दिग्गज अचंता शरत कमल और मनिका बत्रा ने पिछले 12 महीनों में टेबल टेनिस में एडमिनिस्ट्रेटिव संकट के बावजूद अपनी चमक बिखेरी. चालीस साल के शरत ने बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेलों के गोल्ड मेडल सहित कुल तीन गोल्ड मेडल जीतकर यह दिखाया कि उम्र केवल एक नंबर है. उन्होंने 2024 में होने वाले पेरिस ओलंपिक के बाद संन्यास लेने का फैसला किया है लेकिन इसी के साथ उन्होंने 2022 में खेल एडमिनिस्ट्रेशन में भी कदम रख दिया है. उन्हें भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) के एथलीट आयोग का उपाध्यक्ष चुना गया है. इसके अलावा उन्हें अंतरराष्ट्रीय टेबल टेनिस महासंघ (आईटीटीएफ) के खिलाड़ियों के संघ में भी संयुक्त अध्यक्ष बनाया गया है.
मेजर ध्यानचंद से सम्मानित शरत
शरत को देर से ही सही लेकिन इस साल भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें यह पुरस्कार बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेलों में शानदार प्रदर्शन के लिए दिया गया जहां उन्होंने सिंगल, टीम और 24 साल की श्रीजा अकुला के साथ मिलकर मिक्स का खिताब जीता था. राष्ट्रमंडल खेल 2018 में चार पदक जीतने वाली मनिका बत्रा से बर्मिंघम खेलों में काफी उम्मीदें की जा रही थी लेकिन वह अपेक्षाओं का बोझ नहीं सह पाई और उन्हें बिना पदक वापस लौटना पड़ा. हालांकि इसके तीन महीने बाद उन्होंने बैंकॉक में एशिया कप में शानदार प्रदर्शन किया. दिल्ली की इस खिलाड़ी ने तीन दिन के अंदर टॉप 10 में शामिल दो खिलाड़ियों को हराकर ब्रांज मेडल जीता. वह इस टुर्नामेंट में मेडल जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बनीं.
कोर्ट ने टीटीएफआई को करा था सस्पेंड
वैसे बता दें कि टेबल टेनिस के लिए साल की शुरुआत अच्छी नहीं रही. दिल्ली उच्च न्यायालय ने एडमिनिस्ट्रेशन संबंधी गड़बड़ियों के कारण भारतीय टेबल टेनिस महासंघ (टीटीएफआई) को सस्पेंड कर दिया था. इससे खिलाड़ियों के राष्ट्रमंडल खेलों सहित अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में खेलने को लेकर आशंका पैदा हो गई. अदालत से नियुक्त प्रशासकों की कमेटी ने हालांकि खिलाड़ियों के अभ्यास पर प्रभाव नहीं पड़ने दिया. इसके बाद इस महीने के शुरूआत में नए पदाधिकारियों ने जिम्मेदारी संभाल ली है और उनके सामने पहला काम राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं का आयोजन होगा. प्रशासकों की कमेटी को महासंघ के कामों को चलाने के अलावा अदालती कार्रवाई से भी जूझना पड़ा. बता दें कि मानुष शाह, स्वास्तिका घोष, अर्चना कामथ और दीया चितले ने राष्ट्रमंडल खेलों की टीम से बाहर करने पर अदालत का दरवाजा खटखटाया था. इनमें चितले सफल भी रही और उन्हें बर्मिंघम जाने वाली टीम में शामिल किया गया.
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