भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने पेरिस ओलिंपिक में कांस्य पदक जीता. लगातार दूसरे ओलिंपिक में भारतीय टीम पदक लेकर आई. दोनों बार ललित कुमार उपाध्याय पदक विजेता टीम का हिस्सा रहे और जीत में अहम योगदान दिया. पेरिस ओलिंपिक में स्पेन को तीसरे स्थान के मुकाबले के लिए हराने के बाद ललित स्पोर्ट्स तक से बात करते हुए भावुक हो गए. उन्होंने बताया कि किस तरह नौकरी की मजबूरी के चलते उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया था. साथ ही कहा कि किसी खिलाड़ी का ओलिंपियन बनना उसकी निजी उपलब्धि है लेकिन मेडल जीतना देश की उपलब्धि होती है.
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ललित ने हॉकी खेलना शुरू करने के बारे में कहा कि सरकारी नौकरी की चाहत के चलते वे इस खेल में आए थे. लेकिन अब इसे पसंद करते हैं. उन्होंने कहा, 'आदमी दो ही वजह से गेम चुनता है, पैशन या मजबूरी से. हम लोगों ने हॉकी मजबूरी से चुना था, झूठ क्यों बोलूं. हॉकी खेलेंगे नौकरी मिल जाएगी. हॉकी में सबसे ज्यादा नौकरी थी. जिस परिवार से मैं आता हूं वहां पर सरकारी नौकरी बहुत बड़ी बात है. जब हम पहली बार भारत के लिए खेले तो लगा कि हमने अपना सपना पूरा किया है. यहां से ओलिंपिक खेलकर चले जाते तो अपने लिए खेला है लेकिन मेडल लेकर गए तो वह देश के लिए है चाहे एशियन गेम्स हो, कॉमनवेल्थ या ओलिंपिक. आपको देश के लिए मेडल जीतने का मौका मिला है. आपने देश के लिए योगदान दिया है. यह बात सत्य है.'
मोहम्मद शाहिद को याद कर भावुक हुए ललित
ललित बातचीत के दौरान भारतीय हॉकी के दिग्गज मोहम्मद शाहिद को याद करते हुए भावुक हो गए. उन्होंने बताया कि जब उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया था तब मोहम्मद शाहिद को देखा करते थे. उन्हें ड्रिबल किंग माना जाता था. वे उनसे एक चैरेटी मैच में मिले थे. तब वह बॉल कीपिंग कर रहे थे. ऐसा कहते हुए ललित का गला रुंध गया और वे आंसू नहीं रोक पाए.
ललित ने टोक्यो ओलिंपिक मेडल पर क्या कहा
ललित ने टोक्यो ओलिंपिक में मेडल जीतने के बाद मिले प्यार का जिक्र करते हुए कहा कि जब उनकी टीम मेडल लेकर आई और लोगों के प्यार को देखा तो महसूस हुआ कि वह कितनी बड़ी जीत थी. तब लगा कि हॉकी को लेकर जो कहानियां सुनते थे वह सच थी. लोग हॉकी को दिल से देखना चाहते हैं. इसलिए पेरिस में यह अहसास था कि अगर लगातार दूसरी बार मेडल जीतेंगे तो जो इतना शानदार इतिहास है उसमें एक नया अध्याय जुड़ेगा.
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