पीआर श्रीजेश ने पेरिस ओलिंपिक 2024 में भारतीय हॉकी टीम को कांस्य पदक दिलाकर अपने हॉकी करियर का अंत किया. स्पेन के खिलाफ कांस्य पदक के मुकाबले में भारतीय गोलकीपर ने कमाल का खेल दिखाया. उन्होंने कई मौकों पर गोल बचाए. स्पेन इस मुकाबले में केवल एक गोल कर सका और वह पेनल्टी स्ट्रोक के जरिए हुआ जिसे बचाना बहुत-बहुत मुश्किल होता है. श्रीजेश ने ओलिंपिक शुरू होने से पहले ही ऐलान कर दिया था कि यह उनका आखिरी टूर्नामेंट होगा. इसके बाद पूरे टूर्नामेंट में श्रीजेश ने जबरदस्त खेल दिखाया और कई अहम मौकों पर भारतीय गोलपोस्ट के सामने चट्टान की तरह खड़े रहे. उन्होंने इस दौरान बिना रुके और थके गोल बचाए.
36 साल के श्रीजेश केरल से आते हैं और 2006 में भारत की सीनियर टीम का हिस्सा बने. इसके बाद से वे लगातार टीम का हिस्सा बने रहे. उन्होंने भारत की ओर से कुल 335 मैच खेले. उन्होंने भारतीय टीम की कप्तानी भी की. 2024 से पहले 2020 टोक्यो ओलिंपिक में भारत के कांस्य पदक जीतने में श्रीजेश की निर्णायक भूमिका रही. अगर यह कहा जाए कि उनके कमाल से ही भारतीय हॉकी टीम ओलिंपिक में मेडल का सूखा खत्म कर पाई तो अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए. पिछले ओलिंपिक में जर्मनी के खिलाफ कांस्य पदक मैच में उन्होंने अहम समय पर गोल बचाकर भारत को 41 साल बाद पदक दिलाया था. अब तीन साल बाद स्पेन के खिलाफ मैच में फिर से लगातार बचाव करते हुए मेडल पक्का किया.
श्रीजेश पढ़ाई से बचने को खेलों से जुड़े
श्रीजेश की हॉकी में कोई रुचि नहीं थी. वे पढ़ाई से बचना चाहते थे और इस वजह से खेलों की तरफ मुड़ गए. स्प्रिंटर बनने के बाद वे लॉन्ग जंप और वॉलीबॉल में गए लेकिन बाद में कोच के कहने पर हॉकी टीम के गोलकीपर बन गए. इसके बाद आगे बढ़ते गए. लेकिन इस सफर की शुरुआत में एक समय ऐसा भी आया जब श्रीजेश और उनके परिवार को हॉकी में भविष्य को लेकर फैसला करना था. पहली किट खरीदने के लिए श्रीजेश के पिता ने गाय बेच दी थी. उनके पिता रवींद्रन ने इस बारे में कहा था, मैं किसान हूं और ज्यादा नहीं कमाता था. उन दिनों में गोलकीपर की किट 10 हजार रुपये में आती थी और हम इसे नहीं खरीद सकते थे. हमने गाय बेची और किसी तरह से पैसे जुटाए.
श्रीजेश ने भारत के लिए चार ओलिंपिक खेले हैं. इनमें 2012 लंदन, 2016 रियो, 2020 टोक्यो और अब 2024 पेरिस शामिल हैं. 2020-21 में उन्हें इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन ने बेस्ट गोलकीपर चुना था.
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