नई दिल्ली. देखा गया है कि जो खेल बॉल से खेले जाते हैं उनकी दीवानगी काफी होती है. फिर चाहे फुटबॉल हो या बास्केटबॉल या क्रिकेट या फिर गोल्फ. इन खेलों में जब खिलाड़ी बॉल के साथ जादूगरी दिखाते हैं तो दर्शक देखते रह जाते हैं. फिर चाहे किसी फुटबॉलर की बाइसिकल किक हो या डी के जरिए दागा गया गोल. क्रिकेट में जब कोई बॉलर जादुई गेंद फेंकता है तो देखने वालों के मुंह खुले के खुले रह जाते हैं. स्पोर्ट्स तक की आज की खास पेशकश में बात गेंदों की होगी. किस खेल में किस तरह की बॉल होती है, किससे बनती है और क्या उनके नियम होते हैं इन सबकी पड़ताल करेंगे.
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क्रिकेट
इस खेल में गेंद लेदर की बनी होती है. फॉर्मेट के हिसाब से इसका रंग बदलता है. टेस्ट या फर्स्ट क्लास क्रिकेट में लाल रंग की गेंद इस्तेमाल होती है. डे-नाइट टेस्ट क्रिकेट में पिंक गेंद इस्तेमाल की जाती है. वहीं वनडे और टी20 क्रिकेट में सफेद रंग की गेंद होती है. इसका ऊपरी हिस्सा पूरी तरह से चमड़े का बना होता है. इस पर धागे की सिलाई होती है जिसे सीम कहा जाता है. यह सिलाई चमड़े के दो अलग-अलग हिस्सों को जोड़ने के लिए की जाती है. क्रिकेट में तीन तरह की गेंद इस्तेमाल होती है.
भारत- यहां एसजी कंपनी की गेंद से क्रिकेट खेला जाता है.
इंग्लैंड- यहां पर ड्यूक गेंद इस्तेमाल होती है.
ऑस्ट्रेलिया- कुकाबुरा गेंद से क्रिकेट खेलते हैं. यह गेंद सर्वाधिक इस्तेमाल होती है.
इन गेंदों में केवल चमड़े का अंतर होता है. एसजी गेंद स्पिन में ज्यादा मददगार होती है. वहीं ड्यूक स्विंग हासिल करने में मददगार होती है. कुकाबुरा बाउंस हासिल करने में मदद करती है. साथ ही यह लंबे समय तक कड़ी रहती है.
अब जान लेते हैं कि एक क्रिकेट गेंद का वजन और साइज कैसी होती है. एक नई गेंद का वजन 155.9 ग्राम से कम और 163 ग्राम से ज्यादा नहीं होना चाहिए. साथ ही उसकी गोलाई 22.4 सेंटीमीटर से कम और 22.9 सेंटीमीटर से ज्यादा नहीं होती है.
फुटबॉल
दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल में बॉल की अहम भूमिका होती है. कई हैरान कर देने किक में बॉल के चलते चार चांद लग जाते हैं. एक समय फुटबॉल पूरी तरह से चमड़े की बनी होती थी. अब यह चमड़े के साथ इसे बनाने में प्लास्टिक, सिंथेटिक और कपड़े का इस्तेमाल भी होता है. फुटबॉल की गेंद के अंदर हवा भरी रहती है. इसका साइज 68 से 70 सेंटीमीटर के बीच होता है. वजन की बात की जाए तो 410 से 450 ग्राम के बीच रहता है. यह वजन सूखी गेंद का रहता है क्योंकि जब खेलते समय यह पुरानी हो जाती है तब इसका वजन बढ़ जाता है.
आधुनिक फुटबॉल का बाहरी हिस्सा 32 सिले हुए हिस्सों से बना होता है. इसमें 12 पंचकोणीय वाटरप्रूफ लेदर या प्लास्टिक टुकड़े होते हैं तो 20 छह कोणीय टुकड़े जो धागे से सिले रहते हैं. 32 हिस्सों वाली फुटबॉल की शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी और बाद में एडिडास टेलस्टार ने इसे पूरी दुनिया में मशहूर किया. यह गेंद 1970 के वर्ल्ड कप में इस्तेमाल हुई थी.
