चेन्नई सुपर किंग्स के स्टार गेंदबाज तुषार देशपांडे ने टीम इंडिया की जर्सी पहनने का जो सपना देखा था, वो इस साल जुलाई में उस वक्त पूरा हुआ, जब उन्होंने जिम्बाब्वे के खिलाफ टी20 मैच से इंटरनेशनल क्रिकेट में डेब्यू किया. देशपांडे को जब पता चला कि वो डेब्यू करने जा रहे हैं, तो उन्होंने सबसे पहला कॉल अपने पिता को किया और उनसे पूछा था कि उनका बेटा भारत के लिए डेब्यू करने जा रहा है, उन्हें कैसा महसूस हो रहा है. इसे सुनकर देशपांडे के पिता फोन कॉल पर ही काफी इमोशनल हो गए और उनकी मां के बारे में बात करने लगे थे.
देशपांडे ने उस वक्त फोन पर खुद की भावनाओं पर काफी कंट्रोल रखने की कोशिश की. दरअसल उन्हें यहां तक पहुंचाने में उनकी मां वंदना का बहुत बड़ाहाथ था, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं. दरअसल जब देशपांडे 16 साल की उम्र में मुंबई अंडर 19 की तरफ से पहली बार खेलने मैदान पर उतरे थे. पहले मैच में उन्होंने अच्छी गेंदबाजी नहीं की थी और दूसरे मैच से उन्हें बाहर कर दिया गया था. इसके बाद कोच ने उनसे उनके फ्यूचर को लेकर बात की. कोच उनकी तुलना बाकी गेंदबाजों से करने लगे.
क्रिकइंफो के अनुसार कोच ने देशपांडे को कहा था कि उन्हें नहीं लगता कि वो 125kph से ऊपर गेंद फेंक सकते है. उन्होंने देशपांडे को बैटिंग शुरू करने की सलाह दी थी. इसके अगले दिन देशपांडे को घर भेज दिया गया. चेन्नई सुपर किंग्स के गेंदबाज ने कोच से हुई सारी बातचीत अपनी मां को बताई. देशपांडे ने बताया कि इसके बाद उनकी मां ने क्या कहा था, उन्होंने कहा-
उन्होंने मुझसे कहा कि ये आपकी मर्जी है कि आपने क्रिकेट खेलना शुरू किया. क्रिकेट में जो कुछ भी हो रहा है, उसे लेकर कभी भी रोना मत. ये आपकी अपनी लड़ाई है. आपको इसे बाहर लड़ना होगा. अगर आप इसे लड़ सकते हैं, तो क्रिकेट खेलना जारी रखें, वरना आप अपना बैग बाहर रख सकते हैं और क्रिकेट खेलना बंद कर सकते हैं.
अस्पताल में बीतता था ज्यादातर समय
देशपांडे की लड़ाई में उनकी मां और पिता सबसे बड़ी ताकत बने और आज वो चेन्नई सुपर किंग्स के बेस्ट गेंदबाजों में से एक हैं. वो दलीप ट्रॉफी में इंडिया डी टीम का भी हिस्सा है. आज से सात साल पहले अपने फर्स्ट क्लास डेब्यू सीजन के दौरान देशपांडे ने खुद के टखने को चोटिल कर लिया था और 8 मैच खेलने के बाद वो रणजी ट्रॉफी से बाहर हो गए थे. इसके दो महीने बाद उनकी मां को तीसरे स्टेज के कैंसर के बारे पता चला. वो समय देशपांडे के परिवार के लिए सबसे मुश्किल दौर था. उन दिनों उनके पिता उदय अनपैड छुट्टी पर थे. वो अपनी पत्नी के साथ सुबह 6 बजे से दोपहर 1 बजे तक इलाज के लिए अस्पताल में बैठते थे.
देशपांडे इसके बाद दो घंटे की यात्रा करने के बाद अस्पताल पहुंचते. छह घंटे अस्पताल में रहने के बाद घर लौटकर जिम करते. साल 2017 में उनकी मां की कीमोथैरेपी चल रही थी. देशपांडे ने कहा-
घर पर दो मरीज थे, मैं और मेरी मां. मैं बैसाखी पर था और मेरी मां की कीमोथेरपी चल रही थी. 2017 हमारे लिए बहुत बुरा साल था.
दिसंबर तक देशपांडे 2017 का अपना एकमात्र मैच खेलने के लिए ठीक हो गए थे, जो मुंबई के लिए अंडर-23 मैच था. 2018 में कैंसर के चलते उनकी मां की काफी सेहत बिगड़ गई थी. देशपांडे का कहना हैं कि मां का वजन तेजी से कम होते देखना, खाना न खाना और चुपचाा देखना निराश करने वाला था. उन्होंने कहा-
उस डेढ़ साल ने मुझे बहुत कुछ सिखाया. मैं अपनी मां के साथ रहने के बाद शाम को आठ बजे जिम जाता था, रात को 10 या 11 बजे तक एक्सरसाइज करता था. रात में दौड़ता था और तरह-तरह की चीज़ें करता था. इसने मुझे सिखाया कि जीवन के प्रति विनम्र कैसे रहना है.
देशपांडे ने घरेलू क्रिकेट में 2018-19 सत्र में अच्छा प्रदर्शन किया था. मार्च 2019 में उनकी मां ने 55 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया था. मां की मौत से देशपांडे बुरी तरह से टूट गए थे. उन्होंने कहा-
मैं उनके बारे में सोचकर बहुत रोया था. कभी-कभी मैं अभी भी उनके बारे में सोचकर रोता हूं, लेकिन उस समय मेरे पिता ने मुझसे यही कहा था कि हम जीवन में सैनिक हैं. तुम्हें अपने क्रिकेट को प्राथमिकता देनी होगी, जो तुम्हारी मां हमेशा तुमसे कहती थी और अगर तुम अभी ऐसा करते हो और तुम बाद में भारत के लिए खेलते हो तो इस तरह तुम उनके सपने को भी पूरा कर पाओगे.
मां की मौत के दो दिन बाद देशपांडे अपने पिता के कहने पर सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी खेलने के लिए इंदौर गए और दिल्ली के खिलाफ चार विकेट लिए. उस सीजन में उन्होंने चार रणजी मैचों में 16.6 की औसत से 17 विकेट भी लिए और मुंबई को 12 साल बाद 50 ओवर की विजय हजारे ट्रॉफी जिताने में अहम भूमिका निभाई थी. इसके बाद वो आईपीएल में भी उनकी एंट्री हो गई थी.
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