इंडियन प्रीमियर लीग मिनी नीलामी 2024 (IPL Auction 2024) का आयोजन मंगलवार 19 दिसंबर को दुबई में होने जा रहा है. कोका कोला एरिना में सभी 10 फ्रेंचाइजियां इस नीलामी का हिस्सा बनेंगी. नीलामी एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां आप खिलाड़ी को देखकर ये नहीं बता सकते कि उसकी कीमत कितनी ज्यादा होगी. हर बार कोई नया खिलाड़ी आकर चौंका जाता है और करोड़ों में कमाई करता है. लेकिन इस बार फ्रेंचाइजियों के पास कुछ ही पैसों का बजट है और इसी बजट में उन्हें अपने बचे हुए स्लॉट्स भरने हैं.
आपईपीएल 2024 मिनी नीलामी के लिए कुल 333 खिलाड़ियों को चुना गया है. इसमें 214 खिलाड़ी भारतीय और 119 खिलाड़ी विदेशी हैं. इसमें दो एसोसिएट नेशन के खिलाड़ी भी हैं. वहीं 116 कैप्ड भारतीय और इंटरनेशनल खिलाड़ियों के साथ 215 अनकैप्ड खिलाड़ी भी इस नीलामी का हिस्सा हैं. हालांकि इस बीच एक ऐसे नियम की चर्चा हो रही है जिसके बारे में बेहद कम लोग जानते हैं. हम द साइलेंट टाईब्रेक की बात कर रहे हैं. आखिर ये क्या नियम है और इसका इस्तेमाल कब किया जाता है. चलिए जानते हैं सबकुछ.
क्या है साइलेंट टाईब्रेक नियम?
इस साल की मिनी नीलामी पिछले एडिशन्स से अलग नहीं होने वाली है. पहले कुछ सेट्स में कैप्ड खिलाड़ियों को शामिल किया जाएगा. जबकि कुछ अनकैप्ड खिलाड़ी भी इस लिस्ट में दिखेंगे. वहीं नीलामी का प्रोसेस जैसे जैसे आगे बढ़ता जाएगा फ्रेंचाइजियों से उन खिलाड़ियों के बारे में पूछा जाएगा जिन्हें वो नीलामी में देखना चाहती हैं.
साइलेंट टाईब्रेक नियम साल 2010 से चलता आ रहा है और वर्तमान में भी ये नियम है. ये वही नियम है जिसकी बदौलत साल 2010 में शेन बॉन्ड और कायरन पोलार्ड और साल 2012 में रवींद्र जडेजा बिके थे. हालांकि इस बार इसमें कुछ बदलाव है. साल 2010 और 2012 में जब इस नियम का इस्तेमाल किया गया था तब एक खिलाड़ी पर एक टीम अधिकतम पैसे खर्च कर सकती थी और इसपर कोई लिमिट नहीं थी. साल 2010 में टीमें 750,000 डॉलर से ज्यादा खर्च नहीं कर सकती थीं. वहीं फ्रेंचाइजियों को 2 मिलियन डॉलर मार्क से आगे जाने की परमिशन नहीं थी. ऐसे में इसके बाद इस नियम को लाया गया जहां दो या उससे ज्यादा टीमें अपने अधिकतम पैसे खर्च कर सकती थीं.
कब किया जाता है साइलेंट टाईब्रेक नियम का इस्तेमाल?
हालांकि अब दो या उससे ज्यादा टीमों वाले नियम को हटा दिया गया है. लेकिन साइलेंट टाइब्रेक जारी है जिसका इस्तेमाल बेहद कम बार ही होता है. इसका इस्तेमाल तभी होता है जब एक ही खिलाड़ी के लिए दो टीमें अपना सारा पैसा लगा देती है. इसके बाद अगर दोनों टीमें और ज्यादा पैसे नहीं लगा पाती हैं तो नीलामी में साइलेंट टाईब्रेक आता है.
साइलेंट टाईब्रेक में टीमों को बीसीसीआई को एक एक्स्ट्रा अमाउंट देना होता है जिससे वो उस खिलाड़ी को खरीद पाए. ये फ्रेंचाइजी के सैलेरी कैप से अलग होता है और इसका खुलासा पब्लिक के सामने नहीं किया जाता है.
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