'टीम इंडिया में मेरी तरह कोई बल्लेबाजी नहीं करता, जो करता है वो 90-100 से संतुष्ट हो जाता है', सहवाग का बड़ा बयान

'टीम इंडिया में मेरी तरह कोई बल्लेबाजी नहीं करता, जो करता है वो 90-100 से संतुष्ट हो जाता है', सहवाग का बड़ा बयान

टीम इंडिया (Team India) के सबसे अटैकिंग बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग (Virender Sehwag) को रिटायरमेंट लिए हुए 9 साल बीत चुके हैं. पूर्व क्रिकेटर ने टेस्ट क्रिकेट को अपनी आक्रामक बल्लेबाजी से पूरी तरह बदल दिया था. सहवाग बिना डरे किसी भी गेंदबाज की लय खराब कर देते थे. वर्तमान में जहां बैजबॉल ट्रेंड कर रहा है, सहवाग ने इसकी झलक सालों पहले ही दे दी थी. भारत के लिए सहवाग ने कई ऐतिहासिक पारियां खेली जिसमें कई शतक, दोहरे शतक और दो तिहरे शतक शामिल हैं.

 

पंत और शॉ कुछ हद तक मेरी तरह हैं: सहवाग


वर्तमान में कुछ खिलाड़ी ऐसे हैं जिनकी तुलना सहवाग से की जाती है. वहीं कमेंट्री के दौरान कई पूर्व क्रिकेटर्स किसी बल्लेबाज को देखकर ये कह चुके हैं कि, ‘इसे देख मुझे सहवाग की याद आती है’. लेकिन टीम इंडिया के दो क्रिकेटर्स ऐसे हैं जिनकी तुलना अक्सर सहवाग से की जाती है. हम ऋषभ पंत और पृथ्वी शॉ की बात कर रहे हैं. लेकिन सहवाग का कुछ और ही मानना है कि, सहवाग ने न्यूज 18 के साथ खास बातचीत में कहा कि, टीम इंडिया में कोई बल्लेबाज ऐसा नहीं है जो मेरी तरह बल्लेबाजी करता है.

 

लेकिन पंत 90-100 से संतुष्ट हो जाते हैं: सहवाग


सहवाग ने कहा कि, अपनी बल्लेबाजी के बारे में बात करूं तो सिर्फ पृथ्वी शॉ और ऋषभ पंत ही, ऐसे हैं जो मेरी तरह बल्लेबाजी करते हैं. ऋषभ पंत हालांकि थोड़े करीब हैं. जैसा मैं टेस्ट क्रिकेट में खेलता था पंत भी वैसा ही खेलते हैं. लेकिन मैं 200, 250 और 300 रन बनाता था जबकि पंत सिर्फ 90-100 बनाकर ही संतुष्ट हो जाते हैं.  अगर वो अपने गेम को थोड़ा और ऊपर लेकर जाते हैं तो वो फैंस का काफी ज्यादा मनोरंज कर सकते हैं.

 

साल 2004 में पाकिस्तान के खिलाफ सहवाग तिहरा शतक जड़ने वाले पहले भारतीय क्रिकेटर बने थे. और इसके बाद इस बल्लेबाज ने ठीक 4 साल बाद साउथ अफ्रीका के खिलाफ एक और तिहरा शतक जड़ा. उसी साल सहवाग एक और तिहरा शतक ठोकने के करीब थे लेकिन वो 7 रन से चूक गए. सहवाग की एक खासियत ऐसी थी जो उन्हें दूसरे बल्लेबाजों से अलग बनाती थी. चाहे सहवाग 0 पर हों या फिर 99 पर वो अक्सर आक्रामक खेल ही दिखाते थे.

 

सहवाग ने आगे कहा कि, मैं टेनिस बॉल क्रिकेट खेला करता था और उस दौरान मेरे दिमाग में सिर्फ बाउंड्री ही चलती थी. इंटरनेशनल क्रिकेट में भी मैं इसी तरह खेलता था. और ये गिनता था कि शतक बनाने के लिए मुझे कितनी बाउंड्री चाहिए होगी. अगर मैं 90 पर हूं तो 100 बनाने के लिए मुझे 10 रन चाहिए थे और विरोधी टीम को मुझे आउट करने के लिए 10 गेंद चाहिए थे. इसलिए मैं बाउंड्री मारता था. यहां रिस्क प्रतिशत सीधे 100 से 200 हो जाता था.

 

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