हॉकी
फील्ड हॉकी की गेंद बाहर से सख्त रहती है. इसकी बाहरी परत मजबूत प्लास्टिक की होती है. इसके चलते गीली सतह पर खेलने पर भी गेंद पर किसी तरह का असर नहीं पड़ता है. कई दफा इसके अंदर का हिस्सा कॉर्क का रहता है. यह गेंद आमतौर पर सफेद रंग की होती है. फील्ड हॉकी की गेंद 71.3 से 74.9 मिलीमीटर की परिधि की होती है. इसका वजन 156 से 163 ग्राम तक होता है.
स्क्वॉश
स्क्वॉश गेंद की गोलाई 39.5 से 40.4 मिलीमीटर होती है. इसका वजन 23 से 25 ग्राम रहता है. यह गेंद रबर के बने दो टुकड़ों को जोड़कर बनाई जाती है. इन दोनों रबर के टुकड़ों को गोंद के जरिए चिपकाया जाता है. इस खेल में गेंद की उपलब्धता तापमान, वातावरण पर निर्भर करती है. अनुभवी खिलाड़ी धीमी गेंदों का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि वे कोर्ट के कॉर्नर्स में थम जाती है. स्क्वॉश गेंद की पहचान उसके अंदर के रंग से की जाती है. इसके तहत ऑरेंज कलर वाली बॉल काफी ज्यादा धीमी होती है. दो यलो डॉट वाली गेंद धीमी और एक डॉट वाली यलो थोड़ी धीमी होती है. हरे और लाल रंग वाली बॉल मीडियम स्पीड वाली होती है जबकि नीले रंग वाली काफी तेज होती है.
गोल्फ
गोल्फ बॉल के अंदर रबर होता है. लेकिन इसका बाहरी हिस्सा प्लास्टिक या यूरेथेन नाम के सिंथेटिक से बना होता है. इसके चलते बॉल बाहर से कड़ी होती है. एक गोल्फ बॉल का वजन 45.9 ग्राम रहता है. इसकी परिधि 1.680 इंच से कम नहीं होनी चाहिए. शुरुआती सालों में गोल्फ लकड़ी की बॉल से खेला जाता था. इनके अंदर गाय के बाल भरे होते थे. बाद के सालों में हाथ से सिले एक लेदर पाउच में चिकन या बतख जैसे जानवर के पंख भरे होते थे. बाहरी हिस्से को सफेद कलर से पेंट किया जाता था.
वर्तमान में गोल्फ में जो बॉल इस्तेमाल होती है उसकी बाहर परत पर छोटे-छोटे गड्ढे होते हैं जिन्हें डिंपल कहा जाता है. इन डिंपल्स की शुरुआत 1905 से हुई. ऐसा देखा गया था कि खिलाड़ी ज्यादा दूरी तक गेंद को पहुंचाने के लिए बॉल से छेड़छाड़ करते. नई गेंद की तुलना में पुरानी गेंद ज्यादा दूर जाती थी. आधुनिक गोल्फ बॉल में 300 से 500 डिंपल्स होते हैं.
रग्बी
रग्बी में इस्तेमाल होने वाली बॉल ओवल यानी अंडाकार शेप में होती है. इसमें चार पैनल रहते हैं और इसका वजन 400 ग्राम तक रहता है. 1823 में विलियम गिलबर्ट और रिचर्ड लिंडन ने रग्बी बॉल बनानी शुरू की. इसमें अंदर सुअर के ब्लेडर से बनी ट्यूब रहती थी. बाद में रबर ट्यूब इस्तेमाल होने लगी इससे इसका आकार गोल से अंडे की तरह हो गया. शुरुआती दिनों में गेंद का वजन सुअर के ब्लेडर के हिसाब से घटता-बढ़ता रहता था. 1862 के आसपास रिचर्ड लिंडन ने रबर ब्लेडर का इस्तेमाल कर सुअर के ब्लेडर को हटा दिया. इसके बाद से यही पैटर्न चलन में आ गया.
