IND vs AUS: ऑस्ट्रेलिया में जीत के लिए 155 की रफ्तार वाला बॉलर करा रहा टीम इंडिया को तैयारी, 21 रुपये लेकर घर से निकला, 4 साल तक श्मशान में रहा

भारतीय क्रिकेट टीम लगातार दो बार ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज जीत चुकी है. अब तीसरी बार इस कामयाबी को हासिल करने की कोशिश कर रही है. इसके लिए एक अनजाना सा शख्स भारतीय बल्लेबाजों की मदद कर रहा है.

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Shakti Shekhawat

विराट कोहली और शुभमन गिल भारतीय थ्रोडाउन स्पेशलिस्ट्स के साथ.

विराट कोहली और शुभमन गिल भारतीय थ्रोडाउन स्पेशलिस्ट्स के साथ.

Highlights:

रघु भारतीय बल्लेबाजों को विदेशी पिचों पर तेज गेंदबाजों का सामना करने में मदद करते हैं.

रघु क्रिकेटर बनना चाहते थे और गेंदबाज बनने की तमन्ना रखते थे.

रघु कर्नाटक के रहने वाले हैं और 2008 से बीसीसीआई से जुड़े हैं.

भारतीय क्रिकेट टीम लगातार दो बार ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज जीत चुकी है. अब तीसरी बार इस कामयाबी को हासिल करने की कोशिश कर रही है. इसके लिए एक अनजाना सा शख्स भारतीय बल्लेबाजों की मदद कर रहा है. पिछली दो सीरीज जीतने में उसका अहम रोल रहा था और इस बार भी उस पर जिम्मेदारी है. इस शख्स का नाम है राघवेंद्र द्विवेदी उर्फ रघु. वह टीम इंडिया के थ्रोडाउन स्पेशलिस्ट हैं. रघु कर्नाटक के रहने वाले हैं और 2008 से बीसीसीआई से जुड़े हैं. 2011 से वह भारतीय टीम के साथ थ्रोडाउन स्पेशलिस्ट के रूप में काम कर रहे हैं. ऑस्ट्रेलियाई मीडिया भी उनका मुरीद है. 

रघु भारतीय बल्लेबाजों को विदेशी पिचों पर तेज गेंदबाजों का सामना करने में मदद करते हैं. वे 155 किलोमीटर प्रतिघंटे के आसपास की स्पीड से बॉल डालते हैं. इसके जरिए कई बार भारतीय बल्लेबाजों को नेट्स में दिक्कत होती है. लेकिन जब वे मैच खेलने उतरते हैं तो रघु का सामना करने का अभ्यास उनकी मदद करता है. विराट कोहली समेत कई भारतीय सितारे उनकी सार्वजनिक रूप से तारीफ कर चुके हैं. कोहली ने रघु के लिए कुछ समय पहले कहा था कि वह भारतीय टीम की कामयाबी के सीक्रेट हीरो हैं. उनका सामना करने के बाद बाकी सब गेंदबाजों की बॉलिंग धीमी महसूस होती है.

21 रुपये लेकर रघु घर से निकले

 

रघु क्रिकेटर बनना चाहते थे और गेंदबाज बनने की तमन्ना रखते थे. उन्होंने इसके लिए हुबली जाकर ट्रायल्स भी दिए. रघु के पिता क्रिकेट की तरफ जाने के पक्ष में नहीं थे. ऐसे में रघु ने घर छोड़ दिया और तब उनकी जेब में केवल 21 रुपये थे. वे हुबली में जाकर खेलने लगे लेकिन वहां उनके पास रहने के लिए जगह नहीं थी. ऐसे में वे कभी मंदिर में रहते तो कभी बस स्टैंड पर ही रात गुजारते. एक समय तो ऐसा आया कि कई सालों तक उन्हें श्मशान में रहना पड़ा.

चोट की वजह से क्रिकेटर नहीं बन पाए रघु

 

धारवाड़ जोन के लिए एक मुकाबले में चार विकेट लेने के बाद उनकी कहानी बदली. उन्हें इलाके में पहचान मिली और कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन ने उन्हें रहने की जगह दी. लेकिन चोट की वजह से क्रिकेट में खिलाड़ी के रूप में उनका करियर आगे नहीं जा सका. बाद में उन्होंने तीन-चार सीजन तक बिना किसी कमाई के कर्नाटक रणजी ट्रॉफी को कोचिंग दी. 2008 में वह बीसीसीआई का हिस्सा बने और नेशनल क्रिकेट एकेडमी में काम करने लगे.

रघु को 2011 में भारतीय टीम का थ्रोडाउन स्पेशलिस्ट बनाया गया और तब से वह यह जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. कुछ महीने पहले पूर्व कोच रवि शास्त्री ने रघु के साथ फोटो पोस्ट कर उन्हें भारतीय क्रिकेट की धड़कन कहा था.
 

 

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