दांबुक: जिस तरह अरुणाचल प्रदेश की सुबह अलसाई हुई नहीं होती, उसी तरह वहां के रफ-टफ ट्रैक्स जोश और जुनून की गवाही देते नहीं थकते. सूरज की हर नई किरण यहां जोश जगाती है, तमाम दुश्वारियों के बावजूद रोजमर्रा की जिंदगी में ताजगी भरती है और लगातार आगे बढ़ते रहने की उम्मीदें जवां करती है. तभी तो राजधानी ईटानगर से करीब साढ़े 300 किलोमीटर दूर लोअर दिबांग वैली की एक छोटी सी तहसील जिंदादिली की ऐसी मिसाल कायम कर रही है कि देश भर से मोटरस्पोर्ट्स के दीवाने यहां दौड़े चले आते हैं. इस बार मौका था जेके टायर 4x4 फ्यूरी का. ऑफरोडिंग के एक ऐसे प्लेटफॉर्म का जहां आपको स्पोर्ट्स कार में बैठकर नदी पार करनी होती है, पत्थरों के बीच गाड़ी चलानी होती है, जंगल के बीच से निकलना होता है और कई ऐसे गड्ढों से पार पाना होता है, जहां गाड़ी का पलटना पक्का है. तभी तो बमुश्किल 25 फीसदी स्पोर्ट्स कार ही इस तरह की चुनौतियों से भरे ट्रैक्स पर 'फिनिश लाइन' को पार कर पाती हैं. लेकिन मुश्किलें ही न हों तो फिर मंजिल पाने का मजा ही क्या है.
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तभी तो ऑफरोडिंग के दीवाने यहां पूरी तैयारी के साथ आते हैं. 15-20 लाख की कीमत वाली जीप हो या फिर जिप्सी, उसमें कम से कम 25-30 लाख रुपये तो मॉडिफिकेशंस पर ही खर्च हो जाते हैं. गाड़ी को और ताकतवर बनाने के लिए गाड़ी का इंजन बदलकर V 8 इंजन तक इसमें लगा दिया जाता है. साथ ही बड़े और मजबूत टायर्स, दो स्टेपनी, रोल केज और डबल विंच के साथ तैयार किया जाता है टू सीटर ऑफरोडिंग व्हीकल. रही-सही कमी पूरी कर देता है 2 से 5 लाख की कीमत वाला एक्सेल. मुकाबला इस बार भी कोई आसान नहीं था. हर ड्राइवर और नेविगेटर को लड़ाई दो मोर्चों पर लड़नी थी. दिल से भी, दिमाग से भी. दिन में भी, रात में भी. खुद को भी फिट रखना था और गाड़ी को भी.
आखिरकार, केरल की गल्फ फर्स्ट टीम ने देश की सबसे मुश्किल ऑफरोडिंग रेस का विजेता होने का गौरव हासिल किया. अरुणाचल प्रदेश की MOCA टीम दूसरे पायदान पर रही जबकि दिल्ली की NIOC ने हासिल किया तीसरा स्थान. केरल की महिला प्रतियोगी अपर्णा उमेश के लिए अरुणाचल प्रदेश के ट्रैक्स पर रेस करने का ये पहला मौका था. वो रेस में तो पीछे रह गईं लेकिन हौसलों में आगे निकल गईं. उन्होंने कहा- मैंने इस बार काफी कुछ सीखा है. मैं अगली बार और मजबूती के साथ वापस लौटूंगी.'
प्रतियोगियों के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू भी खासे उत्साहित नजर आए. खास बातचीत में उन्होंने साफ कहा- 'विकास की ये बहार अब बहती ही रहेगी. मोटरस्पोर्ट्स के जरिए देश भर के युवाओं को यहां से जोड़ने का मिशन जारी रहेगा और आने वाले वक्त में लोग देखेंगे कि दांबुक और आसपास के इलाकों के ट्रैक्स ऑफरोडिंग के लिए सबसे मुफीद हैं. इसके अलावा बाकी एडवेंचर गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए इस इलाके में एक 'टूरिज्म विलेज' भी स्थापित किया जा रहा है.'
संदेश साफ है. दिल को सुकून पहुंचाती खूबसूरत वादियों, ताजगी भरी हरियाली, खिलखिलाती नदियों और अपने में ही खो जाने को मजबूर करते जंगलों वाला ये इलाका 'स्पोर्ट्स टूरिज्म' का नया अध्याय लिखने को पूरी तरह तैयार है.
फेरी से फेरारी तक का सफर तय किया दांबुक ने
ज्यादा वक्त नहीं हुआ जब लोअर दिबांग वैली 'काला पानी' के नाम से जानी जाती थी. राज्य के बाकी हिस्सों से कमोवेश कटी हुई. न सड़क, न पुल, न टूरिस्ट के रूकने की कोई जगह. ये वो वक्त था जब गाड़ियों को फेरी में लादकर लोअर दिबांग नदी से पार कराया जाता था. अब ये काम पुल के जरिए किया जा रहा है.
आज दांबुक और आसपास की हर सड़क सपनों को पूरा कर रही है. विकास का पहिया इतनी तेजी से घूमा है कि पिछले दो सालों में फेरी की जगह फेरारी ने ले ली है.
इन सड़कों पर हाल ही में फेरारी जैसी गाड़ियां दौड़ती दिखी हैं. पहले फेरी, फिर फेरारी और अब फ्यूरी जैसी प्रतियोगिताएं दांबुक जैसे इलाके को रोमांच के मानचित्र पर और मजबूती से अंकित कर रही हैं.