1892 के बाद रग्बी बॉल की साइज और शेप से जुड़े नियम लिखे गए. धीरे-धीरे लेदर बॉल की जगह सिंथेटिक बॉल से भी रग्बी खेला जाने लगा. अगर मैदान गीला होता है तब सिंथेटिक गेंद ही इस्तेमाल होती है ताकि वह पानी में भीगने से गीली न हो. आगे चलकर लेदर बॉल पूरी तरह से चलन से बाहर हो गई. इसकी अंडाकार शेप को बनाए रखने के लिए पॉलिस्टर के धागे से सिलाई की जाने लगी और पानी से बचाने के लिए इस पर वैक्स (मोम) की कोटिंग भी होने लगी. रग्बी बॉल साइज में 28 से 30 सेंटीमीटर लंबी, 58-62 सेंटीमीटर चौड़ी और 410 से 160 ग्राम के बीच वजनी होती है.
बास्केटबॉल
बास्केटबॉल एक गोलाकार गेंद होती है. इसमें अंदर की तरफ एक रबर ब्लेडर होता है. यह फाइबर की परत में कवर होती है. बास्केटबॉल की बाहरी परत चमड़े, रबर या सिंथेटिक मटीरियल से बनी होती है. सबसे बाहर वाली परत पर हल्के-हल्के उभार होते हैं जिन्हें रिब्स कहा जाता है. बास्केटबॉल की साइज अलग-अलग हो सकती है. उदाहरण के तौर पर यूथ इवेंट्स में इस्तेमाल होने वाली बास्केटबॉल 27 इंच (69 सेंटीमीटर) की होती है. वहीं अमेरिका की नेशनल बास्केटबॉल एसोसिएशन में 29.5 सेंटीमीटर वाली बास्केटबॉल इस्तेमाल होती है. इसी तरह महिला एनबीए में 20 इंच की बास्केटबॉल रहती है.
बास्केटबॉल इंडोर और आउटडोर दोनों तरह से खेला जाता है. इंडोर वाली बास्केटबॉल लेदर या इसी तरह की सोखने वाले चीजों की बनी होती है. वहीं आउटडोर वाली बास्केटबॉल रबर जैसे पदार्थों से बनी होती है. इन बॉल्स में रबर इसलिए होता है क्योंकि बाहरी वातावरण अलग और कठोर होता है. इंडोर बॉल ज्यादा महंगी होती है क्योंकि उनके मटीरियल की कीमत ज्यादा रहती है. इंडोर गेम्स में जो लेदर की बनी बॉल काम में ली जाती है उसे प्रतियोगिता में इस्तेमाल करने से पहले इस्तेमाल किया जाता है ताकि उन पर ग्रिप बन सके.
शुरुआती दिनों में बास्केटबॉल चमड़े के टुकड़ों को बनाकर तैयार की जाती थी. साथ ही कपड़े की लाइनिंग भी सिली जाती थी जिससे कि लेदर को सपोर्ट मिल सके. 1990 तक लेदर वाली बास्केटबॉल ही इस्तेमाल होती थी. लेकिन इसके बाद सिंथेटिक सामग्री से बनी बास्केटबॉल का चलन शुरू हुआ. जल्द ही यह काफी लोकप्रिय हो गई. हालांकि एनबीए में अभी भी लेदर बॉल से ही मैच खेले जाते हैं.
टेनिस
इंटरनेशनल टेनिस फेडरेशन (आईटीएफ) के अनुसार, टेनिस गेंद की परिधि 6.54 से 6.86 सेंटीमीटर के बीच होनी चाहिए. इसका वजन 56.0–59.4 ग्राम होता है. आईटीएफ ने केवल पीले और सफेद रंग की गेंद से खेलने को ही मंजूरी दे रखी है. बड़े टूर्नामेंट्स में गेंद चमकीले पीले रंग की होती है. इसकी शुरुआत 1972 से हुई. एक रिसर्च में बताया गया था कि इस रंग की गेंद टीवी पर ज्यादा दिखती है तब से इसे अपना लिया गया. टेनिस की गेंद अंदर से खोखली होती है. यह वॉल्केनिक रबर की बनी होती है और उस फरनुमा एक परत और होती है.
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