासिल करने वाली भारतीय टीम का एक अहम हिस्सा है. उन्होंने कहा, ‘हमने कभी पार्श्वी की कोचिंग में कोई कमी नहीं होने दी. पार्श्वी ने दो अकादमी जॉइन की हैं ताकि उसे रोजाना सीखने का मौका मिले. एक अकादमी हफ्ते में तीन से चार दिन ही चलती है.’

 

पार्श्वी की मां शीतल चोपड़ा ने बताया कि उसके खेल के शौक को देखते हुए उन्होंने कभी उस पर पढ़ाई के लिए दबाव नहीं बनाया. उसे केवल खेलने दिया. उनका कहना था कि वर्ल्ड कप की जीत पर पूरे देश को गर्व है.  पार्श्वी की मां ने बताया कि जब वह 10 साल की थी तब से खेल पर मेहनत कर रही है. वह जब 12 साल की थी तब उसने अपना पहला ट्रायल दिया था, लेकिन तब उसका चयन नहीं हो पाया था. उसके बाद 13 साल की उम्र में उसका चयन हुआ. वह अंडर-16 भी खेल चुकी है. 

 

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