भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने कहा कि पढ़ाना एक पेशा ही नहीं बल्कि कला है जिसमें आप छात्रों को अनुशासित करके तराशते हैं. उन्होंने मशहूर तकनीक और शिक्षाविद प्रोफेसर के के अब्दुल गफ्फार की आत्मकथा के विमोचन के मौके पर यह बात कही. धोनी ने शनिवार (7 जनवरी) को केरल के कासरगोड में एक कार्यक्रम में प्रोफेसर गफ्फार की आत्मकथा ‘अनजान साक्षी’ का विमोचन किया. दुबई स्वास्थ्य प्राधिकरण के सीईओ मारवान अल मुल्ला को किताब की पहली प्रति धोनी ने भेंट की.
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इस मौके पर धोनी ने कहा, ‘एक शिक्षक को अपने छात्रों को समझाने के लिए हर चीज सरल करनी होती है. हर छात्र का आई क्यू स्तर अलग होता है और आपको सभी को समझाना होता है. मुझे लगता है कि यह एक पेशा ही नहीं बल्कि कला है. इसमें आप छात्रों को अनुशासित करके उनके मजबूत और कमजोर पक्ष बताते हैं. मैं हमेशा से अपने स्कूल के शिक्षकों का बड़ा प्रशंसक रहा हूं. मैं कभी कॉलेज नहीं गया लेकिन मुझे लगता है कि मैंने जीवन में अच्छा ही किया.’
इस कार्यक्रम के दौरान धोनी ने अपने अध्यापकों का आभार जताया. उन्होंने कहा कि इस ऑटोबायोग्राफी के जरिए प्रोफेसर गफ्फार की यात्रा को जानने का मौका मिलेगा. साथ ही यह पता चलेगा कि कैसे शिक्षा और छात्रों में बदलाव आया है. धोनी अपने करीबी मित्र डॉक्टर शाजिर गफ्फार के पिता की आत्मकथा के विमोचन के लिए खास तौर पर रांची से आए थे.
गवर्नर ने भी भेजा मैसेज
केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान ने वीडियो मैसेज के जरिए प्रोफेसर गफ्फार की ऑटोबायोग्राफी को लेकर कहा कि इससे उनके जीवन, ज्ञान और समर्पण का पता चलता है. इसके जरिए लोगों को प्रेरित होना चाहिए. इस किताब में इमरजेंसी के दौरान कोजिकोड के एक इंजीनियर छात्र पी राजन के गायब होने का भी जिक्र है. गफ्फार ने लिखा है कि किस तरह उन पर सरकार व पुलिस की तरफ से गवाह बनने का दबाव डाला गया. वह आखिरी व्यक्ति थे जिन्होंने राजन को देखा था. इसके बाद राजन को पुलिस ने 1 मार्च 1976 को हॉस्टल से हिरासत में लिया था.
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