भारत और ऑस्ट्रेलिया 6 दिसंबर से एडिलेड में दूसरा टेस्ट खेलेंगे. यह मुकाबला दिन रात में खेला जाएगा और इसमें गुलाबी गेंद इस्तेमाल होगी. भारतीय टीम दूसरी बार ऑस्ट्रेलियाई धरती पर पिंक बॉल टेस्ट खेलते हुए दिखाई देगी. पिछली बार जब इस तरह का मुकाबला दोनों टीम में हुआ था तब भारत दूसरी पारी में 36 रन पर सिमट गया था और उसे हार झेलनी पड़ी थी. भारतीय टीम अपने घर में भी पिंक बॉल से खेली है लेकिन अब ऐसा नहीं करती है. टेस्ट क्रिकेट आमतौर पर लाल गेंद से ही खेला जाता रहा है. लेकिन 2015 से इसमें गुलाबी गेंद भी इस्तेमाल होने लगी है. अब जान लेते हैं कि लाल गेंद और गुलाबी गेंद में क्या अंतर है.
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गुलाबी और लाल गेंद में सबसे बड़ा अंतर बाहरी परत पर लेकर (चमकदार कोटिंग) का है. लाल गेंद पर बहुत कम पॉलिश होती है जबकि गुलाबी गेंद पर पेंट की दो से तीन परतें होती हैं. सबसे पहले गेंद को तैयार करने के दौरान इसे पेंट किया जाता है. फिर तैयार होने के बाद इसे पॉलिश नहीं करते बल्कि पेंट की एक और परत चढ़ाई जाती है. इससे वह ज्यादा चमकती है. साथ ही पेंट उतरता नहीं है और वह लंबा चलता है. इस वजह से गुलाबी गेंद के बर्ताव पर बड़ा असर पड़ता है. यह गेंद ज्यादा और लंबे समय तक स्विंग होती है. साथ ही पिच पर गिरने के बाद यह स्किड (उम्मीद से ज्यादा तेजी से आना) करती है. इससे बल्लेबाजों के लिए इसे खेलना मुश्किल रहता है.
गुलाबी गेंद पर लेकर ज्यादा होने से वह रिवर्स स्विंग नहीं करती है. ऐसा इसलिए क्योंकि उसकी शाइन खत्म नहीं होती है और गेंदबाज उसे एक तरफ से घिसकर रिवर्स हासिल नहीं कर पाते हैं.
गुलाबी गेंद की सीम में ज्यादा उभार
गुलाबी गेंद की सिलाई भी लाल गेंद से काफी अलग होती है. आमतौर पर इस सिलाई थोड़ी ज्यादा उभरी हुई रहती है. इससे गुलाबी गेंद सीम पर गिरने पर तेजी से निकलती है. गेंद के पिच होने के बाद स्पीड में गिरावट नहीं आती है. बल्लेबाज लाल गेंद को खेलने के आदी रहते हैं. ऐसे में गुलाबी गेंद के सामने उनके पास रिएक्शन टाइम बहुत कम रहता है.
गुलाबी गेंद तेज गेंदबाजों को ज्यादा मदद करती है लेकिन स्पिनर्स को भी इससे बराबर मदद मिलती है. इस गेंद की सिलाई में काला धागा भी इस्तेमाल होता है. लाल गेंद की सिलाई केवल सफेद धागे से ही होती है. ऑस्ट्रेलिया में कुकाबुरा कंपनी की गेंद इस्तेमाल होती है. भारत में एसजी और इंग्लैंड में ड्यूक गेंद से क्रिकेट खेला जाता है.