एक खिलाड़ी जिसने भारत के लिए पहले टेनिस खेला और फिर क्रिकेट के मैदान में उतरा. 40 साल की उम्र में डेब्यू हुआ और पहले ही टेस्ट में अर्धशतक लगाए. अपने जमाने के धाकड़ खिलाड़ियों को अपने खेल से पीछे छोड़ दिया. हालांकि भारतीय टीम की तरफ से दो ही टेस्ट खेलने को मिले. लेकिन उम्र के ढलते दौर में वह घर से बाहर निकला और फिर कभी लौटकर नहीं आया. फिर कभी उन्हें नहीं देखा गया. न जिंदा और न मृत. आज तक पता नहीं चला कि वह क्रिकेटर कहां गया. यहां बात हो रही है कोटर रामास्वामी की. 1985 में 89 साल की उम्र में वे आखिरी बार देखे गए थे. इसके बाद से उनकी कोई जानकारी नहीं मिली. आज उनकी बात इसलिए क्योंकि 16 जून को उनका जन्मदिन होता है.
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रामास्वामी उन चुनिंदा खिलाड़ियों में से हैं जिन्होंने दो अलग-अलग खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है. 1920 के आसपास वे भारत की डेविस कप टीम का हिस्सा थे. फिर 1936 में इंग्लैंड दौरे पर दो टेस्ट में भारतीय टीम में शामिल रहे. इस दौरे के लिए उनका चयन चौंकाने वाला था. रामास्वामी ने अपनी बायोग्राफी में सेलेक्शन के बारे में लिखा है कि उन्हें क्रिकेट से अलग कारणों के चलते टीम इंडिया में चुना गया था. लेकिन इंग्लैंड दौरे पर रामास्वामी ने अपने खेल की छाप छोड़ी.
टेस्ट में 56 की औसत से बनाए रन
उन्होंने इंग्लैंड दौरे पर फर्स्ट क्लास मैचों में 30.70 की औसत से 737 रन बनाए. आज की तुलना में पहले विदेशी दौरे लंबे चलते थे. इनकी अवधि कई बार तो छह महीने से भी लंबी होती थी. इस दौरान इंटरनेशनल मैचों के साथ ही कई फर्स्ट क्लास मुकाबले भी खेले जाते थे. उनका डेब्यू दूसरे टेस्ट में ओल्ड ट्रेफर्ड में हुआ. तब उनकी उम्र 40 साल और 37 दिन थी. इसके साथ ही वे भारत की तरफ से डेब्यू करने वाले दूसरे सबसे उम्रदराज खिलाड़ी हैं. उन्होंने पहले ही टेस्ट में 40 और 60 रन की पारियां खेलीं. इनकी मदद से भारत ने टेस्ट ड्रॉ कराया.
कोटर रामास्वामी को फिर द ओवल में आखिरी टेस्ट में मौका मिला. इसमें भी उन्होंने बैटिंग से अहम रोल निभाया. उन्होंने 29 और नाबाद 41 रन की पारी खेली. इसके साथ ही उनका टेस्ट करियर पूरा हुआ. उनके नाम 56.66 की औसत से 170 रन रहे. उनकी औसत अपने जमाने के बड़े बल्लेबाजों जैसे विजय मर्चेंट, मुश्ताक अली और सीके नायडु से भी ज्यादा रही.
टीम इंडिया के मैनेजर और सेलेक्टर भी बने
इंटरनेशनल करियर से इतर रणजी ट्रॉफी में वे मद्रास टीम के कई सालों तक मुख्य खिलाड़ियों में से एक रहे. बाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने 53 फर्स्ट क्लास मैचों में 28.91 की औसत से 2400 रन बनाए. उनके नाम दो शतक और 12 अर्धशतक रहे. रिटायरमेंट के बाद वे 1953 में वेस्ट इंडीज दौरे पर गई भारतीय टीम के मैनेजर थे तो टीम इंडिया के सेलेक्टर भी बने.
खेल परिवार से था नाता
कोटर रामास्वामी खेल से जुड़े एक प्रतिष्ठित परिवार से आते थे. उनके पिता बुची बाबू नायडू को दक्षिण भारतीय क्रिकेट का पिता कहा जाता है. रामास्वामी के भाई, बेटे और भतीजे ने भी क्रिकेट खेला है. रामास्वामी जब छोटे थे तब ही अपने ननिहाल में गोद चले गए थे. उनकी पढ़ाई-लिखाई इंग्लैंड में हुई थी और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पासआउट थे.15 अक्टूबर 1985 को उन्हें आखिरी बार देखा गया. इस दिन वे अपने घर से बाहर गए थे और फिर दोबारा कभी उन्हें नहीं देखा गया. कई बार उनके मिलने या देखे जाने की खबरें आईं लेकिन सब अटकलें निकलीं. आज दिन तक नहीं पता है कि उनके साथ क्या हुआ या वे कहां चले गए.
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