नई दिल्ली. भारतीय ओलिंपिक इतिहास के व्यक्तिगत इवेंट के पहले गोल्ड मेडलिस्ट अभिनव बिंद्रा से आप पूछेंगे कि बीजिंग ओलिंपिक में उनके सबसे खास दोस्त कोन से थे तो जवाब मिलेगा मोची और कारपेंटर. जी, सही सुना आपने. अभिनव ने ये भी बताया कि आखिर ऐसा क्यों है. ये और ऐसे ही कई खुलासे उन्होंने शुक्रवार को इंडिया टुडे कान्क्लेव में किए. इस खास किस्से का जिक्र करते हुए बिंद्रा ने बताया, बीजिंग ओलिंपिक के समय एक मोची और एक कारपेंटर मेरे सबसे खास दोस्त होते थे. मोची ने मेरी शूटिंग जैकेट को तैयार किया ताकि वो मुझे पूरी तरह फिट आ सके. वहीं कारपेंटर ने गन पर मेरी ग्रिप मजबूत करने में मदद की. इस दौरान कई और भी चीजों का ध्यान रखना होता था. कमांडो कोर्स हुए ताकि हिम्मत बढ़े. स्की जंपर के साथ काम किया ताकि बैलेंस सही हो सके. इतना ही नहीं, मैं पॉकेट मिरर लेकर चलता था. इसका उद्देश्य चेहरे पर आने वाले तनाव के भावों को हटाना था.
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अभिनव बिंद्रा ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में अब ओलिंपिक खेलों में जाने वाले एथलीटों के दल को लेकर बदले रवैये का अंतर भी बताया. उन्होंने कहा, उस वक्त ओलिंपिक खेलों के लिए रवाना होने से पहले ही एथलीटों को चूका हुआ मान लिया जाता था. लेकिन अब उनकी रवानगी के लिए रेड कारपेट बिछाया जाता है. साफ जाहिर है कि अगला दशक भारत में खेलों का दशक होगा. खेल सरकार के लिए भी प्राथमिकता पर आ रहा है और मीडिया के लिए भी. अब पहले से ज्यादा लोग खेल रहे हैं, पहले से ज्यादा लोग देख रहे हैं .
नीरज चोपड़ा को अभिनव ने दी ये सलाह
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के इस खास मौके पर अभिनव बिंद्रा के साथ टोक्यो ओलिंपिक के स्वर्ण पदक विजेता जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा भी एक ही मंच पर मौजूद थे. इस मौके पर जब अभिनव से नीरज को टिप्स देने के लिए कहा गया तो उन्होंने नीरज में सर्वकालिक महान एथलीट देखने की बात कही. अभिनव ने कहा, नीरज मैं आपको यही सलाह देना चाहता हूं कि आपने अपना गोल तो अचीव कर लिया है लेकिन आपमें हमारा सर्वकालिक महान एथलीट बनने की योग्यता है. अपने पैशन को बनाए रखो और उसका सम्मान करो. अपने खेल के साथ बैलेंस बनाना जरूरी है.
निशाना लगाने से पहले ही मैं विनर था
इसके अलावा अभिनव बिंद्रा ने बीजिंग ओलिंपिक से जुड़े और भी कई किस्सों के बारे में बताया. उन्होंने कहा, खेल का मानसिक पहलू ये था कि मैं साउथ अफ्रीका गया. जहां लैबोरेट्री में मेरे ब्रेन के 32 जगहों की मैपिंग हुई. तब मुझे भी पहली बार पता चला कि ब्रेन में 32 जगह भी हो सकती हैं. 3000 शॉट फायर करने के बाद ये आकलन आया कि मैं अच्छी शूटिंग कर रहा हूं. बिंद्रा ने ये भी बताया कि मुझे हमेशा खुद पर संदेह होता था. बींजिंग जाने से पहले मैंने खुद से सवाल किया कि क्या मैंने ओलिंपिक की तैयारियों के लिए वो सब किया है जो एक इंसान अधिकतम कर सकता है? तो इसका जवाब था हां, मैं इससे बेहतर नहीं कर सकता था. और इसीलिए बीजिंग ओलिंपिक में पहला निशाना लगाने से पहले ही मैं विनर था. मैं विनर अपनी नजरों में था.
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