क्रिकेट, फुटबॉल, फील्ड हॉकी और बास्केटबॉल जैसे खेलों में एक दो खिलाड़ी नहीं बल्कि एक टीम जीत की तरफ बढती है. इसके लिए व्यक्तिगत नहीं बल्कि टीम के सभी खिलाड़ियों का योगदान हम होता है. ऐसे में 11-11 खिलाड़ियों के साथ खेले जाने वाले क्रिकेट और फुटबॉल के खेल में कितने सब्सीट्यूट खिलाडि़यों का इस्तेमाल किया जा सकता है. जिससे लाइव चलने वाले मैच में टीम का बैलेंस बना रहे और मैच का रोमांच भी जिंदा रह सके. हालांकि क्रिकेट और फुटबॉल में जहां सब्सीट्यूट खिलाड़ियों को लेकर तमाम तरह के नियम बनाए गए हैं. वहीं फील्ड हॉकी और बास्केटबॉल जैसे खेल में सब्सीट्यूट खिलाड़ियों का नियम कितना अलग है. डालते हैं एक नजर:-
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क्रिकेट
पिछली दो सदी से दुनिया पर राज करने वाले क्रिकेट खेल के नियमों में बढ़ती आधुनिकता की तरफ तमाम तरह के बदलाव होते रहे हैं. इनमें 11 खिलाड़ियों की एक टीम के साथ खेले जाने वाले क्रिकेट में अब सब्सीट्यूट खिलाडि़यों का अहम रोल हो चुका है. क्रिकेट में भी फुटबॉल की तरह जहां 11 खिलाड़ी मैदान में उतरते हैं तो अधिकतम 4 खिलाड़ियों को सब्सीट्यूट के तौरपर इस्तेमाल किया जा सकता है. क्योंकि क्रिकेट में मैक्सिमम टीम में शामिल खिलाड़ियों की संख्या 15 तक होती है. ऐसे में क्रिकेट मैच के दौरान कब-कब और कौन-कौन से सब्सीट्यूट खिलाड़ियों का किस तरह इस्तेमाल होता है. जानते हैं इसकी डिटेल :-
क्या होता है सब्सीट्यूट
क्रिकेट मैच के दौरान जब भी कोई खिलाड़ी बीमार पड़ जाता है या फिर चोटिल हो जाता है तो उसकी जगह एक दूसरे खिलाड़ी को मैदान पर फील्डिंग के लिए भेजा जाता है. हालांकि वह बैटिंग और बॉलिंग तब तक नहीं कर सकता है. जब तक टीम के कप्तान के अलावा अंपायर और रेफरी सभी की सहमती नहीं होगी. हालांकि सब्सीट्यूट में सिर्फ टीम के खिलाड़ी ही नहीं बल्कि फैंस के बीच से, मीडिया से, और सपोर्ट स्टाफ व कोचिंग स्टाफ से कोई भी मैदान में आकर फील्डिंग कर सकता है. जिसका एक बेहतरीन उदाहरण तब देखने को मिला था. जब न्यूजीलैंड के एक खेल पत्रकार ने साल 1988 के भारत दौरे पर मैच में सब्सीट्यूट का रोल अदा किया था. हालांकि इन सभी पर अंपायर की सहमति होना जरुरी है. ये सब्सीट्यूट का नियम क्रिकेट के कानून की किताब में 24वें नंबर पर रखा गया है.
फील्डिंग सब्सीट्यूट
क्रिकेट मैच के दौरान अगर कोई खिलाड़ी पहली पारी में बैटिंग करते समय चोटिल हो जाता है या फिर उसे ज्यादा थकान हो जाती है तो टीम उसकी जगह फील्डिंग में बेंच स्ट्रेंथ पर बैठे खिलाड़ी को बतौर फील्डिंग सब्सीट्यूट मैदान पर उतारटी है. हालांकि ये सब्सीट्यूट मैदान पर गेंदबाजी और बल्लेबाजी नहीं कर सकता है. जबकि उसके द्वारा लिए गए कैच से बल्लेबाज को आउट माना जाएगा लेकिन ये कैच उस खिलाड़ी के नाम के रिकॉर्ड में भी नहीं जुड़ेगी. साल 1884 में इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच टेस्ट मैच में पहली बार फील्डिंग सब्सीट्यूट का इस्तेमाल हुआ. जब ऑस्ट्रेलियाई कप्तान बिली मर्डोक ने इंग्लैंड के लिए बतौर फील्डिंग सब्सीट्यूट खेलते हुए अपने साथी टप स्कॉट का कैच लिया था. बतौर फील्डिंग सब्सीट्यूट सबसे अधिक कैच पकड़ने का रिकॉर्ड वीरेंद्र सहवाग और यूनिस खान जैसे खिलाड़ियों के नाम भी दर्ज है.
