रविचंद्रन अश्विन (Ravichandran Ashwin) ने वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल 2023 (World Test Championship Final) में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टीम इंडिया में जगह नहीं मिलने को लेकर प्रतिक्रिया दी है. उनका कहना है कि वे फाइनल में खेलना पसंद करते क्योंकि उन्होंने टीम को फाइनल तक पहुंचाने में मदद की थी. अश्विन ने कहा कि डब्ल्यूटीसी फाइनल नहीं खेल पाने को वह निराशा नहीं मानते इसे बस एक ठोकर समझते हैं. उन्होंने कहा कि जब वे रिटायरमेंट लेंगे तब उन्हें इस बात पर अफसोस होगा कि वे बल्लेबाज की बजाए गेंदबाज बने. डब्ल्यूटीसी फाइनल में भारत ने आसमान में बादल और पिच पर घास देखते हुए चार पेसर खिलाए थे. मगर उसका यह दांव गलत साबित हुआ क्योंकि दी ओवल की पिच से स्पिनर्स को अच्छी खासी मदद मिली थी.
अश्विन ने दी इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, 'यह काफी मुश्किल सवाल है. क्योंकि हम डब्ल्यूटीसी फाइनल के फौरन बाद बात कर रहे हैं. मैं खेलना पसंद करता क्योंकि टीम के वहां तक पहुंचने में मैंने भी भूमिका निभाई थी. पिछले फाइनल में मैंने चार विकेट लिए थे और अच्छी बॉलिंग की थी. 2018-19 के बाद से विदेश में मेरी बॉलिंग शानदार रही है और मैं टीम को जीत दिलाने में भी कामयाब रहा हूं. मैं इस फैसले को कप्तान या कोच के रूप में देखता हूं. पिछली बार जब हम इंग्लैंड में खेले थे तब टेस्ट सीरीज 2-2 से ड्रॉ रही थी. तब चार पेसर और एक स्पिनर टीम में रखे गए थे. फाइनल में जाते हुए उन्होंने शायद यही सोचा हो. एक स्पिनर के लिए समस्या यह है कि वह चौथी पारी में काम आता है. चौथी पारी काफी अहम होती है और स्पिनर की भूमिका काम में आने के लिए हमें काफी रन बनाने होते हैं. यह पूरी तरह से माइंडसेट की बात है. मेरे लिए यह झटका नहीं है. यह रास्ते की ठोकर है. मैं आगे बढ़ जाऊंगा क्योंकि मैं इससे गुजर चुका हूं.'
बॉलर बनने पर अफसोस क्यों करेंगे अश्विन
अश्विन ने बताया कि वे क्यों बॉलर बने और रिटायर होने पर क्यों इस फैसले पर अफसोस करेंगे. उन्होंने कहा, 'यह सच्ची कहानी है. एक दिन मैं भारत-श्रीलंका मैच देख रहा था और भारत की बॉलिंग खराब थी. मेरे पसंदीदा सचिन तेंदुलकर थे और वे जितने चाहे रन बनाए उतने हम गेंद से लुटा दिया करते थे. मैं सोचा करता था कि एक दिन मुझे बॉलर होना चाहिए. क्या आज जो बॉलर हैं मैं उनसे बेहतर नहीं हो सकता? यह काफी बचकाना है पर मैं ऐसे ही सोचता था और इसी वजह से मैंने ऑफ स्पिन शुरू की. यहीं से शुरुआत हुई. हालांकि कल जब मैं संन्यास लूंगा तो सबसे पहले इस बात पर अफसोस होगा कि इतना अच्छा बल्लेबाज होते हुए मुझे गेंदबाज नहीं बनना चाहिए था. मैं लगातार इससे लड़ता रहा हूं लेकिन गेंदबाजों व बल्लेबाजों के लिए अलग-अलग पैमाने रहे हैं. और बर्ताव के भी अलग तरीके हैं.'
अश्विन के अनुसार, 'खेल से जुड़े एक दिग्गज के साथ मेरी इस मसले पर बात हुई थी. उन्होंने कहा था कि टेस्ट में आप एक गेंदबाज को 40 ओवर तक जूझते हुए देख सकते हैं. लेकिन मेरा तर्क था कि एक बल्लेबाज भी मैच और नेट्स में जूझता हुआ दिखता है और उसके लिए भी जरूरतें अलग नहीं होती. मैं यह नहीं कह रहा कि बल्लेबाज को नहीं खेलना चाहिए. उसे खेलना चाहिए और इसी तरह से गेंदबाज को भी खेलना चाहिए. उनके साथ एक जैसा बर्ताव होना चाहिए क्योंकि आखिर तो आप देश के लिए खेलते हैं. किसी को 10 मैच मिलते हैं, किसी को 15, किसी को 20. जिस दिन मैंने भारतीय जर्सी पहनी उस दिन मैं जानता था कि दो मैच मिलेंगे. इसलिए मैं इसके लिए तैयार था. ऐसा नहीं है कि मेरे साथ गलत व्यवहार हुआ.'
'टीम में अब दोस्त नहीं सहकर्मी होते हैं'
अश्विन ने कहा कि अब टीम में दोस्त नहीं होते हैं. अब साथी होते हैं. उन्होंने कहा, 'यह वह समय है जहां हरेक खिलाड़ी सहकर्मी है. एक समय था जब क्रिकेट में टीम के साथी आपके दोस्त हुआ करते थे. अब वे सहकर्मी हैं. इसमें काफी बड़ा अंतर है क्योंकि यहां लोग खुद को आगे ले जाना चाहते हैं और अपने दाएं या बाएं बैठे शख्स से आगे बढ़ना चाहते हैं. इसलिए किसी के पास यह पूछने का समय नहीं है कि ओके, बॉस क्या कर रहे हो? मुझे लगता है कि जब बातें साझा करते हैं तब क्रिकेट बेहतर होता है. यह बेहतर होता है जब आप दूसरे खिलाड़ी की तकनीक को समझते हैं और दूसरे के सफर को जानते हैं. लेकिन जितना होना चाहिए अब उसके आसपास भी ऐसा नहीं होता. कोई आपकी मदद के लिए नहीं आएगा. यह अकेले की यात्रा है. निसंदेह आप किसी पेशेवर के पास जा सकते हैं, किसी कोच से बात कर सकते हैं, पैसे देकर जा सकते हैं, प्रैक्टिस कर सकते हैं. लेकिन कभीकभार हम भूल जाते हैं कि क्रिकेट काफी हद तक खुद से सीखने वाला खेल है.'
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