पुनपुन की लहरों से हांगकांग के पोडियम तक का सफर…! यह कहानी है अरवल की बेटी कोमल की, जिसने सीमित संसाधनों में सपनों को पंख दिए और बिहार ही नहीं, देश का नाम अंतरराष्ट्रीय मंच पर रोशन किया. कोमल की यह उड़ान बिहार सरकार की 'मेडल लाओ, नौकरी पाओ' और 'खेल सम्मान समारोह' जैसी योजनाओं की बदौलत और भी ऊंची हुई है, जिसने राज्य के युवाओं में खेल को लेकर नई चेतना जगाई है.
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नदी किनारे खेल से शुरू हुआ सफर
अरवल जिले के डीही करपी प्रखंड की रहने वाली कोमल, बचपन में स्कूल के बाद पुनपुन नदी किनारे बोटिंग खेला करती थीं. उनके पिता लालदेव सिंह भूमिहीन मजदूर हैं. उन्होंने 2018 में बेटी के लिए एक छोटा बोट खरीदा. जब वह केवल छठी कक्षा में थीं. यहीं से शुरू हुआ कोमल का ड्रैगन बोट का वो सफर जिसमें उसने तीन गोल्ड मेडल जीत कर अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाई.
राष्ट्रीय स्तर से अंतरराष्ट्रीय पहचान तक
2020 में कोमल को बिहार ड्रैगन बोट एसोसिएशन ने मोतिहारी कैंप में बुलाया. यहां तीन महीने के प्रशिक्षण के बाद उनका राष्ट्रीय टीम के लिए चयन हुआ. उन्होंने नेशनल लेवल पर तीन गोल्ड मेडल जीते. 2023 में थाईलैंड वर्ल्ड चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया, हालांकि वहां उन्हें पदक नहीं मिला. लेकिन हार मानने की बजाय कोमल ने गांव लौटकर पुनपुन नदी में फिर से अभ्यास शुरू किया. 2024 में उनका चयन एशियन ड्रैगन बोट चैंपियनशिप के लिए हुआ. इसके बाद चीन के हांगकांग में 500 मीटर और 200 मीटर रेस में उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीतकर इतिहास रच दिया.
प्रेरणा बनी कोमल
कोमल के पिता लालदेव सिंह कहते हैं, "यह सिर्फ मेरी बेटी की जीत नहीं, बल्कि हर उस बेटी की जीत है जो सीमित संसाधनों में बड़े सपने देखती है. अगर समय पर बिहार सरकार और जिला खेल विभाग का सहयोग नहीं मिलता, तो कोमल शायद इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाती."
राज्य सरकार ने कोमल को तीन बार प्रोत्साहन राशि दी और सम्मानित किया. कोमल की मेहनत और लगन ने यह साबित कर दिया कि सच्ची लगन के आगे कोई भी अभाव मायने नहीं रखता. वहीं बिहार सरकार की नीतियों ने उसके सपनी को बिहार की प्रेरणा के रूप में स्थापित करने में भूमिका निभाई.
बिहार के खेल मॉडल की चमक
कोमल की सफलता बिहार के बदलते खेल इकोसिस्टम की भी प्रमाण है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में युवाओं को खेलों के लिए समर्पित योजनाएं और संसाधन उपलब्ध कराने की नीति बनाई गई. 'मेडल लाओ, नौकरी पाओ' जैसी योजनाएं गांवों तक पहुंच रही हैं, और नए कीर्तिमान गढ़ रही हैं. कोमल की कहानी आज बिहार की हजारों बेटियों के लिए एक संदेश है. अगर हौसले बुलंद हों, तो पुनपुन से भी हांगकांग तक का रास्ता बन सकता है.
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