IND vs ENG: टीम इंडिया अंपायर से बार-बार कर रही गेंद बदलने की मिन्नतें, जानिए क्या है नियम और कब मिलती है नई बॉल

India Vs England Series 2025: इंग्लैंड के खिलाफ हेडिंग्ले टेस्ट के दौरान भारतीय टीम के खिलाड़ी कई बार अंपायर से गेंद को बदलने की मांग करते दिखाई दिए.

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क्रिकेट में कैसे बदलती है गेंद

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ऋषभ पंत इंग्लैंड की पहली पारी में गेंद नहीं बदलने से नाराज हो गए थे.

टेस्ट क्रिकेट में जब भी बैटिंग शुरू करती है तब नई गेंद इस्तेमाल होती है.

India vs England Test: इंग्लैंड के खिलाफ हेडिंग्ले टेस्ट में भारतीय टीम कई बार अंपायर के साथ गेंद बदलने को लेकर उलझती दिखी. पहली पारी में भी ऐसा हुआ और आखिरी दिन जब इंग्लैंड लक्ष्य का पीछा कर रहा था तब भी ऐसा हुआ. भारत के अलग-अलग खिलाड़ी इसके लिए अंपायर के पास गए लेकिन कामयाबी नहीं मिले. ऋषभ पंत तो पहली पारी के दौरान अंपायर से गेंद नहीं बदलने पर नाराज हो गए थे. उन्होंने गुस्से में बॉल फेंक दी थी. इसके चलते उन्हें आईसीसी ने सजा दी. पर टेस्ट मैच के दौरान गेंद कब बदलती है और कितने ओवर्स के बाद नई गेंद मिलती है और इससे पहले टीम कब अंपायर से इसे बदलने को कह सकती है.

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टेस्ट क्रिकेट में दोनों पारियों का आगाज नई गेंद के साथ होता है. इसके बाद बॉलिंग टीम को 80 ओवर के बाद ही नई गेंद मिलती है. लेकिन जरूरी नहीं है कि ऐसा किया ही जाए. फील्डिंग टीम के कप्तान के पास 80 ओवर के बाद गेंद बदलने का विकल्प आ जाता है. अगर उसे लगता है कि पुरानी गेंद से उसके बॉलर्स रिवर्स स्विंग हासिल कर रहे हैं या स्पिन हो रही है तब वह जारी रह सकती है. इससे उलट हालात होने पर नई गेंद को लिया जा सकता है. 

टेस्ट क्रिकेट में क्या हैं गेंद बदलने के नियम

 

80 ओवर्स से पहले भी गेंद बदली जा सकती है लेकिन उसके लिए कई चीजें देखनी होती है. अगर गेंद गुम हो जाए तब दूसरी गेंद ली जाती है. लेकिन तब पूरी तरह से नई गेंद नहीं आती बल्कि थोड़ा इस्तेमाल हो चुकी है या जो गेंद गुम हुई है वैसी खेल में लाई जाती है. इसी तरह से अगर गेंद खराब हो जाती है या खेलने लायक नहीं होती तब भी दूसरी गेंद से खेल आगे कराया जा सकता है. ऐसे हाल में अंपायर को फैसला लेना होता है. अगर अंपायर को लगता है कि गेंद से छेड़छाड़ की गई है या उसे खराब किया गया है तब वह इसे बदल सकता है. साथ ही वह फील्डिंग टीम पर कार्रवाई भी कर सकते हैं.

टेस्ट मैच में 80 ओवर्स से पहले गेंद बदलने का निर्णय पूरी तरह से अंपायर के हाथ में होता है. वे फील्डिंग टीम के कहने पर अपने पास मौजूद गॉज के जरिए गेंद की जांच करते हैं. अगर वह इसके अंदर से नहीं निकल पाती है तो उसे बदल दिया जाता है.

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