साल 1950 में एथलेटिक्स (Athletics) में भारत उतना ज्यादा मशहूर नहीं था. बेहद कम खिलाड़ी हिस्सा लेते थे और भारत को उतने मेडल भी नहीं आते थे. इसका सबसे बड़ा कारण ये था कि वर्ल्ड स्टेज ऑफ स्पोर्ट्स पर भारत को कुछ नहीं समझा जाता था. लेकिन इन सबके बीच मिल्खा सिंह (Milkha Singh) वो शख्स थे जिन्होंने ये साबित किया कि भारत भी इस बड़े मंच पर झंडा फहरा सकता है. 1958 के कार्डिफ कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले, मिल्खा सिंह ने नेशनल गेम्स, कटक में 200 मीटर और 400 मीटर दौड़ में राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़े थे. उन्होंने उसी वर्ष एशियाई खेलों में 2 स्वर्ण पदक भी हासिल किया था.
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मिल्खा सिंह वे शख्स थे जिन्होंने भारत को कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण जीतने की भूख जगाई. सन् 1958 में, छठे कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन वेल्स के कार्डिफ शहर में हुआ था. इस साल के कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत दूसरी बार एक आजाद देश के तौर पर जीत के इरादे से आया. इससे पहले भारत ब्रिटिश शासन में 1934 में और 1938 में कॉमनवेल्थ गेम्स में भाग ले चुका था.
पहला स्वर्ण पदक आया मिल्खा की मेहनत से
1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत ने अपना पहला स्वर्ण पदक जीता. मिल्खा सिंह ने 440 यार्ड की रेस को 46.6 सेकेंड्स में पूरा करके ये मुकाम हासिल किया. उस वक्त मिल्खा के प्रतिद्वंदी दक्षिण अफ्रीका के मैलकम स्पेन्स ने रेस को 46.9 सेकेंड्स में पूरा करके रजत पदक अपने नाम किया और कनाडा के टैरी टोबेको ने 47.05 सेकेंड्स में रेस को पूरा कर कांस्य पदक हासिल किया. मिल्खा सिंह के स्वर्ण पदक जीतने के बाद भारत की कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने की एक आदत सी हो गई. भारत ने अब तक 503 मेडल जीतें हैं जिसमें से 181 स्वर्ण, 173 रजत, और 149 कांस्य पदक है.
कोच ने जगाया विश्वास
बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में, मिल्खा सिंह ने बताया था कि 1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्हें कोई नही जानता था. उस प्रतियोगिता में ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, कनाडा, और केन्या के वर्ल्ड क्लास एथलीट आए थे. जब मिल्खा सिंह को ये बात पता चली कि उनका मुकाबला दक्षिण अफ्रीका के मैलकम स्पेन्स से भी होना है तो वे थोड़े बेचैन हो गए. उस वक्त उनके कोच डॉ. आर्थर हावर्ड ने उनकी मदद की जिससे उनका मानसिक तनाव दूर हुआ. इसके बाद मिल्खा ने अपने कोच के साथ रणनीति बनाई जिससे उनके स्टैमिना को अंत तक बचाकर रखा जा सके. रेस के दौरान मिल्खा ने प्लान के हिसाब से दौड़ लगाई और तेजी से दौड़े. अंत में उनके स्टैमिना ने उनका साथ दिया जिसके बाद उन्होंने मैलकम को 0.3 सेकेंड्स से मात दी. लेकिन इसी मैलकम ने 1960 रोम ओलिंपिक में मिल्खा सिंह को पछाड़ ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम कर लिया.
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