वापस लौटने पर लगने वाली पाबंदी
जब भी कोई खिलाड़ी मैच के दौरान जैसे की तेज गेंदबाज चोटिल होकर बाहर जाता है तो वह अपनी वापसी पर आकर तुरंत गेंदबाजी नहीं करा सकता है. नियम के अनुसार उस खिलाड़ी को अपनी वापसी के बाद मैदान में उतना ही समय बिताने की जरूरत होती है. जितनी देर तक वह मैदान से बाहर रहा था. इसी तरह की शर्त बल्लेबाजों के साथ भी होती है. उन्हें अपने बल्लेबाजी क्रम में बदलाव करके इस प्रक्रिया को पूरा करना होता है.
चोटिल हुआ गेंदबाज
क्रिकेट मैच के दौरान अगर कोई गेंदबाज अपने बीच के ओवर में चोटिल हो जाता है तो किसी अन्य खिलाड़ी को उसकी बाकी गेंद फेंकनी होती है. हालांकि इसमें नियम ये है कि उस गेंदबाज ने ना तो पहले का ओवर फेंका और ना ही वह बाद में अगला ओवर भी फेंकने वाला होगा. इस आधार पर ऐसे गेंदबाज को चुना जाता है जो सिर्फ ओवर को कम्प्लीट कर सकता है और उसके अगले ओवर के बाद वह गेंदबाजी करने के लिए फ्री हो जाता है. वहीं गेंदबाज के चोटिल होने पर जो फील्डिंग सब्सीट्यूट मैदान में आएगा वह गेंदबाजी नहीं कर सकता है.
टैक्टिकल सब्सीट्यूट से मचा बवाल
आईसीसी ने साल 2005 में टैक्टिकल सब्सीट्यूट का विकल्प सिर्फ वनडे क्रिकेट में इस्तेमाल करने के लिए लागू किया. इसके चलते टॉस के समय कप्तान एक खिलाड़ी का नाम बताता है. जिसे वह मैच में किसी भी समय इस्तेमाल कर सकता है. हालांकि इससे टॉस जीतने वाली टीम को ज्यादा फायदा होने लगा और पूर्व क्रिकेट दिग्गज व कमेंटेटर सभी ने इस नियम को काफी बेकार बताया. जिसके चलते आईसीसी ने साल 2006 में इस नियम को समाप्त कर दिया और साल 2008 में कहा कि अब क्रिकेट में कोई सब्सीट्यूट खिलाड़ी तभी मिलेगा जब कोई मैच खेलने वाला खिलाड़ी चोटिल, बीमार या किसी वैलिड कारण के चलते उसे तकलीफ होती है. तभी सब्सीट्यूट खिलाड़ी मिलेगा. सिर्फ आराम करने के लिए अब सब्सीट्यूट खिलाड़ी नहीं दिया जाएगा.
कनकशन (सिर में चोट लगने पर) सब्सीट्यूट
साल 2010 में कनकशन नियम का इस्तेमाल सबसे पहले न्यूजीलैंड के घरेलू क्रिकेट में हुआ उसके बाद साल 2018 में इसका इस्तेमाल इंग्लैंड के काउंटी क्रिकेट में भी हुआ और अब इसे आईसीसी ने भी लागू कर दिया है. कनकशन के अंतर्गत अगर किसी खिलाड़ी को मैच के दौरान सिर में चोट लग जाती है तो उसकी जगह लाइक टू लाइक सब्सीट्यूट मैदान में आता है. जैसे गेंदबाज गया तो गेंदबाज और बल्लेबाज गया तो बल्लेबाज को आप टीम में शामिल कर सकते हैं और वह गेंदबाजी व बल्लेबाजी दोनों कर सकता है.
फुटबॉल
जहां क्रिकेट में किसी खिलाड़ी के चोटिल या बीमार होने पर ही सब्सीट्यूट खिलाड़ी का इस्तेमाल होटा है. वहीं फुटबॉल के खेल में ऐसा कुछ भी नहीं है. 90 मिनट के फुटबॉल में 11 खिलाड़ी मैदान में उतरते हैं तो एक मैच के दौरान कोई भी टीम अधिकतम 5 सब्सीट्यूट खिलाड़ियों का इस्तेमाल कर सकती है. वहीं जब दोनों टीमें एक साथ अपने-अपने खिलाड़ियों को सब्सीट्यूट से बदलती हैं तो उसे सब्सीट्यूट अपॉर्च्युनिटी (substitution opportunities) कहा जाता है. इनका आप सिर्फ तीन बार ही इस्तेमाल कर सकते हैं. हालांकि एक बार मैदान से बाहर आने वाला खिलाड़ी दोबारा मैच में वापस खेलने नहीं जा सकता है.
