अनुभवी डी हरिका को चेस ओलिंपियाड खिताब जीतने के अपने सपने को साकार करने के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ा, लेकिन उन्हें बुडापेस्ट में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं करने के बाद भी इस खिताब को जीतने की खुशी है. भारत ने रविवार को शतरंज ओलिंपियाड में इतिहास रच दिया, जब पुरुष और महिला टीमों ने अंतिम दौर के मैचों में स्लोवेनिया और अजरबैजान को हराकर दोनों वर्गों में स्वर्ण पदक जीते.
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अजरबैजान के खिलाफ महिला टीम के लिए 33 साल की हरिका ने लय में वापसी करते हुए जीत दर्ज की, जबकि 18 साल की दिव्या देशमुख ने तीसरे बोर्ड पर गोवर बेयदुल्यायेवा को पछाड़ कर अपना व्यक्तिगत स्वर्ण पदक भी पक्का किया. हरिका ने कहा- मेरे लिए जाहिर तौर पर यह इन लोगों (टीम के साथी खिलाडियों) से ज्यादा भावुक क्षण है. मैं लगभग 20 साल से खेल रही हूं, लेकिन पहली बार स्वर्ण पदक जीतने का मौका मिला है.
उन्होंने कहा-
मैं इन खिलाड़ियों के लिए काफी खुश और गर्व महसूस कर रही हूं. युवा खिलाड़ियों ने टीम के लिए काफी अच्छा प्रदर्शन किया. शायद मेरा प्रदर्शन संतोषजनक नहीं था, लेकिन टीम के स्वर्ण पदक से मैं सब कुछ भूलने में सफल रही. मुझे खुशी है कि हम निराशा को पीछे छोड़कर मजबूत वापसी करने में सफल रहे.
भारतीय महिला टीम के इस अभियान में सबसे शानदार प्रदर्शन दिव्या ने किया. हाल ही में गांधीनगर में विश्व जूनियर शतरंज चैंपियनशिप में लड़कियों के वर्ग में जीत दर्ज करने वाली इस खिलाड़ी ने टीम के लिए सबसे ज्यादा मैच जीते. दिव्या ने कहा-
इसकी शुरुआत काफी अच्छी रही, लेकिन बीच में हमें कुछ सफलता मिली और जिस तरह से मैंने और मेरी टीम ने इसे संभाला उस पर मुझे गर्व है. हमने दृढ़ता के साथ मुकाबला किया और आखिरकार हम स्वर्ण पदक के साथ यहां हैं.
दिव्या से जब इस ओलिंपियाड के सभी 11 मैचों को खेलने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा-
यह करो या मरो जैसे हालात थे, आपको देश के लिए सब कुछ झोंकना होता है.
दिव्या तीसरे बोर्ड पर 11 में से 9.5 अंक हासिल कर व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने में भी सफल रही.