पाकिस्तान हॉकी टीम को 3 जुलाई को भारत सरकार ने अपने यहां आकर खेलने की मंजूरी दे दी. उसे अगस्त में होने वाले एशिया कप के लिए परमिशन दी गई है. इसके अलावा नवंबर-दिसंबर में होने वाले जूनियर वर्ल्ड कप, सितंबर में जूनियर शूटिंग वर्ल्ड कप और अक्टूबर में वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी पाकिस्तानी खिलाड़ियों के भारत में आने पर मुहर लगा दी. यह सब ऐसे समय में हुआ है जब दो महीने पहले ही भारत ने पहलगाम में आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकानों पर हमला किया था. यह अभियान ऑपरेशन सिंदूर के तहत हुआ था. भारत में अभी भी पाकिस्तान को लेकर लोगों में काफी गुस्सा है. ऐसे में क्यों भारत सरकार पाकिस्तानी खिलाड़ियों को खेलने को आने के क्यों मना नहीं कर पाई.
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ओलिंपिक चार्टर के चलते भारत चाहकर भी पाकिस्तान और उसके खिलाड़ियों को खेलने से नहीं रोक सकता. ओलिंपिक चार्टर एक तरह से ओलिंपिक का संविधान होता है. इसका नियम 44 कहता है कि राष्ट्रीय ओलिंपिक समितियां खिलाड़ियों को नस्ल, धर्म या राजनीतिक वजहों से नहीं रोक सकतीं. अगर वीजा नहीं दिए जाते हैं तो अंतरराष्ट्रीय तौर पर अलग-थलग पड़ने का डर होता है और भविष्य में किसी इवेंट की मेजबानी नहीं मिलती.
भारत को 6 साल पहले लगा था झटका
भारत को छह साल पहले ऐसे झटका लग चुका है. तब उसने आईएसएफ शूटिंग वर्ल्ड कप के लिए उसने पाकिस्तानी निशानेबाजों को वीजा नहीं दिए थे. वह ओलिंपिक क्वालिफाइंग इवेंट था. भारत ने पुलवामा हमले के चलते यह कदम उठाया था. इस पर इंटरनेशनल ओलिंपिक कमिटी ने न केवल भारत के साथ भविष्य के इवेंट की मेजबानी पर बातचीत रोक दी थी.
आईओसी ने इंटरनेशनल फेडरेशन से कहा था कि भारत से जब तक कोई गारंटी नहीं मिलती है तब कोई खेल आयोजन न कराया जाए. भारत ने जब लिखकर दिया कि आगे कभी इस तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा तब आगे के इवेंट की मेजबानी पर बातचीत शुरू हुई.
भारत अभी 2036 ओलिंपिक अहमदाबाद में कराने की योजना बना रहा है. ऐसे में पाकिस्तानी एथलीट्स को वीजा नहीं देने पर उसकी संभावनाएं अटक सकती हैं.
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