एक्स्ट्रा टाइम
फुटबॉल के मैच में अगर कोई टीम 90 मिनट तक अपने अधिकतम 5 सब्सीट्यूट खिलाड़ियों का इस्तेमाल नहीं करती है तो फिर वह एक्स्ट्रा टाइम पर भी अपने सिर्फ एक खिलाड़ी को सब्सीट्यूट के तौरपर उतार सकती है. वहीं एक टीम कम से कम तीन खिलाड़ियों से लेकर अधिकतम 15 खिलाड़ियों के नाम तक की सब्सीट्यूट लिस्ट दे सकती है. जिनमें से सिर्फ 5 खिलाड़ियों को ही एक मैच के दौरान इस्तेमाल किया जा सकता है.
सब्सीट्यूट की प्रक्रिया
फुटबॉल मैच से पहले रेफरी को सब्सीट्यूट खिलाड़ियों का नाम हर हाल में देना होता है. अगर इस समय किसी खिलाड़ी का नाम नहीं दिया तो उसे बाद में मैच में खेलने की परमीशन नहीं मिलती है. अब अगर कोई खिलाड़ी मैच के दौरान किसी सब्सीट्यूट को रिलेस कर रहा होता है तो उसे इन बातो का ध्यान रखना होता है :-
-सब्सीट्यूट करने से पहले रेफरी को जानकारी देनी होती है कि ये खिलाड़ी बाहर आएगा और ये खिलाड़ी अंदर जाएगा.
-रेफरी से परमिशन मिलने के बाद जो खिलाड़ी बाहर जा रहा है तो तब तक सब्सीट्यूट खिलाड़ी अंदर नहीं आएगा. जब तक बाहर जाने वाला खिलाड़ी साइड लाइन से पूरी तरह बाहर नहीं होगा. इसके बाद आने वाला सब्सीट्यूट खिलाफी हाफवे लाइन से मैदान में एंट्री करेगा.
-सब्सीट्यूट खिलाड़ी बदलने का प्रोसेस मैच के स्टॉपेज समय में ही होगा.
- वहीं सब्सीट्यूट खिलाड़ी के मैदान में अंदर एंट्री करते ही खिलाड़ी बन जाता है.
कनकशन सब्सीट्यूट
क्रिकेट की तरह फुटबॉल में भी कनकशन सब्सीट्यूट का इस्तेमाल होता है. इसके अंतर्गत अगर किसी फुटबॉलर को मैच के दौरान सिर में चोट लगती है तो सबसे पहले मैच रेफरी जाकर उसे देखता है. फिर मेडिकल टीम के आने के दौरान तीन मिनट तक खेल रोककर खिलाड़ी की जांच की जाती है. अगर खिलाड़ी में कनकशन पाया जाता है तो फिर उसकी जगह किसी दूसरे खिलाड़ी को मैदान में खेलने का मौक़ा मिलता है. हालांकि कनकशन सब्सीट्यूट एक मैच के दौरान पांच अधिकतम सब्सीट्यूट के नियम से अलग है.
हॉकी
क्रिकेट और फुटबॉल में जहां सब्सीट्यूट खिलाड़ियों को लेकर तमाम तरह के नियम कायदे कानून बनाए गए हैं. वहीं हॉकी में रोलिंग सब्सीट्यूट का इस्तेमाल होता है. 11 खिलाड़ियों के साथ खेले जाने वाले हॉकी मैच में 5 सब्सीट्यूट खिलाड़ी भी होते हैं और इसमें कितनी भी बार किसी भी खिलाड़ी को सब्सीट्यूट के तौरपर इस्तेमाल किया जा सकता है.
हॉकी में खासबात ये है कि सब्सीट्यूटशन के दौरान मैच रुकता नहीं है जबकि हाफवे लाइन से खिलाड़ी बदलते रहते हैं. इतना ही नहीं अगर किसी खिलाड़ी ने गोल किया है तो वह दो मिनट तक मैदान से बाहर जरूर जाता है. इसके अलावा अगर पेनल्टी कॉर्नर की बारी आती है तो डिफेंडिंग टीम का गोलकीपर तब तक नहीं बलदा जाता है. जब तक की वह चोटिल ना हुआ हो. वहीं गोलकीपर अगर मैच में बदलता है तो हॉकी के मैच को रोका भी जाता है.
बास्केटबॉल
अमेरिका में खेली जाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी बास्केटबॉल लीग एनबीए में भी हॉकी की तरह की सब्सीट्यूट खिलाड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है. बास्केटबॉल के खेल में एक टीम में अधिकतम 11 खिलाड़ी होते हैं. जिसमें से 5 खिलाड़ी मैदान में उतरते हैं. इसके अलावा 5 सब्सीट्यूट खिलाड़ी होते हैं. जिनको 48 मिनट के मैच के दौरान कितनी भी बार बदला जा सकता है. बास्केटबॉल में सब्सीट्यूट खिलाड़ी तभी मैदान के अंदर दूसरे खिलाड़ी को रिप्लेस कर सकता है. जब डेड बॉल दी गई हो या फिर घड़ी का समय रोक दिया गया हो.
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