भारत को चैंपियन खिलाड़ी पैदा करने हैं तो अपनाना होगा ये रास्ता, कपिल देव ने बताया मास्टर प्लान

भारत में आज भी खेल को बढ़ावा देने के लिए कई कोशिशें की जा रही है.

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भारत में आज भी खेल को बढ़ावा देने के लिए कई कोशिशें की जा रही है. इसमें राज्य सरकार के साथ केंद्र सरकार का भी काफी बड़ा रोल है और सभी मिलकर खेल के क्षेत्र में अपना योगदान दे रहे हैं. कई योजनाओं को सरकार के जरिए अब तक लागू किया जा चुका है लेकिन इन सबके बीच 1983 वर्ल्ड कप (1983 World Cup) विजेता कप्तान कपिल देव (Kapil Dev) ने अब बड़ा बयान दिया है. महान क्रिकेटर कपिल देव को लगता है कि जिस दिन से भारत में बच्चों के माता-पिता खेलों पर अधिक जोर देना शुरू कर देंगे, उस दिन से देश में अलग अलग खेलों में और अधिक चैंपियन निकलने लगेंगे. कपिल ने कहा कि हालांकि भारत में बच्चों के माता-पिता की खेलों के प्रति मानसिकता पिछले कुछ सालों में तेजी से बदली है लेकिन इतना ही काफी नहीं है.


माता- पिता को लगाना होगा जोर

इस महान क्रिकेटर ने यह टिप्पणी भारतीय पुरुष बैडमिंटन टीम की रविवार को मिली ऐतिहासिक थॉमस कप जीत के बाद की. कपिल से जब पिछले कुछ सालों में भारतीय खेलों में आए बदलाव के बारे में पूछा जिससे देश का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन शानदार होता जा रहा है तो उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि (ऐसा) माता-पिता की वजह से है, बच्चों की वजह से नहीं. हमारे देश से काफी डॉक्टर, वैज्ञानिक और इंजीनियर निकलते हैं क्योंकि उनके माता-पिता उन्हें ये बनाना चाहते हैं. जिस दिन से माता-पिता अपने बच्चों से खिलाड़ी बनाने की चाहत करने लगेंगे, हमारे देश से भी हर खेल से चैम्पियन बनने शुरू हो जायेंगे. ’’


कपिल न्यूयॉर्क में भारतीय वाणिज्यिक दूतावास द्वारा देश की आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ कार्यक्रम में अतिथि के तौर पर उपस्थित थे. इस मौके पर प्रवासी भारतीय और क्रिकेट प्रशंसक मौजूद थे. सर्वकालिक महान आल राउंडर में से एक कपिल ने इस संबंध में एक उदाहरण देते हुए कहा कि अगर उनकी बेटी को 10वीं कक्षा की परीक्षा देनी हो और साथ ही जूनियर भारतीय टीम के लिये खेलना हो तो वह उसे ‘पढ़ाई’ करने के लिये कहेंगे.


सोच बदलने की जरूरत

भारतीय क्रिकेट टीम को 1983 विश्व कप में एतिहासिक खिताब दिलाने वाले कपिल ने कहा, ‘‘लेकिन अमेरिका या यूरोप या ऑस्ट्रेलिया में, माता-पिता कहेंगे कि इस साल (परीक्षा) रहने दो, देश के लिये जूनियर टीम में खेलो और अगले साल परीक्षा दे देना. हमारे देश में यही सोच अभी तक नहीं बदली है. ’’ उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन यह सोच बदल रही है. इसलिये मैंने कहा कि हमारे समाज में बच्चों से ज्यादा माता-पिता अधिक महत्वपूर्ण हैं. ’’


अपने बचपन की याद करते हुए कपिल ने कहा कि वह अपने खेल (क्रिकेट) की किट अपने स्कूल बैग में छुपा दिया करते थे और बाहर जाकर खेलते थे लेकिन अब इसमें तेजी से बदलाव हुआ है जिससे माता-पिता अपने बच्चों केा खेलों में हिस्सा लेने के लिये प्रोत्साहित करते हैं. कपिल ने कहा, ‘‘आज मुझे यह देखकर फक्र होता है कि माता-पिता अपने बच्चों को खेलने के लिये लेकर आ रहे हैं. ’’

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